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' पंजाब में 84 का माहैल नहीं पर चौकसी जरूरी '

25 साल बाद पंजाब का अमन भंग कर गुरदासपुर में खेला गया आतंक का खेल बताता है कि सब कुछ सामान्य नहीं है। जम्मू-कश्मीर की सीमा पार कर दहशतगर्दों ने यह संदेश दिया कि वे जम्मू-कश्मीर के अलावा और भी कहीं हिंसा को अंजाम दे सकते हैं। गुरदासपुर हमले में एक पुलिस अधीक्षक सहित सात लोगों की हत्या कर दहशतगर्दों ने एक दफा फिर पंजाब को खौफजदा कर दिया है।
' पंजाब में 84 का माहैल नहीं पर चौकसी जरूरी '

आतंकी घटना का ठीकरा केंद्र सरकार के सिर

गुप्तचर एजेंसियों ने पंजाब सरकार को संभावित आतंकी हमले के बारे में चेताया था। बावजूद इसके सुरक्षा में सेंध लगा आतंकी पंजाब में घुस आए। पंजाब में सत्तारूढ़ शिरोमणि अकाली दल के प्रवक्ता प्रेम सिंह चंदूमाजरा अपनी व्यवस्था को चाकचौबंद बताते हुए घटना का ठीकरा केंद्र सरकार पर फोड़ते हैं। वह कहते हैं कि सरकार ने सीमावर्ती इलाके में बाड़बंदी नहीं की है। ठीकरा किसी के भी सिर फोड़ें लेकिन इस घटना ने पंजाब सरकार की तैयारियों की भी पोल खोली। पुलिसकर्मी टीशर्ट में, बिना जीवनरक्षक जैकेट्स के साधारण बंदूकों से उन आतंकियों का सामना कर रहे थे जो मरने के जुनून के साथ आए थे। लेकिन चंदूमाजरा अपनी खामियों में कोई कमी नहीं मान रहे।

 

 पहले भी आतंकियों का गढ़ रहा है गुरदासपुर

गुरदासपुर पाकिस्तान सीमा से 15 किलोमीटर दूर है। दीनानगर गुरदासपुर का एक कस्बा है। हालांकि अस्सी के दशक में भी गुरदासपुर चरमपंथियों का गढ़ था। खालिस्तान कमांडो फोर्स जफरवाल और पंथक कमेटी के मुखिया रहे वस्सन सिंह जफरवाल गुरदासपुर के ही रहने वाले हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि जम्मू-कश्मीर के अलावा आतंक का नया मोर्चा फिर से पंजाब हो सकता है। हालांकि खबर लिखे जाने तक मारे गए हमलावरों की पुख्ता शिनाख्ता नहीं हुई है और घटना में खालिस्तानी आतंकवादियों के हाथ का कोई सबूत नहीं मिला है। ड्रग माफिया की आतंकवादियों को मदद की चर्चा जरूर हुई है। पंजाब के पूर्व पुलिस महानिदेशक केपीएस गिल का कहना है कि अस्सी के दशक जैसे हालात तो आ सकते लेकिन राज्य सरकार को बेहद चौकस होकर रहने की जरूरत है।   

 

इस्लामी जेहादियों के संपर्क में हैं खालीस्तानी आतंकी  

अभी तक की जानकारी के अनुसार आतंकी सीमा  पार से ही आए थे। खालिस्तान समर्थकों के का हाथ का सुबूत नहीं होने के बावजूद विश्वस्तर पर यह सामने आता रहा है कि कुछ खालिस्तान समर्थक इस्लामी जेहादियों से संपर्क में हैं। पाकिस्तान अपने देश में बड़े स्तर पर सिख युवकों को प्रशिक्षण दे रहा है। सूत्रों के अनुसार बद्ब्रबर खालसा इंटरनेशनल (बीकेआई) के चीफ वधवा सिंह, इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन (आईएसवाईएफ) के चीफ लखबीर सिंह रोडे, खालिस्तान कमांडो फोर्स (केसीएफ) के चीफ परमजीत सिंह पंजवड़, दल खालसा इंटरनेशनल (डीकेआई) के चीफ  गजेंद्र सिंह, खालिस्तान जिंदाबाद फोर्स के चीफ रंजीत सिंह नीटा स्थायी तौर पर पाकिस्तान में रह रहे हैं। कहा यह भी जा रहा है कि वे आईएसआई की निगाहबानी में पंजाब समेत कई दूसरे राज्यों में हिंसा फैलाने के लिए अपने-अपने नेटवर्क का प्रयोग कर रहे हैं।    

