महाराष्ट्र और केंद्र में शिवसेना सत्ता की सहभागी है। लेकिन वह संतुष्ट नहीं है। ठाकरे हिंदू राष्ट्र घोषित करने, महाराष्ट्र में अपना मुख्यमंत्री बनाने एवं पाकिस्तान को आक्रामक की तरह सबक सिखाने का संकल्प व्यक्त करते हैं। असल में बाल ठाकरे के बाद पहले उद्धव एवं राज ठाकरे के बीच टकराव और विभाजन हुआ। हिंदुत्व के नाम पर उद्धव ने भाजपा का दामन थामे रखा। चुनाव के दौरान गठबंधन का लाभ दोनों ने लिया। लेकिन सत्ता की मलाई को लेकर खींचतान बढ़ती गई है। शिवसेना अब महाराष्ट्र के कुछ हिस्से एवं मुंबई महानगर पालिका तक सीमित रह गई है। मुंबई महानगर पालिका का भारी बजट एवं मोहल्लों में शिव सैनिकों का वर्चस्व पार्टी को हरसंभव लाभ देता रहता है।
कांग्रेस हो अथवा भाजपा, अपने सहयोगी दलों की बैसाखी एक अवधि तक ही इस्तेमाल करती है। राष्ट्रीय राजनीतिक दल के रूप में अपनी शक्ति बढ़ाने के बाद वे बैसाखी फेंक देती हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड जैसे प्रदेशों में क्षेत्रीय दलों के साथ रिश्ते बनते-बिगड़ते रहे हैं। संबंध निभाने में सहयोगी दलों के गलत काम और गलत समझे जाने वाले लोग भी झेलने पड़ते हैं। इस दृष्टि से उद्धव ठाकरे के अंदाज में भाजपा भी शिकायत कर सकती है कि शिवसेना के नेताओं के कारनामों की बदबू से उसका घर भी गंदा हुआ है। पंजाब में भाजपा-अकाली के मतभेद अधिक खुलकर सामने नहीं आते। लेकिन नवजोत सिंह सिद्धू ने पोल खोल दी है कि अकालियों के दबाव में उन्हें पंजाब से बाहर रहने पर मजबूर किया जाता रहा। बादल सरकार पर लगते रहे भ्रष्टाचार और ड्रग्स माफिया के गंभीर आरोपों से भाजपा के दामन भी गंदे हुए हैं। दलबदल कानून के बावजूद अब सत्ता के लिए भाजपा टूटी-फूटी पार्टियों के गुटों को पनाह देने लगी है। इससे भाजपा को तात्कालिक लाभ भले ही हो, कूड़ा-कचरा जमा करने से उसकी दीवारें अधिक गंदी और कमजोर होती जाएंगी।