छत्तीसगढ़ के सुकमा जिले में सोमवार को सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच हुई कथित मुठभेड़ पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं। ग्रामीणों का आरोप है कि बीजापुर सीमा पर स्थित सिलगेर गांव में पुलिस कैम्प के खिलाफ शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे ग्रामीणों पर जवानों ने फायरिंग की जिसमें 9 लोग मारे गए जबकि कई घायल हुए हैं। गांव वालों का आरोप है कि वहां नक्सली थे ही नहीं। जबकि बस्तर आईजी पी. सुंदरराज ने दावा किया है कि ग्रामीणों की आड़ में नक्सलियों ने हमला किया जिसके बाद जवाबी फायरिंग में 3 लोगों की मौत हुई है। उनके शव भी बरामद हुए हैं।
दरअसल, 12 मई को बीजापुर सीमा पर स्थित सिलगेर गांव में सुरक्षा बलों का कैंप लगाया गया है। गांव वालों का आरोप है कि सुरक्षाबलों ने उनके जल, जंगल, जमीन पर कब्जा किया है। वे उनको प्रताड़ित करते हैं। इसे लेकर गांव में आक्रोश है और वे इसके विरोध में प्रदर्शन कर रहे हैं।
जबकि पुलिस का दावा है कि आंदोलन कर रहे ग्रामीणों के बीच से कुछ लोगों ने बीते सोमवार की दोपहर पुलिस कैम्प पर हमला कर दिया। पुलिस के अनुसार हमला ग्रामीणों की आड़ में नक्सलियों ने किया है। इस हमले की जवाबी कार्रवाई पुलिस की ओर से की गई, जिसमें तीन लोगों की मौत हो गई।
उधर, गांववालों का कहना है कि कैम्प खोलने के खिलाफ प्रदर्शन में लगभग 2 से 3 हजार लोग जुटे थे। पुलिस ने लाठीचार्ज किया और गोलियां चलाईं इसमें 9 लोग मारे गए। एक ग्रामीण ने बताया कि सोमवार की गोलीबारी में तीन ग्रामीणों की मौत हो गई, जबकि छह लापता हैं और 18 घायल हो गए।
पी सुदंराज ने मीडिया को बताया कि रविवार रात को ग्रामीण वापस चले गए थे, लेकिन सोमवार दोपहर फिर ग्रामीण विरोध करने लौटे। साथ ही जानकारी मिली कि जगरगुड़ा एरिया और अन्य इलाकों से नक्सली वहां पहुंचे हैं और ग्रामीणों की आड़ लेकर अचानक कैंप पर हमला शुरू किए उसके बाद जवानों ने कार्रवाई की है।
बस्तर क्षेत्र में कार्य कर रहे कई संगठनों ने इस घटना की निंदा की है और इसकी निष्पक्ष जांच की मांग की है। किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष और पूर्व विधायक डॉ सुनीलम ने कहा कि घटना की न्यायिक जांच हो। उन्होंने राज्य सरकार से गोली चलाने के दोषी अधिकारियों पर हत्या का मुकदमा दर्ज कर गिरफ्तार करने, मृतकों के परिवारजनों को 50 लाख मुआवजा राशि और एक सदस्य को नौकरी देने की अपील की।
वहीं, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने भी घटना की निंदा की है। संगठन ने बयान जारी कर हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त जज की अध्यक्षता में कमिटी गठित कर तत्काल, समयबद्ध जांच की मांग की है। छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने कहा कि राज्य सरकार आदिवासी आंदोलनों की मांगो को संवेदनशीलता के साथ विचार करने के बजाए उन्हें माओवादी बताकर दमन का रास्ता अपना रही है । बस्तर के मामले में वर्तमान सरकार पूर्ववर्ती रमन सरकार के रास्ते पर ही चलने की कोशिश कर रही है, जिसका परिणाम है कि आज भी फर्जी मुठभेड़ और दमन यथावत जारी है। बस्तर संविधान की पांचवी अनुसूची के तहत आता है, जिसमें आदिवासियों के जल-जंगल-जमीन की रक्षा के साथ उनकी आजीविका व संस्कृति की सुरक्षा के विशेष प्रावधान हैं बैलाडीला से लेकर बोधघाट तक उन समस्त परियोजनाओं को तथा सैन्य कैम्पों का, जिनका आदिवासी मुखरता से विरोध कर रहे है, उन्हें सरकार को वापिस लेना चाहिए, जिससे आदिवासियों का भरोसा सरकार पर कायम हो।"