इस दृष्टि से भाजपा को केरल के कोझीकोड (पहले कालीकट) की राष्ट्रीय परिषद के विचार-मंथन में आर्थिक समानता के लिए अपने चुनावी वायदे पूरे करने एवं गांवों को प्राथमिकता देने के मुद्दों पर विशेष जोर देना पड़ा है। आतंकवाद, भारत-पाक सीमा पर खतरों, अंतरराष्ट्रीय आर्थिक चुनौतियों को लेकर जागरूकता एवं जोश की बातों का अपना महत्व है। लेकिन 2017, 18 और 19 के चुनावों में भाजपा के रथ की सफलता के लिए राष्ट्रीय नेतृत्व के साथ प्रादेशिक क्षत्रपों, सांसदों, विधायकों, पार्षदों, संगठन के पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं को जनता के दुःख-दर्द समझने और यथासंभव समस्याओं के समाधान के लिए निरंतर सक्रिय रहना होगा। सत्ता की सुख-सुविधा और बड़े-बड़े कार्यक्रमों की घोषणा एवं डिजिटल प्रचार मात्र से आगे सफलता नहीं मिल सकती। यह बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, उनके विश्वस्त अमित शाह, गृहमंत्री राजनाथ सिंह या पूर्व अध्यक्ष नितिन गडकरी जैसे नेता अच्छी तरह जानते हैं और पार्टी बैठकों में समझा रहे हैं।
उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड और गोवा विधान सभा चुनावों में भाजपा की प्रतिष्ठा सर्वाधिक दांव पर लगी होगी। उत्तर प्रदेश के चुनाव अगले वर्ष होने वाले राष्ट्रपति चुनाव एवं 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए आधार बनाने वाले हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस का भविष्य सुधारने के लिए राहुल गांधी ने भी पिछले हफ्तों में गर्मी-बारिश के बावजूद उत्तर प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों को देखने-समझने और अपनी बात सुनाने का प्रयास किया। यह पहला अवसर है, जबकि कांग्रेस के संगठन के बजाय करोड़ों रुपये देकर प्रशांत किशोर की वेतनभोगी टीम की तैयारियों के बल पर कांग्रेस नेताओं ने गांवों-कस्बों में खाट बिछाकर सभाएं कीं। पी.के. की टीम के जो सदस्य स्थानीय कांग्रेसियों तक को नहीं पहचानते हैं, वे विधान सभा चुनाव में मतदाताओं को राहुल की कांग्रेस को वोट देने के लिए कैसे संतुष्ट कर पाएंगे। इसके लिए राष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिक सफलता या असली आर्थिक विकास के लिए गांवों की हालत सुधारनी होगी।