संयुक्त राष्ट्र की संस्था, यूनीसेफ ने कहा है कि भारत के श्रम कानूनों में बदलावों से और अधिक बच्चों के अनियमित परिस्थितियों में काम करने का मार्ग प्रशस्त होगा। हालांकि, यूनीसेफ ने 14 साल से कम उम्र के बच्चों के काम पर निषेध लगाने वाले कानून का स्वागत किया है पर इसने पारिवारिक उद्यमों में बच्चों के काम करने के प्रावधानों पर चिंता भी जताई है। साल 2011 की जनगणना का हवाला देते हुए यूनीसेफ ने कहा, एससी और एसटी, इन दोनों समूहों में ग्रामीण इलाकों में बच्चों के शहरी क्षेत्र के बच्चों की तुलना में काम करने की अधिक संभावना है जबकि काम कर रहे कई लड़के-लड़कियों को स्कूल छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है।
संस्था ने कहा कि यूनीसेफ इंडिया इस बात को लेकर भी चिंतित है कि संशोधित विधेयक जोखिमग्रस्त माने जाने वाले पेशों की सूची में काफी कमी कर सकता है जिससे और अधिक बच्चों के अनियमित परिस्थितियों में काम करने का मार्ग प्रशस्त होगा। गौरतलब है कि राज्य सभा ने 19 जुलाई को बाल श्रम (निषेध एवं नियमन) संशोधन विधेयक पारित किया है जो अपने परिवार की मदद को छोड़कर सभी कामों में 14 साल से कम उम्र के बच्चों के रोजगार पर निषेध लगाता है। इसका उल्लंघन होने पर दो साल तक की कैद की सजा का प्रावधान है। यह विधेयक 14 साल से कम उम्र के बच्चों के रोजगार को नियोक्ताओं के लिए संज्ञेय अपराध बनाता है और माता-पिता के लिए जुर्माने की व्यवस्था करता है।
यूनीसेफ ने कहा है कि भारत में करीब 1.02 करोड़ बच्चे काम कर रहे हैं। यह वृद्धि खासतौर पर इसलिए है कि बच्चे प्रवास कर रहे हैं या खतरनाक लघु उद्यमों या कंस्ट्रक्शन साइटों के लिए उनकी तस्करी की जा रही है। परिवार या घरेलू उद्यम भी भारत में बच्चों के लिए अक्सर खतरनाक रहा है। इसमें कपास के खेतों में उनका काम करना, चूड़ियां और बीड़ी बनाना, तंबाकू उत्पाद से जुड़े काम, कालीन बुनाई और धातु के कार्य शामिल हैं। विधेयक को मजबूत करने और बच्चों के लिए एक संरक्षणात्मक ढांचे के लिए यूनीसेफ इंडिया ने पारिवारिक उद्यमों में मदद करने से बच्चों को हटाने की सिफारिश की है।