टाइम मैगजीन का कवर दुनिया में होने वाले बदलावों को दिखाता है लेकिन अपने ही कवर स्टोरी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर पहले देश की जरूरत बताना और फिर डिवाइडर इन चीफ यानी सबसे बड़ा बांटने वाला कहना सवाल जरूर खड़ा करता है कि आखिर पांच साल देश की सत्ता पर काबिज होने के बाद इस तरह की टिप्पणी मैगजीन को क्यों करनी पड़ी। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि मैगजीन के अलावा पांच साल के मोदी के कामकाज को आधार बनाकर ही आकलन करें तो पीएम मोदी को देश के बांटने वाले की संज्ञा देना कोई गलत नहीं होगा।
पीएम मोदी के चुनाव में हाल के बयानों से भी उनकी निष्पक्षता को लेकर सवाल उठते रहे हैं। राजनीतिक विश्लेषक अरविंद मोहन कहते हैं कि नरेंद्र मोदी ने हिन्दू और मुसलमानों के बीच भाईचारे की भावना को बढ़ाने के लिए कोई इच्छा नहीं जताई। उनके बयानों से साफ झलकता है कि वह किसी भी तरह ध्रुवीकरण कर फिर से सत्ता हथियाना चाहते हैं। वह चुनावों में कहीं राष्ट्रवाद की बात करते हैं या फिर पाकिस्तान की। साफ है कि वह सिर्फ बंटवारे को ही आधार बनाने में रहे हैं। इससे उनकी छवि का पता चलता है। गुजरात में 2002 के दंगों के दौरान भी मोदी की चुप्पी को लेकर सवाल उठते रहे हैं।
बढ़ी लिंचिंग की घंटनाएं
लिंचिंग और गाय के नाम पर मुसलमानों पर बार-बार हमले हुए और उन्हें मारा गया। इसे भी बंटवारे की दिशा में एक कदम माना जा सकता है। अरविंद मोहन का कहना है कि मोदी के पास पांच साल में कोई विजन ही नहीं रहा। उनके कार्यकाल में गाय के तमाम रखवाले जगह जगह देखे जा सकते थे। एक वर्ग विशेष के प्रति वे हिंसा तक पर भी उतारू हो जाते थे। एक भी ऐसा महीना न गुजरा हो जब लोगों के स्मार्टफोन पर वो तस्वीरें न आई जिसमें गुस्साई हिन्दू भीड़ एक मुस्लिम को पीट न रही हो। मोदी के पूरे कार्यकाल में हिंदू-मुस्लिम की खाई को देखा जा सकता है।
नोटबंदी साबित हुआ गलत फैसला
मोदी के नोटबंदी के फैसले को भी कोई कायमाब नहीं माना जा सकता। इसमें जहां कारोबार ठप हुए वहीं किसानों को भी दिक्कतें आईँ। इससे न तो काला धन निकलकर सामने आया और न ही आतंकवाद पर रोक लग पाई। राजनीतिक विश्लेषक अरविंद मोहन का कहना है कि मोदी का यह फैसला भी गलत साबित हुआ बल्कि जीडीपी को घटाने बढ़ाने के लिए उन्होंने फर्जी कंपनियों का सहारा लिया।
अरविंद मोहन कहते हैं कि वे अपने साथ न तो किसी समझदार को रखते हैं और न ही रहने देते हैं। उनका मंत्रिमंडल भी दो समूह में बंटा नजर आता है। समझदार मंत्री उनसे अलग ही दिखाई देते हैं। जबकि पहले के प्रधानमंत्री अपने पास समझदार सलाहकारों की टीम रखते थे और उनकी राय के आधार पर काम करते थे लेकिन पीएम मोदी का कोई विजन ही दिखाई नहीं देता। केवल पढ़कर बोलते हैं और बंटवारे की राजनीति ही उनका लक्ष्य हैं।
इसके पहले कब कवर पर आए
नरेंद्र मोदी जब 2014 में भारत के प्रधानमंत्री बने तब अगले ही साल 2015 में वह टाइम मैगजीन के कवर पेज पर आये थे। मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद टाइम ने उनका इंटरव्यू भी लिया था। मोदी 2012 में गुजरात के सीएम रहते हुए भी टाइम के कवर पेज पर आ चुके हैं। यहीं नहीं, टाइम ने मोदी के पीएम रहते उन्हें पूर्व में विश्व के 100 प्रभावशाली व्यक्तियों की सूची में भी शामिल किया है।