मोदी सरकार के तीसरे कैबिनेट विस्तार में कई बड़े बदलाव किए गए। निर्मला सीतारमण को रक्षा मंत्रीऔर पीयूष गोयल को सुरेश प्रभु की जगह रेल मंत्री बनाया गया है। प्रभु को अब उद्योग एवं वाणिज्य मंत्रालय की जिम्मेदारी दी गई है। उमा भारती की कुर्सी बच गई है लेकिन उनसे जल संसाधन मंत्रालय लेकर नितिन गडकरी को दिया गया है। महेश शर्मा को पर्यटन के बजाय पर्यावरण मंत्री बनाया गया है। अरुण जेटली के पास वित्त और कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय बरकरार रहेंगे। उमा भारती की कुर्सी बच गई है लेकिन उनसे जल संसाधन मंत्रालय लेकर नितिन गडकरी को दे दिया गया है।
साथ ही 9 नए चेहरों को राज्य मंत्री बनाया गया। इनमें 4 पूर्व नौकरशाह हैं और 5 सांसद हैं। इन 5 सांसदों का क्या है बैकग्राउंड-
1. जेपी आंदोलन से निकले- अश्विनी कुमार चौबे
कैबिनेट में बीजेपी के कद्दावर नेता और बक्सर से सांसद अश्विनी कुमार चौबे को शामिल किया गया है। अश्विनी चौबे 1970 के दशक में जेपी आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल थे। उन्हें इमरजेंसी के दौरान मीसा के तहत हिरासत में लिया गया था। उन्होंने महादलित परिवारों के लिए 11,000 शौचालय बनाने में भी मदद की। मई 2014 के आम चुनाव में वह बक्सर से सांसद चुने गए। वह ऊर्जा पर संसद की प्राकलन एवं स्थायी समिति के सदस्य हैं। वह केंद्रीय रेशम बोर्ड के भी सदस्य हैं। भागलपुर के दरियापुर के रहने वाले चौबे बिहार विधानसभा के लिए लगातार पांच बार चुने गए। वह 1995 - 2014 तक बिहार विधानसभा के सदस्य रहे। वह बिहार सरकार में आठ साल तक स्वास्थ्य, शहरी विकास और जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी सहित अहम विभागों के पदभार संभाल चुके हैं।
अश्विनी चौबे ने पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष के तौर पर अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की थी। यहीं से लालू, नीतीश, सुशील मोदी भी निकले हैं। वह 1974 से 1987 तक अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य रहे। चौबे ने 1967-68 में बिहार सरकार के खिलाफ छात्र आंदोलन में भाग लिया था। उन्होंने केरल में 1972-73 में अखिल भारत छात्र नेता सम्मेलन में भी भाग लिया था। साल 2013 में अपने परिवार के साथ अश्विनी कुमार चौबे ने भीषण केदारनाथ बाढ़ का सामना किया था। उन्होंने इस आपदा पर ‘केदारनाथ त्रासदी’ पुस्तक भी लिखी है। उन्होंने प्राणिविज्ञान में बीएससी (आनर्स) किया है।
2. जिसे योगी ने चुनाव हरवाया, वो आज मोदी सरकार में मंत्री- शिव प्रताप शुक्ला
वित्त राज्य मंत्री जैसा अहम पद पाने वाले शिव प्रताप शुक्ला से कभी यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ का छत्तीस का आंकड़ा रहा है। कथित तौर पर योगी उन्हें अपने समर्थक से विधानसभा चुनाव में हरवा चुके हैं। बात वर्ष 2002 के विधानसभा चुनाव की है। गोरखपुर सीट से योगी अपने खासमखास राधा मोहन दास अग्रवाल को टिकट दिलाना चाहते थे। लेकिन उस सीट के मौजूदा विधायक रहे शिव प्रताप शुक्ला को बीजेपी उन्हें टिकट देना चाहती थी। पार्टी ने ऐसा ही किया।
इसकी वजह से योगी नाराज हो गए थे। योगी ने बागी तेवर अपनाते हुए बीजेपी प्रत्याशी शिव प्रताप शुक्ला के खिलाफ राधा मोहन दास अग्रवाल को अखिल भारतीय हिंदू महासभा के टिकट पर चुनाव मैदान में उतारा।
