बोर्ड के सदस्य कमाल फारूकी ने कहा, सिर्फ पर्सनल लॉ बोर्ड या इसमें शामिल महिलाएं ही समान नागरिक संहिता के खिलाफ नहीं है, बल्कि देश भर की मुस्लिम महिलाएं इसे नहीं चाहतीं। वे शरिया कानून के तहत सुरक्षित महसूस करती हैं। तीन तलाक की परंपरा के समर्थन में बोर्ड ने हस्ताक्षर अभियान चलाया है।
फारूकी ने कहा, इस अभियान को राजस्थान, गुजरात, उप्र, बिहार, दिल्ली, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में मुस्लिम महिलाओं का समर्थन मिल चुका है। हमें दूसरे जगहों से भी समर्थन मिल रहा है। पर्सनल लॉ बोर्ड की महिला सदस्य असमा जेहरा ने कहा कि पूरे देश की मुस्लिम महिलाएं इस मांग के साथ आ रही हैं कि पर्सनल लॉ की रक्षा होनी चाहिए।
उधर, तीन तलाक की बहस के मुद्दे पर मुसलमानों के संगठन ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल ने आज कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ में बदलाव करने के प्रयासों का पुरजोर विरोध किया जाएगा। ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल (एआईएमसी) के 18वें वार्षिक सम्मेलन के समापन के बाद आज भोपाल में काउंसिल के महासचिव डॉ. मंजूर आलम ने संवाददाताओं से कहा, तीन तलाक के मुद्दे पर हम मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के रुख का समर्थन करते हैं और पर्सनल लॉ में किसी भी तरह के बदलाव की खिलाफत करते हैं।
शीर्ष अदालत में तीन तलाक के मुद्दे को मुस्लिम महिला संगठनों द्वारा ले जाए जाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि राजनेता अपने राजनीतिक फायदे के लिए हमारे समाज को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि आरएसएस और भाजपा भारतीय संविधान के खिलाफ हैं। भारत का संविधान धर्मनिरपेक्षता, समानता और न्याय के सिद्धातों पर टिका है। आलम ने बताया कि एआईएमसी जाति, वर्ग धर्म और क्षेत्र आदि से परे संविधान के तहत हासिल मुलसमानों और अन्य पिछड़े नागरिकों के हकों के समर्थन में काम करता है। (एजेंसी)