आयकर विभाग को केजरीवाल के परम मित्र सहयोगी सत्येंद्र जैन के कोलकाता की कंपनियों के साथ हवाला कारोबार से जुड़े होने के प्रामाणिक दस्तावेज एक छापे में मिले और उन्हें विस्तृत पूछताछ के लिए नोटिस भेजा गया। सत्येंद्र जैन ने टी.वी. चैनलों पर त्वरित प्रतिक्रिया में यह भी माना कि ‘इन कंपनियों से संबंध रहे हैं, लेकिन दिल्ली विधानसभा चुनाव लड़ने से पहले 2013 में उनसे इस्तीफा दे दिया था।’ आयकर विभाग भी 2013 के बाद के तथ्य नहीं पेश कर रहा है। वह तो उससे पहले के कारोबार और हवाला कांड से जुड़े लोगों से साझेदारी पर आगे पूछताछ करना चाहता है। लेकिन केजरीवाल दस कदम आगे हैं। उनका दावा है कि वह तो खुद इनकम टैक्स विभाग में रह चुके हैं और दस्तावेज देखे बिना सत्येंद्र जैन को निर्दोष बताया और कहा कि यह इनकम टैक्स विभाग के वर्तमान अफसरों की नासमझी एवं मोदी सरकार के पूर्वाग्रही षडयंत्र से हुआ है।
ईमानदारी, सादगी और भ्रष्टाचार मुक्त नारों के बल पर सत्ता में आने वाले मिस्टर ए.के. विवादास्पद गंभीर आपराधिक आरोपों में फंसे अपने हर मंत्री और विधायक के लिए मजबूत तोप लिए मैदान में खड़े दिखते हैं। यदि वह इनकम टैक्स में नौकरी कर चुके हैं (वैसे कमिश्नर स्तर तक वह कभी नहीं पहुंचे थे) इसलिए उन्हें इतना याद होना चाहिए कि बैंकों में लेन-देन का विवरण आज के इलेक्ट्रॉनिक युग में पूर्वाग्रह से दर्ज नहीं हो सकता। फिर यदि चोरी, डकैती, हेराफेरी का मामला 5 साल पुराना हो, तब भी अपराधी किसी सरकारी कुर्सी पर बैठते ही अपराध मुक्त नहीं हो सकता।
भारत के राजनीतिक इतिहास में कई नेताओं के घोटाले वर्षों बाद उजागर हुए लेकिन उन्हें कानूनी आधार पर दंड भुगतना पड़ा। अन्यथा डकैत तो सत्येंद्र जैन की तरह 17 करोड़ या 50 करोड़ लेकर परदेस भाग जाए और दो-चार साल बाद स्वदेश लौटकर ‘निर्दोष’ का प्रमाण-पत्र लेकर मस्ती में जीवन-यापन कर ले। अपनों को बचाने के लिए केजरीवाल साहब ने इनकम टैक्स चोरी करने वाले कारोबारियों पर छापों पर भी हैरानी व्यक्त करते हुए विरोध दर्ज कराया है। यूं इनकम टैक्स के सामान्य मामलों में सजा के नाम पर थोड़ा जुर्माना ही लगता है। टैक्स चारी के साथ तस्करी, हवाला इत्यादि होने पर अवश्य अदालत जेल भेजती है।