अन्नाद्रमुक की शीर्षस्थ नेत्री तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता के इस कड़े निर्णय से विचलित सांसद शशिकला पुष्पा ने संसद में अपनी जान पर खतरे की आशंका तक व्यक्त कर दी। यह आरोप उसी तरह हास्यास्पद है, जैसे दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पिछले दिनों प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जान का खतरा होने का आरोप लगाया था। कोई प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री अपने या पराये नेता की हत्या के षड्यंत्र का विचार तक नहीं कर सकता है। हां, कानून तोड़ने वाला अपना हो या पराया, उस पर कार्रवाई में रियायत नहीं देने का कठोर रुख अपना सकता है। शशिकला पुष्पा ने हवाईअड्डे पर एक द्रमुक नेता के साथ उत्तेजित कहासुनी के साथ मारपीट तक कर ली। हवाईअड्डे के सुरक्षा कर्मियों को हस्तक्षेप तक करना पड़ा। इसकी सूचना मिलने के बाद सुश्री जयललिता ने शशिकला को बुलाकर पार्टी से निकालने का आदेश जारी कर दिया। देश के विभिन्न राजनीतिक दलों के कई सांसद-विधायक या पार्टी पदाधिकारी सार्वजनिक स्थलों पर अशोभनीय व्यवहार, गाली-गलौच, बंदूकों से फायरिंग के साथ जुलूस के रूप में शक्ति प्रदर्शन और कार्यकर्ताओं को भड़काकर हिंसा फैलाने जैसी हरकतें करते रहे हैं। अधिकांश राजनीतिक दलों का नेतृत्व इसे निजी गलती अथवा जांच-पड़ताल करने या बंद करने में बताकर नरम-गरम बातें सुना देता है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान राजनीतिक विरोध कटुता एवं हिंसा की पराकाष्ठा पर पहुंचने लगा है। शशिकला पुष्पा आखिरकार राज्यसभा की सदस्य हैं। अन्ना द्रमुक ने महत्वपूर्ण जिम्मेदारी के साथ उन्हें उच्च सदन में भेजा था। यदि द्रमुक नेता शिवा ने मुख्यमंत्री जयललिता की आलोचना की भी थी तो लोकतंत्र में विरोधी को आलोचना का हक है। मानहानि जैसी टिप्पणी करने पर कानूनी कार्रवाई के लिए अदालत जाकर दंड दिलवाया जा सकता था। हवाईअड्डे पर सीधे हमला करना तो ज्यादा गंभीर अपराध है। शिवा इस मामले में शशिकला को अदालत से सजा तक दिलवा सकते हैं। इस दृष्टि से जयललिता ने पार्टी से निष्कासन की कार्रवाई के जरिये अनुशासनहीनता बर्दाश्त न करने का सही संदेश दिया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि अन्य राजनीतिक दल भी अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं की आचार संहिता तय कर उल्लंघन की स्थिति में कड़ी कार्रवाई का संदेश देंगे।