शर्मिला के भाई इरोम सिंहजीत ने पीटीआई भाषा को बताया, यह उनकी मजबूत इच्छाशक्ति और रोजाना योगाभ्यास की आदत ही है, जिसने उन्हें शारीरिक रूप से फिट रखा है। नब्बे के दशक में युवती रहीं शर्मिला को प्राकृतिक चिकित्सा के विषय ने बहुत प्रभावित किया। उन्होंने इससे जुड़ा कोर्स शुरू किया।
इसमें प्राकृतिक उपचार के माध्यम के रूप में योग भी शामिल था। शर्मिला ने अपनी जीवनीकार दीप्ती प्रिया महरोत्राा को किताब बर्निंग ब्राइट के लिए बताया था, योग फुटबाॅल की तरह नहीं है। यह अलग है। यदि कोई व्यक्ति योग करता है तो यह उसे लंबा जीवन जीने में मदद कर सकता है। योग करके आप 100 साल तक जी सकते हैं। यह फुटबाॅल जैसे अन्य खेलों के जैसा नहीं है।
उन्होंने याद किया कि उन्होंने 1998-99 में योगासन करने शुरू कर दिए थे और तब से वह हर रोज इसे करती आ रही हैं। शर्मिला को प्रकृति के करीब बताने वाली इस किताब में कहा गया है कि वह योग और टहलने के जरिए अपने शरीर के साथ लगातार प्रयोग करती रहती थीं। चूंकि उनकी अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल को आत्महत्या करने की कोशिश के रूप देखा जाता रहा, इसलिए उन्हें पुलिस की हिरासत में रहना पड़ा। आत्महत्या की कोशिश को एक दंडनीय अपराध माना जाता रहा है। शर्मिला को पिछले 16 साल का लगभग पूरा समय यहां स्थित जवाहरलाल नेहरू इंस्टीट्यूट आॅफ मेडिकल साइंसेज हाॅस्पिटल में बिताना पड़ा।
शर्मिला को नाक के जरिए पेट तक पहुंचने वाली नली के जरिए जबरन तरल आहार दिया जाता था। यह आहार उबले चावल, दाल और सब्जियों से बना होता था। विचाराधीन कैदी होने के नाते अपने अनशन के दौरान शर्मिला ने एकाकी जीवन बिताया। उनसे मिलने कभी-कभार ही लोग आते थे। भाषा एजेंसी