योगी का वहां प्रभाव इतना था कि अग्रवाल चुनाव जीत गए और शुक्ला को तीसरे नंबर पर संतोष करना पड़ा। जबकि शुक्ला यूपी में तीन मुख्यमंत्रियों की कैबिनेट का अंग रह चुके थे. इस हार के बाद ठीक 14 साल तक उन्होंने सियासी वनवास काटा. लेकिन अमित शाह की वजह से उन्हें 2016 में राज्यसभा में जाने का मौका मिला। हालांकि, अब योगी के उनकी कड़वाहट कम हो गई है। वे योगी के साथ मंच पर दिखते रहते हैं। उनके दिन फिरे तो राज्यसभा चुनाव के नामांकन के दौरान उन्हें 2002 में हराने वाले डॉ. अग्रवाल ही उनके प्रस्तावक बने। वनवास काटने के बाद भी शुक्ला लगातार संगठन के लिए काम करते रहे। योगी आदित्यनाथ ने भी पुराने गिले-शिकवे भुलाकर उन्हें गले लगाया. गोरखपुर के खजनी तहसील निवासी शुक्ला अब मोदी कैबिनेट का हिस्सा बन गए हैं। हालांकि इससे गोरखपुर में दो पॉवर सेंटर होने की आशंका भी जताई जा रही है।
3.स्कूटर पर चलने वाले सादगी पसंद- वीरेंद्र कुमार
मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ संसदीय क्षेत्र से निर्वाचित सांसद डॉ. वीरेंद्र कुमार की राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से नजदीकी और संगठन के प्रति समर्पण ने उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में जगह दिलाई है। सहजता और सादगी उनकी खासियत है। वह भले ही 6वीं बार सांसद बने हैं, लेकिन उनके अंदाज में कोई बदलाव नहीं आया है।
वीरेंद्र कुमार दलित वर्ग से हैं, लेकिन उन्होंने खुद को दलित नेता के तौर पर स्थापित नहीं किया है। वह 6वीं बार सांसद बने हैं। 4 बार सागर संसदीय क्षेत्र से और परिसीमन के बाद सागर संसदीय क्षेत्र के सामान्य सीट हो जाने के बाद वह 2 बार टीकमगढ़ संसदीय क्षेत्र से निर्वाचित हुए। वीरेंद्र कुमार उच्च शिक्षित हैं। वह अर्थशास्त्र में एमए हैं, तो बाल श्रम पर उन्होंने पीएचडी की है। यही कारण है कि कई बार श्रमिक और उनके कल्याण से संबंधित संसदीय समितियों में उन्हें बतौर सदस्य शामिल किया गया।
सागर में 27 फरवरी, 1954 को जन्मे वीरेंद्र कुमार बचपन से ही संघ से जुड़े रहे हैं। उनकी राजनीति की शुरुआत अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के सागर जिले के संयोजक के रूप में हुई। इसके बाद वह भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो), बजरंग दल, फिर बीजेपी के विभिन्न पदों पर रहे, फिर सांसद बने और लगातार 6 बार उन्होंने संसदीय चुनाव जीता है। वीरेंद्र कुमार की सादगी और सहजता का उनके संसदीय क्षेत्र का लगभग हर व्यक्ति कायल है।
मंत्री बनने से पहले अपने रहन-सहन को लेकर उन्होंने संवाददाताओं से कहा कि वह जब पहली बार सांसद बनकर दिल्ली पहुंचे थे, जैसा कुर्ता पाजामा पहनते थे, आज भी वैसे ही पहनते हैं। उन्हें जानने वाले बताते हैं कि वीरेंद्र कुमार का किसी गुट से कभी नाता नहीं रहा। उनके पिता अमर सिंह भी संघ के सक्रिय सदस्य रहे हैं। स्कूटर उनकी सवारी है तो उनके पिता ने पंचर की दुकान चलाकर अपना जीवनयापन किया था। उनकी सादगी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वह एक चुनाव प्रचार के लिए निकले थे, और सड़क किनारे एक बच्चे को साइकिल का पंचर बनाते देखा, तो उन्हें लगा कि बच्चा अपने हुनर में माहिर नहीं है तो वह वहीं रुक गए और उस बच्चे को पंचर बनाना सिखाने लगे।
वीरेंद्र ने कभी भी अपने को दलित नेता के तौर पर स्थापित करने की कोशिश नहीं की। पार्टी ने उन्हें उनकी निष्ठा और समर्पण के लिए मंत्री पद देकर पुरस्कृत किया है।
