व्यापमं नुमा इस घटना ने न केवल एमबीबीएस जैसी अहम प्रवेश परीक्षा में हुई कथित धांधली की पोल खोली है बल्कि एएमयू प्रशासन की कारगुजारी पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। बीते कुछ अरसे से एएमयू में विवाद थमने का नाम नहीं ले रहे। पहले कुलपति और छात्र संघ में तनातनी हुई जिसके चलते छात्रसंघ अध्यक्ष शहजाद आलम बरनी को बर्खास्त कर यूनियन तोड़ दी गई फिर नियुक्तियों पर विवाद लेकिन इस बीच एमबीबीएस प्रवेश परीक्षा धांधली विश्वविद्यालय के लिए जी का जंजाल बन गई। इस मामले में पांच परीक्षार्थी नतीजों को चुनौती देने इलाहाबाद उच्च न्यायालय चले गए। इनमें से तीन अतुल कुमार, विवेक कुमार, कुमारी शिप्रा सिंह की याचिका अदालत ने रद्द कर दी लेकिन अलीगढ़ सेंटर से परीक्षा देने वाले हमजा हसन और चारु तोमर की याचिका स्वीकार कर ली गई।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय में हमजा हसन की याचिका की पैरवी कर रहे वकील शिव प्रताप कहते हैं उन्होंने अपनी याचिका में इस परीक्षा के लिए परीक्षा नियंत्रक प्रो.जावेद अख्तर के चयन को चुनौती दी है। एमबीबीएस प्रवेश परीक्षा के प्रश्नपत्रों पर परीक्षा तिथि लिखने को भी उन्होंने चुनौती दी है। याचिकाकर्ता हसन के पिता और एएमयू ओल्ड बॉयज एसोसिएशन के उपाध्यक्ष मुख्तार जैदी कहते हैं कि इम्तिहान के नतीजों की स्कैनिंग करते हुए सूफियाना बेग ने देखा कि कोलीकोड सेंटर,फारूख कॉलेज से 60 फीसदी छात्र चुने जा रहे हैं जो अटपटा था। मामला वीसी की जानकारी में लाया गया। गत 23 मई को कार्यकारी परिषद (ईसी) की बैठक में मामले की जांच के लिए प्रो. एसएन पठान, प्रो. सैय्यद ई. हसन, प्रो. एमके शेरवानी की अध्यक्षता में प्राथमिक कमेटी बनी। अठाईस मई को ईसी की बैठक में यह नतीजे रद्द कर अगस्त के पहले सप्ताह में परीक्षा दोबारा कराने का फैसला हुआ और जस्टिस इम्तियाज मुर्तजा (सेवानिवृत) की अध्यक्षता में मामले की न्यायायिक जांच करवाने का निर्णय भी लिया गया। कमेटी में प्रो. मोहम्मद मिआन और प्रो. पैजान मुस्तफा भी थे। दो जुलाई को कमेटी ने अपनी रिपोर्ट पेश की और 6 जुलाई को ईसी ने कमेटी की सिफारिशें लागू करते हुए परीक्षा के पहले वाले नतीजे बहाल कर दिए।
जैदी का आरोप है कि अमूमन 800-900 में से एमबीबीएस का एक छात्र चुना जाता है। ऐसा कैसे हो सकता है कि एक सेंटर से 60 फीसदी छात्र सिलेक्ट हो जाएं। जबकि अदालत में जो ईसी बैठक की रिकॉर्डिंग पेश की गई है उसमें कहा गया है कि उस दिन कोलीकोड सेंटर की कंप्यूटर लैब खुली थी। कमेटी अपराधी का पता लगाने के लिए बनी थी लेकिन उसने सभी को क्लीन चिट कैसे दे दी मामले की सीबीआई जांच करानी चाहिए। जैदी कहते हैं कि अगर मध्य प्रदेश में सीबीआई जांच हो सकती है तो एएमयू के मामले में ञ्चयों नहीं। शायद सरकार को लगता है कि इससे मुसलमान नाराज हो जाएंगे। वह कहते हैं, हमारे बच्चे चाहे चुने न गए लेकिन हमारी लड़ाई भ्रष्टाचार से है ताकि भविष्य में योग्य छात्र चुने जा सकें।
एएमयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष शहजाद आलम बरनी एक अहम पहलू की ओर ध्यान दिलाते हैं। वह कहते हैं कि आज तक एमबीबीएस परीक्षा के पेपर की प्रिंटिग प्रेस नहीं बदली गई थी लेकिन इस दफा 50 सालों में पहली बार प्रिंटिंग प्रैस बदल दी गई। वहीं इस मामले में एएमयू की पैरवी कर रहे वकील अकरम अहमद का कहना है कि फिहाल अदालत का कहना है कि ञ्चया ईसी अपने फैसले पर पुनर्विचार कर सकती है।
नियुक्तियों को लेकर विवादों में वीसी
