देश की राजधानी दिल्ली में डॉक्टर सड़क पर हैं। देश के सबसे बड़े चिकित्सा संस्थान एम्स से कुछ ही दूरी पर सैकड़ों डॉक्टर ‘एनएमसी को फेंक दो...’ के नारे लगाते नजर आए। दरअसल, नेशनल मेडिकल कमीशन (एनएमसी) बिल के खिलाफ दिल्ली के रेजिडेंट डॉक्टरों ने अनिश्चितकालीन हड़ताल की घोषणा कर दी है। फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन’ (एफओआरडीए) ने आरोप लगाया कि विधेयक ‘गरीब विरोधी, छात्र विरोधी और अलोकतांत्रिक’ है। डॉक्टरों ने केंद्र सरकार को चेतावनी देते हुए कहा है कि हर हाल में इस बिल को संशोधित करना होगा, वरना डॉक्टरों की यह हड़ताल इसी तरह जारी रहेगी। हांलाकि अब सरकार की ओर से इस मसले पर बातचीत के संकेत मिलने की बात सामने आई है लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि वे मांग पूरी होने तक अपनी लड़ाई जारी रखेंगे।
प्रदर्शन स्थल पर मौजूद फेडरेशन ऑफ रेजीडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन से जुड़े डॉ.पवन का कहना है कि एनएमसी बिल स्वास्थ्य विरोधी और गरीब विरोधी है। इससे स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा जाएगी। उन्होंने बताया कि विधेयक में नीट पीजी और एक्जिट एग्जाम के अलावा निजी मेडिकल कॉलेजों में 50 फीसदी सीटों पर फीस नियंत्रण जैसे कानून गलत हैं।
उन्होंने कहा कि इस कानून के लागू होते ही पूरे देश के मेडिकल कॉलेजों में (फिर वो चाहे सरकारी हो या फिर प्राइवेट) दाखिले के लिए सिर्फ एक परीक्षा ली जाएगी। इस परीक्षा का नाम नेशनल एलिजिबिलिटी कम एंट्रेंस टेस्ट है। लेकिन इसे लेकर बिल में स्पष्टता नहीं है। एक बार फेल हुए छात्रों के लिए क्या प्रावधान है इसमें साफ नहीं है।
इस विधेयक के तहत एक ब्रिज कोर्स कराया जाएगा, जिसे करने के बाद आयुर्वेद, होम्योपेथी के डॉक्टर भी एलोपैथिक इलाज कर पाएंगे। इसी बिंदु का रेजिडेंट डॉक्टर खुलकर विरोध कर रहे हैं।
डॉ. पवन का कहना है कि इस बिल में कम्युनिटी हेल्थ प्रोवाइडर शब्द को ठीक से परिभाषित नहीं किया गया है, जिससे अब नर्स, फार्मासिस्ट और पैरामेडिक्स आधुनिक दवाओं के साथ प्रैक्टिस कर सकेंगे और वह इसके लिए प्रशिक्षित नहीं होते हैं।
वहीं प्रदर्शन कर रही डॉक्टर जाकिया का भी कहना है कि क्रॉसपैथी को लाना सिरे से खारिज करने वाला है।
मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के अफसरों की नियुक्ति चुनाव से होती थी लेकिन अब मेडिकल कमीशन में सरकार द्वारा गठित एक कमेटी अधिकारियों का चयन करेगी।
इस पर डॉक्टर जाकिया कहती हैं कि विधेयक के तहत चार बोर्ड बनाए जाएंगे, जिनमें चिकित्सीय क्षेत्र के लोगों की सहभागिता न के बराबर है। बाहरी क्षेत्र के अधिकारियों को चिकित्सीय वर्ग को समझने में काफी कठिनाइयां आएंगी।
सरकार बातचीत के लिए राजी
एफओआरडीए की सदस्य डॉ. गरिमा ने बताया, “सरकार हमारी मांग पर बातचीत के लिए राजी हो गई है। स्वास्थ मंत्रालय ने हमारे प्रतिनिधि मंडल को मंत्रालय बुलाया है। लेकिन हम हड़ताल तभी खत्म करेंगे जब हमारी मांगें पूरी होंगी।”
‘झोला-झाप’ डॉक्टरों को बढ़ावा मिलेगा
एम्स आरडीए, एफओआरडीए और यूनाइटेड आरडीए ने संयुक्त बयान में कहा कि इस विधेयक के प्रावधान कठोर हैं। बयान में कहा गया है कि विधेयक को बिना संशोधन के राज्यसभा में रखा जाता है तो पूरे देश के डॉक्टर कड़े कदम उठाने के लिए मजबूर हो जाएंगे जो समूचे देश में स्वास्थ्य सेवाओं को बाधित कर सकता है। हम अनिश्चितकालीन समय के लिए जरूरी और गैर जरूरी सेवाओं को बंद कर देंगे। डॉक्टरों का कहना है कि केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री खुद एक डॉक्टर हैं। उन्होंने संसद की स्थायी समिति की अहम सिफारिशों को शामिल करने के बजाय विधेयक के कई प्रावधानों को बदल दिया है और नए प्रावधान डॉक्टरों के लिए नुकसानदेह हैं। डॉक्टरों ने दावा किया कि विधेयक से ‘झोला-झाप’ डॉक्टरों को बढ़ावा मिलेगा।
क्या कहती है सरकार?
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री हर्षवर्धन ने सोमवार को लोकसभा में कहा कि राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग विधेयक-2019 का मकसद चिकित्सा क्षेत्र में भ्रष्टाचार पर रोक लगाना है। इसमें भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) की जगह राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के गठन का प्रावधान है।
हर्षवर्धन ने सदन में इस विधेयक पर चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि सरकार सबको बेहतर स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने के लिए प्रतिबद्ध है। उन्होंने कहा कि भारतीय चिकित्सा परिषद (एमसीआई) में लंबे समय से भ्रष्टाचार की शिकायतें आ रही थीं। इस मामले में सीबीआई जांच भी हुई। ऐसे में इस संस्था में बदलाव करना जरूरी है। उन्होंने कहा कि विधेयक में राज्यों के अधिकारों का पूरा ख्याल रखा गया है। राज्यों को इसमें संशोधन करने का अधिकार होगा। हर्षवर्धन ने कहा कि मोदी सरकार भ्रष्टाचार को बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करने की नीति पर अमल कर रही है। यह विधेयक भी इसी भावना के साथ लाया गया है। सरकार का यह कदम चिकित्सा क्षेत्र के इतिहास में सबसे बड़े सुधार के तौर पर दर्ज होगा।
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