4. ताइक्वांडो मैन- अनंत कुमार हेगड़े
मोदी सरकार में जगह पाने वाले अनंत कुमार हेगड़े कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ संसदीय क्षेत्र से पांचवीं बार चुनकर लोकसभा पहुंचे हैं और राजनीति के साथ ही कोरियाई मार्शल आर्ट ताइक्वांडो में भी सिद्धहस्त हैं। ग्रामीण विकास में गहरी दिलचस्पी रखने वाले हेगड़े इस दिशा में काम करने वाले गैर सरकारी संगठन 'कदंबा' के संस्थापक अध्यक्ष भी हैं। 'कदंबा' ग्रामीण विकास, ग्रामीण स्वास्थ्य, एसएचजी, ग्रामीण विपणन और अन्य ग्रामीण कल्याण के क्षेत्र में काम करती है।
हेगड़े मात्र 28 साल की उम्र में पहली बार 1996 में ग्यारहवीं लोकसभा के लिये चुनकर संसद पहुंचे। उसके बाद वह 1998 (12 वीं), 2004 (14 वीं), 2009 (15 वीं) और 2014 (16 वीं) लोकसभा के लिये चुने गए। लोकसभा सदस्य के रूप में यह उनका पांचवां कार्यकाल है। बचपन से ही आरएसएस से जुड़े हेगड़े विदेश मामलों और मानव संसाधन विकास पर संसद की स्थायी समिति के सदस्य हैं।
संसद सदस्य के तौर पर अपने विभिन्न कार्यकाल के दौरान वह वित्त, गृह, मानव संसाधन विकास, वाणिज्य, कृषि और विदेश मामलों समेत संसद की विभिन्न स्थायी समितियों के सदस्य रह चुके हैं। हेगड़े का जन्म कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ जिले के सिरसी में 20 मई 1968 को हुआ था। उनके पिता का नाम दत्तात्रेय हेगड़े और मां का नाम ललिता हेगड़े है। उन्होंने कर्नाटक के सिरसी स्थित एम एम आर्ट्स एंड साइंस कॉलेज से इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई की है
5. राजस्थान की राजनीति से आने वाले- गजेंद्र सिंह शेखावत
राजस्थान से जोधपुर सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत को भी मंत्रिमंडल में शामिल किया है। उन्हें कृषि राज्यमंत्री बनाया गया है। आपको बता दें कि तीन अक्टूबर 1967 को सीकर के मेहरोली गांव में जन्मे गजेंद्र सिंह शेखावत के पिता शंकर सिंह शंखावत जलदाय विभाग में वरिष्ठ अधिकारी के पद से सेवानिवृत्त हुए। पिता की सर्विस राजस्थान भर में अनेक स्थानों पर रही, ऐसे में उनकी स्कूली शिक्षा कई स्थानों पर हुई। स्कूली शिक्षा के बाद कॉलेज में कदम रखा तो छात्र राजनीति में सक्रिय रहे। मंत्री शेखावत ने जोधपुर के जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय में वर्ष 1992 में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के टिकट पर अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा और भारी मतों से जीत हासिल की। दर्शनशास्त्र में एमए कर चुके शेखावत प्रखर वक्ता हैं। उन्होंने कई वाद-विवाद प्रतियोतिगतों में विवि का प्रतिनिधित्व किया।
गजेंद्र सिंह छात्र राजनीति से ही संघ परिवार से जुड़े रहे हैं और उन्हें संघ का खास माना जाता रहा है। सांसद ने छात्र जीवन के बाद समाजसेवा को अपनाया और स्वदेशी जागरण मंच व सीमा जन कल्याण समिति में कार्य किया। वर्ष 2014 के लोकसभा में चुनाव जोधपुर संसदीय सीट से भारतीय जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा। शेखावत ने कांग्रेस उम्मीदवार चन्द्रेश कुमारी को करारी मात देकर 401051 मतों से करारी शिकस्त दी। इसके बाद मोदी टीम के साथ जुड़कर सक्रियता से काम किया और जोधपुर ही नहीं बल्कि पूरे मारवाड़ और राजस्थान में लोगों का दिल जीता। शेखावत को हाल ही में किसान मोर्चा का राष्ट्रीय महामंत्री बनाया गया।