सोमवार रात मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एक आदेश जारी कर कहा कि सभी अधिकारियों को उपराज्यपाल या उनके कार्यालय से मिले किसी मौखिक या लिखित निर्देश का पालन करने से पहले मुख्यमंत्री या संबद्ध मंत्री को अवगत कराना होगा। केजरीवाल के हस्ताक्षर वाले आदेश में कहा गया है कि मुख्य सचिव सहित नौकरशाहों को उपराज्यपाल से कोई संचार या एेसे किसी निर्देशों पर कार्य करने से पहले मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों से विमर्श करना होगा। आदेश में कहा गया है कि संविधान के मुताबिक दिल्ली सरकार के रोजमर्रा के सुचारू कामकाज को सुनिश्चित करने के लिए राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार कानून तथा दिल्ली सरकार के कामकाज संबंधी नियम के तहत यह आदेश जारी किया जा रहा है।
इससे पहले आप सरकार ने उपराज्यपाल से कहा कि वह असंवैधानिक आदेशों का पालन नहीं करेगी। इसके लिए दिल्ली सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ एडवोकेट राजीव धवन से राय ली है। धवन के मुताबिक दिल्ली सरकार के पास अपनी पसंद का अधिकारी चुनने का पूरा अधिकार है। इस मामले में उपराज्यपाल अपनी सीमाओं से बाहर जाकर काम कर रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि अगर मुख्यमंत्री कोई गलत निर्णय ले रहे हैं तो इसकी शिकायत राज्यपाल या उपराज्यपाल को राष्ट्रपति से करनी चाहिए। राष्ट्रपति के निर्णय को ही अंतिम फैसला माना जाएगा। लेकिन दिल्ली के उपराज्यपाल ने राष्ट्रपति से किसी प्रकार का मशविरा नहीं किया। बल्कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल राष्ट्रपति से मिलकर उपराज्यपाल के रवैये की शिकायत करने वाले हैं। मंगलवार शाम को केजरीवाल को राष्ट्रपति से मिलने का समय मिला है।
लेकिन अरविंद केजरीवाल की ओर से जो आदेश अधिकारियों को जारी किए गए हैं उसे लेकर किरकिरी हो रही है। एक वरिष्ठ अाईएएस अधिकारी ने बताया कि बिना कारण बताए किसी अधिकारी के कमरे में ताला लगवा देना और फिर काम से हटा देना चिंता का विषय है। केजरीवाल सरकार के इस फैसले से अधिकारी चिंतित हैं।
जबसे दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी है तबसे कुछ न कुछ विवाद होता रहा है। चाहे वह मीडिया के प्रतिबंध को लेकर रहा हो या फिर कानून मंत्री जितेंद्र तोमर की डिग्री को लेकर। अरविंद केजरीवाल ने मीडिया पर यह आरोप जड़ दिया कि उनकी सरकार को ठीक ढंग से काम करने नहीं दिया जा रहा है। उसके बाद सचिवालय में मीडिया के प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई है। जिसे लेकर सरकार की जमकर किरकिरी हुई। अब केजरीवाल और नजीब जंग के बीच उठे ताजा विवाद ने मामले को राष्ट्रपति भवन तक पहुंचा दिया है। विशेषज्ञों के मुताबिक संघशासित प्रदेश में मुख्यमंत्री की अपनी सीमाएं होती हैं और उसी सीमा में रहकर काम करना होता है। लेकिन केजरीवाल यह चाहते हैं कि उनको अधिक शक्तिशाली बनाया जाए जिससे कि वह निर्णय ले सकें। केजरीवाल के कई निर्णयों को लेकर भी आलोचना हो रही है।