कुलपति द्वारा विशेष अधिकार का प्रयोग करते हुए नियुक्तियां करने का आरोप अक्सर लगता रहता है। इस वक्त एएमयू के वीसी लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत) जमीरउद्दीन शाह की भी इसके चलते मुखालफत हो रही है। हाल ही में एएमयू के पूर्व प्रॉक्टर डॉ. जमशेद सद्दीकी की प्रोफेसर पद पर नियुक्ति को लेकर यूनविर्सिटी का एक धड़ा कुलपति के खिलाफ खड़ा है। एएमयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष शहजाद आलम बरनी ने डॉ. जमशेद सिद्दीकी की नियुक्ति को लेकर कुलपति के सामने दो दफा शिकायत दर्ज की लेकिन कार्यवाही न होने से अब मामला मानव संसाधन विकास मंत्रालय तक पहुंच गया है। बरनी ने अपने शिकायत पत्र में जमशेद सिद्दीकी की नियुक्ति नियमों के खिलाफ बताई है। गौरतलब है कि बरनी वही हैं जिन्होंने पूर्व रजिस्ट्रार की फर्जी मार्कशीट पर सवाल खड़े किए और उसमें सीबीआई जांच के आदेश हुए हैं।
बरनी के अनुसार डॉक्टर जमशेद सिद्दीकी ने मैनेजमेंट विभाग से पीएचडी की, जबकि अपने आवेदन पत्र में उन्होंने इनफॉर्मेशन सिस्टम में पीएचडी बताई है। यही नहीं आरोप है कि डॉ. सिद्दीकी ने खुद ही विभागाध्यक्ष बनकर अपने आवेदन पत्र का अनुमोदन किया। प्रो.सिद्दीकी के मामले में कुलपति ने आउटलुक को बताया कि पदोन्नति के लिए प्रो. सिद्दीकी सभी शर्तों को पूरा कर रहे थे। मेरे पास उनके खिलाफ कोई शिकायत नहीं आई है। अगर शिकायत आएगी तो मैं जरूर जांच करवाउंगा।
‘400 नियुक्तियों के लिए 4,000 दुश्मन’
इन दिनों एएमयू के कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत) जमीरउद्दीन शाह और विवाद एक सिक्के के दो पहलू हैं। तमाम पहलुओं पर आउटलुक की विशेष संवाददाता मनीषा भल्ला ने उनसे बात की-
एमबीबीएस प्रवेश परीक्षा विवाद पर आपका पक्ष क्या है?
हमने मामले की तफसील से तहकीकात की। हमने देखा कि केरल के कोलीकोड सेंटर के छात्रों का प्रतिशत 15 था जो पहले 5 या 6 फीसदी के मुकाबले बहुत ऊंचा था। यह कुछ अटपटा था। यह मामला ईसी में उठा। फैसला हुआ कि नतीजे रद्द कर एमबीबीएस प्रवेश परीक्षा दोबारा करवाई जाएंगी। मैं निजी तौर पर भी इसके पक्ष में था क्योंकि मैं चाहता था कि छात्रों को दोबारा तैयारी का वक्त मिले और दूसरा भ्रष्टाचार सामने आए। हमने मामले की न्यायायिक जांच करवाने का फैसला लिया। इसके लिए सेवानिवृत न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित की गई जिसमें दो पूर्व वीसी भी थे। जांच के बाद उन्होंने रिपोर्ट दी कि कोलीकोड सेंटर से जो छात्र सिलेक्ट हुए हैं उन्होंने सीनियर सेकेंडरी और अन्य मेडिकल परिक्षाओं में भी अच्छे नंबर हासिल किए हैं। यह भी देखने में आया कि कोलीकोड सेंटर में किसी प्रकार की कोई गड़बड़ी नहीं हई है। ईसी में इस कमेटी की सिफारिश के आधार पर अपना फैसला रद्द करते हुए पहले वाले नतीजे को कायम रखा।
तो जो लोग अदालत गए वे किस आधार पर गए?
जो लोग प्रवेश परीक्षा क्लीयर नहीं कर पाए वे लोग ही अदालत गए हैं। वे किसी भी प्रकार से परीक्षा देने के लिए दूसरा मौका चाहते हैं।
हैरानी की बात है कि एक ही सेंटर से इतने छात्रों ने टॉप किया?
नहीं। वे छात्र सच में बेहद लायक थे। उनमें से हमारे यहां केवल 4 छात्रों ने दाखिला लिया। बाकियों ने यहां से बेहतर संस्थानों में दाखिला लिया।
फर्जी दस्तावेजों के साथ एक लडक़ी की गिरफ्तारी हुई है?
हां,सही है। हमारी व्यवस्था इतनी सख्त और चाक चौबंद है कि हमारे स्टाफ की वजह से वह लड़की पकड़ी गई। लड़की जेल में है।
एएमयू में काफी लोग आपसे खफा रहते हैं?
यूनिवर्सिटी चलाने के लिए हमें कैंपस में 400 शिक्षकों की नियुक्तियां करनी होती हैं इन 400 नियुक्तियों का मतलब अपने लिए 4,000 दुश्मन बनाना है।
एएमयू इतिहास में पहली दफा आपने छात्र संघ अध्यक्ष को बर्खास्त किया?
हां, उनके खिलाफ मेरे पास बहुत सी शिकायतें थीं। कोई भी छात्र नेता कानून से ऊपर नहीं हो सकता है।
आरोप है कि आपने अपने ऊपर एक केस के सिलसिले में निजी वकील को एएमयू से भुगतान किया?
हां सही है। यहां हर दिन किसी न किसी वजह से कोई न कोई अदालत चला जाता है। मैं हर केस का भुगतान अपने पास से तो नहीं कर सकता क्योंकि वह केस व्यक्तिगत तौर पर मेरे ऊपर नहीं हैं बल्कि मुझपर वह केस एएमयू के कुलपति होने के नाते है।