असल बात यह कि क्या कोयला मंत्रालय पर्यावरण मंत्रालय की राय मानेगा? क्योंकि इससे पहले भी दो बार पर्यावरण मंत्रालय की असहमति के बावजूद सिंंगरौली ज़िले के इस इलाक़े में खनन की मंजूरी मिल चुकी है। हिंडाल्को और एस्सार पावर जैसी बड़ी कंपनियां यहां सक्रिय हैं जो अपना काम निकालने के लिए हर तरीक़ा अपनाना जानती हैं।
पर्यावरण मंत्रालय के दस्तावेजों के मुताबिक़ प्रोजेक्ट को दूसरे चरण की मंजूरी मिलने के बावजूद महान ब्लॉक को नीलामी से बाहर रखा जा सकता है क्योंकि यह ‘अक्षत’ या उस तरह के जंगल की श्रेणी में आता है, जहां खनन नहीं किया जा सकता है। इसे मंत्रालय ने ‘नो गो एरिया’ कहा है।
अगर वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के सुझाव का पालन होता है तो यह महान जंगल क्षेत्र को बचाने के लिये चल रहे आंदोलन की बड़ी जीत होगी।
इस आंदोलन की हिस्सा रही ग्रीन पीस की प्रिया पिल्लई को सरकार ने हाल ही में लंदन जाने से रोक दिया था।
प्रिया का कहना है कि हम भारत के इस सबसे प्राचीन साल जंगल को कोयला खदान से बचाना चाहते हैं। अगर महान को अक्षत रखा जाता है तो इसी तरह छत्रसाल, डोंग्रीताल जैसे इस क्षेत्र के दूसरे कोयला ब्लॉक को भी अक्षत घोषित किया जा सकता है।
अब एक बार फिर गेंद कोयला मंत्रालय के पाले में है जिसे पर्यावरण मंत्रालय की सिफारिश पर अपनी स्थिति स्पष्ट करनी है।
महान कोल ब्लॉक को साल 2006 में हिंडाल्को व एस्सार पावर के संयुक्त उपक्रम को आवंटित किया गया था। इस ब्लॉक से 14 सालों तक एस्सार पावर प्लांट और हिंडाल्को के अल्यूमिनियम प्रोजेक्ट को कोयला आपूर्ति होनी थी। इसी खदान को रोकने के लिये जारी संघर्ष के तेज होने को प्रिया के ‘ऑफलोडिंग’ से जोड़ कर देखा गया था। प्रिया लंदन में ब्रिटिश सांसदों को इसी मुद्दे के बारे में जानकारी देने जा रही थी।