 

पंजाब में राख होने के लिए बारूद बिछा है

हाल ही के सालों में देश में विभिन्न जगहों से गिरफ्तार हुए सिख आतंकियों ने इसकी पुष्टि भी की है। सबसे अहम बात यह है कि हिंसा की जो चिनगारियां फूंकी जा रही हैं वे पंजाब में अगर लपटें बन यहां का अमन खाक करती हैं तो उसके लिए राज्य में भरपूर बारूद तैयार है। यहां बेरोजगारी,  मिलों-कारखानों का बंद होना, किसान आत्महत्याएं,  मंहगी खेती और नशा बारूदी सुरंगों की तरह फैला है। खूफियां एजेंसियों के पास इस बात के पुख्ता सुबूत मिले हैं कि पंजाब के जिन नौजवानों को फिदायीन बनाने की तैयारी है उनमें ग्रामीण इलाकों के वे नौजवान जो अफीम और दूसरे नशों की आदी है, ग्रीन कार्ड की उम्मीद में भारत से विदेश जाने वाले सिख नौजवान, ग्रामीण इलाकों से शहरों में जाने वाले हिंदू नौजवान,  गरीबी के साए में रहने वाले गरीब पाकिस्तानी ईसाई नौजवान शामिल हैं।   

 

इस्लामी आतंकियों को चेहरा बनाने की कोशिश

जानकार सूत्र बताते हैं कि खालिस्तानी सिख आतंकियों को सीधे तौर पर सामने करने की बजाय कश्मीरी अलगाववादियों की आड़ ली जा रही है। कहा यह भी जा रहा है कि पाकिस्तान में जारी सिख युवकों के प्रशिक्षण शिविरों को लश्कर-ए-तयैबा द्वारा प्रशिक्षण दिया जा रहा है। स्ट्रैटजिक विशेषज्ञ सुशांत सरीन ने भी एक चैनल पर कहा कि जक्वमू में कुछ महीने पहले खालिस्तानी आतंकवादी सक्रिय थे। ये खालिस्तानी आतंकियों, जक्वमू-कश्मीर में अशांति फैला रहे तत्वों और पाकिस्तानी आतंकियों के बीच मिलीभगत का नतीजा हो सकता है। इनके अलावा सुरक्षा विशेषज्ञ जी.डी. बख्शी के मुताबिक, पाकिस्तानी एजेंसी आईएसआई  पहले खालिस्तानी आतंकियों को भी सपोर्ट करती रही है।

 

कायम है खालिस्तान की मांग

इन तमाम बातों पर विराम लगाते हुए बद्ब्रबर खालसा दल के सदस्य रहे और अलगाववादी संगठन दल खालसा के नेता कंवरपाल सिंह बिट्टू आउटलुक से बातचीत में बताते हैं कि सीमापार के इस्लामी आतंकवाद से पंजाब खालिस्तान समर्थकों का कोई नाता नहीं है। कंवरपाल का कहना है कि देश में कहीं भी कोई घटना हो जाती है तो खालिस्तान समर्थकों पर शक किया जाता है लेकिन कोई बार-बार माहौल खराब करने का आरोप लगाता है तो उसकी आदत हो जाती है। इससे आक्रोश बढ़ता है। हमारी खालिस्तान की मांग न तो दबी है न खत्म हुई है।  हमारी मांगें राजनीतिक हैं। बेहतर होगा इसे राजनीति से सुलझाया जाए। इसे पुलिस और सेना से न कुचलवाएं। सरकार हमारी समस्या का पुलिस और सेना से हल निकलवाने की बजाय राजनीतिक हल निकाले।

जमीनी स्तर पर कुछ नहीं किया गया। खुफिया विभाग के सूत्रों के मुताबिक विदेशों में बैठे खालिस्तान समर्थक लोगों द्वारा कट्टरपंथियों को उकसाने के कई मामले संज्ञान में आए। सरकार ने इनपर चौकसी बरतने की बजाय लगातार ऐसी घटनाएं हो जाने दीं जिन्होंने आग में घी का काम किया। इनमें बीते वर्ष शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) की ओर से ऑपरेशन ब्लू स्टार में मारे गए आतंकवादियों के स्मारक को हरी झंडी देना जैसी घटनाएं भी शामिल हैं।   

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