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हिंदी की अनिवार्यता पर विरोध के बाद केंद्र सरकार ने ड्राफ्ट में किया संशोधन, हिंदी को बताया ऑप्शनल

गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी पढ़ाने का प्रस्ताव देने वाली शिक्षा नीति के मसौदे पर विवाद होने के...
हिंदी की अनिवार्यता पर विरोध के बाद केंद्र सरकार ने ड्राफ्ट में किया संशोधन, हिंदी को बताया ऑप्शनल

गैर हिंदी भाषी राज्यों में हिंदी पढ़ाने का प्रस्ताव देने वाली शिक्षा नीति के मसौदे पर विवाद होने के बाद केंद्र सरकार ने नई शिक्षा नीति के मसौदे में बदलाव किया है। केंद्र सरकार ने विवादित 'हिंदी क्लॉज' को हटा दिया। दक्षिण राज्यों में इस नीति को लेकर विवाद पैदा होने के बाद केंद्री सरकार ने इसमें बदलाव का फैसला लिया है।

नई शिक्षा नीति में हिंदी भाषा वैकल्पिक तौर पर रखी गई

सरकार ने दक्षिण भारतीय राज्यों और गैर हिंदी भाषी क्षेत्रों में हिंदी भाषा को लेकर जारी विवाद के बीच इस बात का ऐलान किया है। सरकार ने कहा है कि नई शिक्षा नीति में हिंदी भाषा वैकल्पिक तौर पर रखी गई है और इस पर किसी तरह का कोई नहीं होना चाहिए।

किसी भी राज्य पर हिंदी थोपी नहीं जाएगी

दरअसल, रविवार को केंद्र सरकार ने अपना बचाव करते हुए कहा था कि किसी भी राज्य पर हिंदी थोपी नहीं जाएगी। इसके बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और विदेश मंत्री एस जयशंकर ने इस मामले में अपने ट्विटर पर संदेश प्रसारित किए और यह भरोसा दिलाया कि इस ड्राफ्ट को अमल में लाने से पहले इसकी समीक्षा की जाएगी। मोदी सरकार के ये दोनों ही मंत्री तमिलनाडु से हैं।

नई शिक्षा नीति पर उठे सवाल के बीच क्या बोले मानव संसाधन विकास मंत्री

स्कूलों में त्रिभाषा फार्मूले संबंधी नई शिक्षा नीति के मसौदे पर उठे विवाद के बीच केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक' ने स्पष्ट किया था कि सरकार अपनी नीति के तहत सभी भारतीय भाषाओं के विकास को प्रतिबद्ध है और किसी प्रदेश पर कोई भाषा थोपी नहीं जाएगी। निशंक ने स्पष्ट किया था, ‘हमें नई शिक्षा नीति का मसौदा प्राप्त हुआ है, यह रिपोर्ट है। इस पर लोगों एवं विभिन्न पक्षकारों की राय ली जाएगी, उसके बाद ही कुछ होगा। कहीं न कहीं लोगों को गलतफहमी हुई है।'

उन्होंने कहा था कि हमारी सरकार, सभी भारतीय भाषाओं का सम्मान करती है और हम सभी भाषाओं के विकास को प्रतिबद्ध है। किसी प्रदेश पर कोई भाषा नहीं थोपी जाएगी। यही हमारी नीति है, इसलिए इस पर विवाद का कोई प्रश्न ही नहीं है। निशंक ने कहा, ‘कुछ लोग इसे लेकर राजनीतिक विवाद पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं जबकि ऐसा कुछ नहीं है। अभी तो यह केवल मसौदा है।'

क्या है विवाद

गौरतलब है कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मसौदा शुक्रवार 31 मई को  केंद्रीय मंत्रिमंडल के सामने पेश किया गया था। इस मसौदे में ड्राफ्ट राष्ट्रीय शिक्षा नीति ने हिंदी और अंग्रेजी को एक भारतीय क्षेत्रीय भाषा के साथ-साथ 'स्थानीय भाषाओं को बढ़ावा देने' के लिए अनिवार्य करने की सिफारिश की थी। मसौदा मानव संसाधन मंत्रालय की आधिकारिक वेबसाइट पर भी अपलोड किया गया था।

अपलोड करने के बाद सभी हितधारकों के लिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने इसे पढ़ने और विश्लेषण करने के लिए कहा था। हालांकि मसौदा पेश किए जाने के तुरंत बाद देश के विभिन्न क्षेत्रों से हिंदी भाषा की बहस और प्रस्तावित 3 भाषा सूत्र को लेकर विवाद छिड़ गया।

नई शिक्षा नीति पर देश में 1993 के बाद अब किया जा रहा काम

बता दें कि नई शिक्षा नीति पर देश में 1993 के बाद अब काम किया जा रहा है। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में नई शिक्षा नीति पर काम 2015 में शुरू हो गया था और सरकार ने इसे अपने एजेंडे में प्रमुखता से शामिल किया था। वहीं सरकार ने इस नई शिक्षा नीति को इसरो  के पूर्व अध्यक्ष के. कस्तूरीरंगन के नेतृत्व में तैयार करवाया है।

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