अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टलवाने की कपिल सिब्बल व अन्य वकीलों की कोशिश कामयाब रही है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई के लिए 8 फरवरी, 2018 की तारीख तय की है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों से कहा है कि वह इस मामले से जुड़े सभी दस्तावेज जल्द से जल्द जमा कराएं।
इससे पहले कांग्रेस के नेता कपिल सिब्बल ने अयोध्या मामले की सुनवाई 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद कराने की मांग की थी। सिब्बल का कहना था कि यह मामला बेहद संवेदनशील है और इसका राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश की जा सकती है। इसलिए सुनवाई 2019 के लोकसभा चुनाव के बाद होनी चाहिए। इस मामले में कपिल सिब्बल सुन्नी वक्फ बोर्ड की ओर से पेश हुए थे।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 2019 के बाद सुनवाई करने की कपिल सिब्बल की मांग ठुकरा दी, लेकिन अगली सुनवाई के लिए गुजरात चुनाव के बाद की तारीख तय की है। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा कहा है कि सुनवाई को 8 फरवरी के बाद आगे नहीं टाला जाएगा। सभी तक फरवरी तक पूरी तैयारी कर लें।
कपिल सिब्बल के अलावा मुस्लिम पक्षकारों की ओर से पैरवी कर रहे जाने-माने वकील राजीव धवन और दुष्यंत दवे ने जल्द सुनवाई की स्थिति में बहिष्कार करने की चेतावनी भी दे डाली थी। इससे अदालत में काफी गरमा-गरमी भी हुई। इन्होंने मामले की सुनवाई पांच या सात जजों की बैंच को सौंपने की मांग भी की, लेकिन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली विशेष पीठ ने नामंजूर कर दिया।
सिब्बल का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट को इस मामले की सुनवाई 2019 में लोकसभा चुनाव के बाद करनी चाहिए। क्योंकि यह संपत्ति का कोई सामान्य मामला नहीं है बल्कि ये देश सेक्युलर ताने-बाने का सवाल है। अदालत से बाहर भी इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं। मौजूदा माहौल इस मामले की सुनवाई के लिहाज से ठीक नहीं है।
हिंदू पक्षों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे और सीएस वैद्यनाथन ने सिब्बल की दलील पर आपत्ति जाहिर करते हुए कहा कि अयोध्या मामले को दूसरे मामलों की तरह ही देखा जाना चाहिए।
चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस. अब्दुल नजीर की पीठ ने माना कि यह कोई सामान्य मामला नहीं है। लेकिन उन्होंने कहा कि कहीं से तो शुरुआत करनी होगी। चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने कहा कि जजों के इस बात का कोई फर्क नहीं पड़ता कि बाहर क्या चल रहा है।
क्या है मामला?
अयोध्या विवाद में 2010 में आए इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ कई पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। सुप्रीम कोर्ट ने इन याचिकाओं पर सुनवाई करने का फैसला किया है। 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने फैसला दिया था कि विवादित स्थल हिंदुओं और मुसलमानों में बांट दिया जाए। अस्थाई मंदिर के आसपास की दो तिहाई जमीन हिंदुओं को दे दी जाए। लेकिन मामले से जुड़े विभिन्न पक्षों ने इस आदेश को नहीं माना और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
- एजेंसी इनपुट