वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के निदेशक कलाचंद सेन ने कहा कि मानवजनित और प्राकृतिक दोनों कारणों से जोशीमठ में जमीन धंस रही है। उन्होंने कहा कि ये कारक हाल में सामने नहीं आए हैं, बल्कि इसमें बहुत लंबा समय लगा है।
सेन ने ‘कहा, ‘‘तीन प्रमुख कारक जोशीमठ की नींव को कमजोर कर रहे हैं। यह एक सदी से भी पहले भूकंप से उत्पन्न भूस्खलन के मलबे पर विकसित किया गया था, यह भूकंप के अत्यधिक जोखिम वाले ‘जोन-पांच' में आता है और पानी का लगातार बहना चट्टानों को कमजोर बनाता है।''
उन्होंने कहा, ‘‘एटकिन्स ने सबसे पहले 1886 में ‘हिमालयन गजेटियर' में भूस्खलन के मलबे पर जोशीमठ की स्थिति के बारे में लिखा था। यहां तक कि मिश्रा समिति ने 1976 में अपनी रिपोर्ट में एक पुराने ‘सबसिडेंस जोन' पर इसके स्थान के बारे में लिखा था।''
सेन ने कहा कि हिमालयी नदियों के नीचे जाने और पिछले साल ऋषिगंगा और धौलीगंगा नदियों में अचानक आई बाढ़ के अलावा भारी बारिश ने भी स्थिति और खराब की होगी। उन्होंने कहा कि चूंकि जोशीमठ बद्रीनाथ, हेमकुंड साहिब और औली का प्रवेश द्वार है, इसलिए शहर के दबाव का सामना करने में सक्षम होने के बारे में सोचे बिना क्षेत्र में लंबे समय से निर्माण गतिविधियां चल रही हैं। उन्होंने कहा कि इससे भी वहां के घरों में दरारें आई हों।
उन्होंने कहा, ‘‘होटल और रेस्तरां हर जगह बनाये जा रहे हैं, आबादी का दबाव और पर्यटकों की भीड़ का आकार भी कई गुना बढ़ गया है।'' उन्होंने कहा, ‘‘कस्बे में कई घरों के सुरक्षित रहने की संभावना नहीं है। इन घरों में रहने वाले लोगों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित किया जाना चाहिए, क्योंकि जीवन अनमोल है।''
पीटीआई इनपुट