मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय की इंदौर पीठ ने धार के भोजशाला-कमाल मौला मस्जिद परिसर के सर्वेक्षण की रिपोर्ट पेश करने के लिए बृहस्पतिवार को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को 10 दिन की मोहलत दी। अदालत ने आदेश दिया कि एएसआई 11वीं सदी के इस विवादित स्मारक के परिसर में करीब तीन महीने चले सर्वेक्षण की पूरी रिपोर्ट 15 जुलाई तक प्रस्तुत करे।
इस अर्जी में मुख्य तौर पर यह दलील दी गई थी कि हैदराबाद के राष्ट्रीय भू-भौतिकीय अनुसंधान संस्थान (एनजीआरआई) ने इस विवादित परिसर के ग्राउंड पेनेट्रेटिंग रडार (जीपीआर)-ज्योग्राफिक इन्फर्मेशन सिस्टम (जीआईएस) सर्वेक्षण के दौरान जमा किए गए विशाल डेटा का अध्ययन करके अंतिम रिपोर्ट पेश करने के लिए एएसआई से तीन सप्ताह का समय मांगा है।
सुनवाई के दौरान एएसआई की ओर से अदालत को बताया गया कि उसने इस परिसर का सर्वेक्षण पूरा कर लिया है। वरिष्ठ अधिवक्ता सलमान खुर्शीद ने मुस्लिम पक्ष की मौलाना कमालुद्दीन वेलफेयर सोसायटी की ओर से पैरवी करते हुए कहा कि एएसआई को अदालत में इस सिलसिले में स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए कि सर्वेक्षण खत्म होने के बाद वह विवादित परिसर में आगे कोई खुदाई नहीं करेगा।
इस पर एएसआई के वकील हिमांशु जोशी ने कहा कि इस परिसर में कोई खुदाई नहीं की जा रही है, बल्कि मैदान को समतल किया जा रहा है ताकि बारिश में जमा होने वाले पानी से इस स्मारक को कोई नुकसान नहीं पहुंचे। उच्च न्यायालय ने मामले में अगली सुनवाई के लिए 22 जुलाई की तारीख तय की है। भोजशाला को हिंदू समुदाय वाग्देवी (देवी सरस्वती) का मंदिर मानता है, जबकि मुस्लिम पक्ष 11वीं सदी के इस स्मारक को कमाल मौला मस्जिद बताता है। यह परिसर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) द्वारा संरक्षित है।
"हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस" नामक संगठन की अर्जी पर मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने 11 मार्च को एएसआई को भोजशाला-कमाल मौला मस्जिद परिसर का वैज्ञानिक सर्वेक्षण करने का आदेश दिया था। इसके बाद एएसआई ने 22 मार्च से इस विवादित परिसर का सर्वेक्षण शुरू किया था जो हाल ही में खत्म हुआ।
भोजशाला को लेकर विवाद शुरू होने के बाद एएसआई ने सात अप्रैल 2003 को एक आदेश जारी किया था। इस आदेश के अनुसार पिछले 21 साल से चली आ रही व्यवस्था के मुताबिक हिंदुओं को प्रत्येक मंगलवार भोजशाला में पूजा करने की अनुमति है, जबकि मुस्लिमों को हर शुक्रवार इस जगह नमाज अदा करने की इजाजत दी गई है। "हिंदू फ्रंट फॉर जस्टिस’’ ने अपनी याचिका में इस व्यवस्था को चुनौती दी है।