उच्चतम न्यायालय ने पर्यावरणविद अधिवक्ता महेश चंद्र मेहता द्वारा 1984 में दायर जनहत याचिका सहित कई मामलों की सुनवाई करते हुए कहा कि तीन महीने के लिए अंतरिम उपाय के रूप में वह 2000 सीसी से अधिक क्षमता वाले इंजनों की एसयूवी और कारों के पंजीकरण पर रोक लगाने के साथ ही 2005 से पहले के पंजीकृत वाणिज्यिक वाहनों के दिल्ली में प्रवेश पर प्रतिबंध लगा सकता है। न्यायालय ने स्पष्ट कहा कि दिल्ली की सड़कों पर सिर्फ सीएनजी से चलने वाली टैक्सियों को ही अनुमति दी जा सकती है
शीर्ष अदालत ने राजधानी में प्रदूषण के बढ़ते स्तर पर काबू पाने के इरादे से 12 अक्तूबर को एक नवंबर से दिल्ली में प्रवेश करने वाले हल्के वाहनों पर सात सौ रूपए और तीन एक्सेल वाहनों पर 1300 रूपए पर्यावरण हर्जाना शुल्क लगाने का आदेश दिया था। यह शुल्क इन वाहनों से वसूल किए जाने वाले टोल टैक्स के अतिरिक्त है। प्रधान न्यायाधीश तीरथ सिंह ठाकुर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि वह राष्ट्रीय राजधानी से बाहर के गंतव्य के लिए दिल्ली के रास्ते होकर जाने वाले वाणिज्यिक वाहनों पर पर्यावरण हर्जाना शुल्क सौ फीसदी बढ़ा सकता है। अब दिल्ली में प्रवेश करने वाले हल्के वाणिज्यिक वाहनों को 1400 रुपए और तीन एक्सेल वाहनों को 2600 रुपए पर्यावरण हर्जाना शुल्क देना पड़ सकता है। समय के अभाव में न्यायालय आज कोई अंतरिम निर्देश नहीं दे सका और अब वह कल इस संबंध में अंतरिम निर्देश दे सकता है।
हाल ही में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने निर्देश दिया था कि दिल्ली में तत्काल प्रभाव से डीजल से चलने वाले वाहनों का पंजीकरण नहीं होगा। न्यायाधिकरण ने केंद्र और राज्य सरकार के विभागों से कहा था कि वे डीजल गाडि़यां नहीं खरीदें। इसीके साथ ही शीर्ष अदालत ने भी प्रदूषण को लेकर छिड़ी बहस में दखल दिया और राजधानी में आवश्यक वस्तुओं को लेकर आने वाले वाहनों के अलावा डीजल से चलने वाली ट्रकों के दिल्ली में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने के सुझाव पर गौर करने के लिए तैयार हो गया था।