प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को प्रख्यात वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन के निधन पर दुख व्यक्त किया और कहा कि कृषि में उनके अभूतपूर्व काम ने लाखों लोगों के जीवन को बदल दिया और भारत की खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की। भारत में हरित क्रांति के जनक कहे जाने वाले स्वामीनाथन (98) का उम्र संबंधी बीमारी के कारण गुरुवार को निधन हो गया। उनकी तीन बेटियां जीवित हैं।
मोदी ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा, "डॉ एमएस स्वामीनाथन जी के निधन से गहरा दुख हुआ। हमारे देश के इतिहास में एक बहुत ही महत्वपूर्ण समय में, कृषि में उनके अभूतपूर्व काम ने लाखों लोगों के जीवन को बदल दिया और हमारे देश के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की।" पीएम मोदी ने कहा कि वह स्वामीनाथन के साथ अपनी बातचीत को हमेशा याद रखेंगे और कहा कि भारत को प्रगति करते देखने का उनका जुनून अनुकरणीय है। पीएम मोदी ने लिखा, "उनका जीवन और कार्य आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करेगा। उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति संवेदना। ओम शांति।"
7 अगस्त, 1925 को तमिलनाडु के तंजावुर जिले में जन्मे, स्वामीनाथन ने धान की उच्च उपज देने वाली किस्मों को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे यह सुनिश्चित करने में मदद मिली कि भारत के कम आय वाले किसान अधिक उपज उत्पादन करें।
स्वामीनाथन ने 1949 में आलू, गेहूं, चावल और जूट के आनुवंशिकी पर शोध करके अपना करियर शुरू किया। जब भारत बड़े पैमाने पर अकाल के कगार पर था, जिसके कारण खाद्यान्न की कमी हो गई, स्वामीनाथन ने नॉर्मन बोरलॉग और अन्य वैज्ञानिकों के साथ मिलकर गेहूं की उच्च उपज वाली किस्म के बीज विकसित किए। स्वामीनाथन को संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम द्वारा "इकोनॉमिक इकोलॉजी के जनक" के रूप में जाना जाता है।
भारत में अधिक उपज देने वाली गेहूं और चावल की किस्मों को डेवेलोप करने के कारण उन्हें 1987 में पहले विश्व खाद्य पुरस्कार से सम्मानित किया गया। जिसके बाद उन्होंने चेन्नई में एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन की स्थापना की। स्वामीनाथन को 1971 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार और 1986 में अल्बर्ट आइंस्टीन विश्व विज्ञान पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था।
उन्हें पद्म श्री, पद्म भूषण और पद्म विभूषण से भी सम्मानित किया गया था। वह एच के फ़िरोदिया पुरस्कार, लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय पुरस्कार और इंदिरा गांधी पुरस्कार के प्राप्त कर चुके हैं।