श्रीनगर के विधायक होस्टल में कल बीफ पार्टी आयोजित करने वाले विधायक को पीटे जाने की घटना एेसे समय में हुई है जब विधानसभा में गोमांस पर प्रतिबंध संबंधी विधेयक पर चर्चा होनी थी। इंजीनियर राशिद ने बताया कि जैसे ही वह बोलने के लिए खड़े हुए भाजपा विधायक रविंद्र रैना ने उनके साथ मारपीट शुरु कर दी। भाजपा के अन्य विधायकों ने भी उनका साथ दिया। भाजपा विधायकों ने जैसे ही राशिद को पीटना शुरू किया, नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के कई विधायक उन्हें बचाने के लिए दौड़े। सदन में विधायक को पीटे जाने की घटना पर विपक्ष ने नाराजगी जताई है। नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने कहा कि इस घटना को पचा पाना असंभव है।
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, एक माननीय सदस्य की सदन में पिटाई की गई। एेसा लगता है कि वे उन्हें जान से मारना चाहते थे। यदि उन्होंने कुछ आपत्तिजनक किया था तो उसे सदन के संज्ञान में लाया जाना चाहिए था। उमर ने गोमांस प्रतिबंध के बारे में कहा, इस मामले से हमारी भी भावनाएं जुड़ी हैं।... हम अपना धर्म आप पर नहीं थोपते। मेरा धर्म शराब और सुअर का गोश्त खाने से मना करता है।.. क्या मैं हर उस व्यक्ति को पीटता हूं जो सुअर का गोश्त खाता है या शराब पीता है?
उधर, राशिद ने दावा किया था कि वह किसी का अपमान नहीं करना चाहते थे लेकिन यह संदेश देना चाहता थे कि कोई भी अदालत या विधानसभा लोगों को वह खाने से नहीं रोक सकती जो वे खाना चाहते हैं।
मुफ्ती मोहम्मद सईद ने की हमले की निंदा
मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ने हमले की निंदा करते हुए कहा कि भावनाओं को काबू में रखना चाहिए। उन्होंने उपमुख्यमंत्री निर्मल सिंह से मांग की है वह अपने पार्टी विधायकों के दुर्व्यवहार के लिए माफी मांगे। निर्मल सिंह ने कहा है कि सदन में आज जो हुआ, हम इसे स्वीकार नहीं करते लेकिन विधायकों के हाॅस्टल में कल जो हुआ, वह भी गलत था। उपमुख्यमंत्री इस घटना के लिए माफी मांगते-मांगते रूक गए जिसके बाद पूरा विपक्ष वाकआउट कर गया। भाजपा विधायक रवींद्र रैना ने कहा कि राशिद ने हिंदुओं की भावनाएं आहत की हैं। रैना ने कहा, इंजीनियर राशिद ने कल रात गौमांस पार्टी आयोजित की। इससे मेरी भावनाएं आहत हुईं। मैंने मुख्यमंत्री को संदेश भिजवाया और थाना प्रभारी से बात की लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई।
क्या है मामला ?
जम्मू-कश्मीर में गोमांस को लेकर विवाद उस समय पैदा हुआ था जब जम्मू हाईकोर्ट ने की एक खंडपीठ ने राज्य सरकार को कानून के अनुसार राज्य में सख्ती से प्रतिबंध लागू करने को कहा था। इस आदेश के खिलाफ कई अलगाववादी गुटों और धार्मिक संगठनों ने नाखुशी जताते हुए इसे धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करार दिया था और राज्य में शराब पर प्रतिबंध लगाने का दबाव बनाने के अलावा कानून रद्द किए जाने की मांग की थी। यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है।