गंगा की स्वच्छता और अविरलता के लिए अलग से कड़ा कानून बनाने के लिए 111 दिन से हरिद्वार में अनशन करने वाले स्वामी सानंद (प्रोफेसर जीडी अग्रवाल) का निधन गंगा प्रेमियों के लिए सदमे से कम नहीं है। पिछले तीन अगस्त को केंद्रीय मंत्री उमा भारती हरिद्वार आई थीं और कानून बनाने के लिए आश्वस्त किया था। लेकिन तय समय में कोई प्रगति नहीं हुई तो सानंद ने अपना आंदोलन जारी रखा। जिला प्रशासन के अलावा स्थानीय सांसद रमेश पोखरियाल निशंक ने भी दो दिन पहले स्वामी सानंद से अनशन तोड़ने का आग्रह किया, लेकिन जब वह नहीं माने तो 11 अक्टूबर को पुलिस द्वारा जबरन उठवाकर दोपहर के समय ऋषिकेश स्थित एम्स (अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान) में भर्ती कराया गया, जहां उन्होंने दम तोड़ दिया।
एम्स प्रशासन का कहना है कि स्वामी सानंद का निधन कार्डिक अरेस्ट के चलते हुआ है। हालांकि, स्वामी सानंद के भाई निरंजन स्वरूप अग्रवाल ने अपने भाई की मौत के लिए उत्तराखंड सरकार को दोषी ठहराया है। वहीं, इस घटना के बाद हरिद्वार में राजनितिक तापमान भी बढ़ गया है। स्वामी सानंद का निधन एक साधारण घटना नहीं है। गंगा संरक्षण का विषय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में शुमार होने के बाद देश भर में अति महत्वपूर्ण और संवेदनशील हो गया। गंगा को संरक्षित और स्वच्छ बनाने के लिए देश में पहली बार नमामि गंगे के नाम से अलग विभाग बनाकर हजारों करोड़ खर्च किये जा रहे हैं।
केंद्रीय जल संसाधन मंत्री की अध्यक्षता में नमामि गंगे की एक केंद्रीय कमेटी बनी है। उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री इस कमेटी के सदस्य हैं। केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय में गंगा के लिए अलग से एक विभाग बनाने के साथ ही नमामि गंगे मिशन के नाम से एक निदेशालय बना है, जो कि पूरे देश में गंगा के लिए काम करता है। फिर भी एक संत का गंगा के लिए यू बलिदान हो जाना, कई तरह के सवालो को जन्म दे गया है। क्या केंद्र और राज्य की सरकार, गंगा की अविरलता के लिए गंभीर नहीं है। अब जबकि यह घटना राजनीतिक शक्ल ले रही है, तो यह विचार करना भी लाजिमी हो जाता है कि देश और समाजहित के लिए एक संत का 111 दिन तक अनशनरत रहकर आंदोलन करना क्या किसी को नजर नहीं आया।
उधर, गंगा प्रेमियों और पर्यावरणविदों के बीच भाजपा सरकार को लेकर बेहद गुस्सा है। मातृ सदन के परमाध्यक्ष स्वामी शिवानंद सरस्वती ने कहा कि स्वामी सानंद की हत्या सरकार के इशारे पर हुई है। जब उन्हें ऋषिकेश एम्स में भर्ती कराया गया तो बिलकुल ठीक थे, लेकिन ऐसा क्या हुआ कि भर्ती होते ही उनकी मौत हो गई। उन्होंने कहा कि सानंद का यह बलिदान बेकार नहीं जाएगा। पर्यावरणविद सुरेश भाई ने कहा कि स्वामी सानंद के प्राणों की बलि ऐसे समय ली गई है, जब देश में नमामि गंगे के नाम पर हजारों करोड़ खर्च हो रहे हैं। सानंद शांति और अहिंसा के बल पर उपवास कर गंगा एक्ट पारित करवाना चाहते थे। लेकिन गंगा भक्त बने राजनेताओं को यह बात हज़म नहीं हो रही थी। 2014 में कहा गया था कि उन्हें गंगा ने बुलाया है और अब सानंद जैसे तपस्वी की बलि ली। उन्होंने कहा कि स्वामी सानंद का बलिदान बेकार नहीं जाएगा।
गौरतलब है कि पिछले 22 अप्रैल को काशी पहुंचे स्वामी ज्ञान स्वरूप सानंद ने कहा था कि यदि वह गंगा को साफ और अविरल नहीं कर सके तो उनके जिंदा रहने का कोई मतलब नहीं है और ऐसे में वह अपने प्राण त्याग देंगे। वैज्ञानिक से संन्यासी बने सानंद की मौत के बाद अब देश भर में एक राजनीतिक द्वन्द होने का अंदेशा है। वैसे भी देश भर में सानंद के निधन की जो प्रतिक्रिया हुई है, वह साधारण नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का ट्वीट कर शोक व्यक्त करना बताता है कि हालात के करवट बदलने की पूरी संभावना है। संत की मौत से भाजपा बैकफुट पर है। 2011 में रमेश पोखरियाल निशंक के नेतृत्व में भाजपा का शासन था। गंगा को स्वच्छ रखने के लिए उस समय स्वामी निगमानंद अनशन पर थे, उन्हें भी इसी तरह जौलीग्रांट अस्पताल में भर्ती कराया गया और 13 जून 2011 को उन्होंने भी गंगा के लिए प्राण त्याग दिए थे।
मुख्यमंत्री रावत की सफाई
इस पूरे मामले में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत का कहना है कि स्वामी सानंद से लगातार संवाद बना हुआ था। उनके पास मुख्य सचिव को भेजकर आश्वस्त किया गया कि उनकी मांगो को गंभीरता से लिया जा रहा है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और उमा भारती ने भी स्वामी सानंद से बात की। वह जल विद्युत परियोजनाओं को पूरी तरह बंद करवाना चाहते थे, जो तत्काल संभव नहीं था। जैसे ही स्वामी सानंद ने जल त्यागा तो उन्हें एम्स में भर्ती कराया गया। दुर्भाग्य से उनका निधन हो गया।