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उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री का ऑपरेशन क्लीन

साल 2012 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बाहुबली नेता डीपी यादव को समाजवादी पार्टी में लेने से इनकार कर दिया था। उसके बाद ही प्रदेश में ऐसा माहौल बना कि अखिलेश पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आए।
उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री का ऑपरेशन क्लीन

 हाल ही में सीतापुर के बाहुबली विधायक कहे जाने वाले रामपाल यादव को भी अखिलेश यादव ने न केवल पार्टी से निष्कासित किया बल्कि उनके द्वारा किए गए अवैध निर्माणों को भी ढहा दिया। चुनावी साल में अखिलेश यादव का यह कदम तो ठीक कहा जा सकता है लेकिन इसको लेकर कई तरह के सवाल भी उठ रहे हैं कि पार्टी के कई और नेताओं ने अवैध रूप से जमीनों पर कब्जा किया हुआ है। कई के ऊपर गंभीर आरोप भी लगे हैं क्या उनसे भी निपटने के लिए कोई ठोस कदम उठाएंगे? हालांकि कई लोग इसे बदले की कार्रवाई बता रहे हैं लेकिन आउटलुक को मिली जानकारी के मुताबिक तीन सत्ताधारी विधायकों पर भी मुख्यमंत्री की कड़ी नजर है। लखनऊ विकास प्राधिकरण ने ऐसे विधायकों की सूची भी मुख्यमंत्री को सौंप दी है जिन्होंने अवैध रूप से निर्माण कार्य कराया है। ऐसे में कई विधायक अभी से सचेत हो गए हैं कि कोई ऐसा काम न करें जिस पर कि मुख्यमंत्री की नजर पड़े। हालांकि रामपाल के मामले में मुख्यमंत्री को लगातार शिकायतें मिलती रही हैं।

रामपाल अपने रसूख के चलते ऐसी शिकायतों को नजरअंदाज करते रहे। लखनऊ और सीतापुर में कराए गए अवैध निर्माण के पीछे भी उनका रसूख ही था। क्योंकि सत्ताधारी पार्टी का विधायक होने के कारण कोई अधिकारी कार्रवाई नहीं कर पा रहा था लेकिन मुख्यमंत्री का आदेश मिलने के बाद अधिकारियों के हौसले बुलंद हो गए हैं और उन्होंने बिना देरी किए रामपाल के अवैध साम्राज्य को ढहा दिया। पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष होने के नाते अखिलेश ने भी बिना देरी किए रामपाल को पार्टी से निष्कासित कर दिया। इससे पहले भी रामपाल को पार्टी से निष्कासित किया जा चुका था जब वह जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में बागी होकर अपने बेटे को चुनाव लड़वाने और जीतवाने में सफल रहे। बाद में रामपाल का निलंबन वापस ले लिया गया था। सत्ता को चुनौती देने वाले रामपाल इसे राजनीतिक दुश्मनी बताते हैं लेकिन जानकारों के मुताबिक रामपाल लंबे समय से सत्ता को चुनौती देते रहे हैं। किंतु मुख्यमंत्री की इस कार्रवाई के बाद प्रदेश के दबंग नेताओं को यह संदेश चला गया है कि कानून-व्यवस्था से किसी प्रकार का समझौता नहीं होगा। हालांकि कुछ विधायक अभी से दूसरी पार्टियों में जाने का रास्ता तलाश रहे हैं ताकि मुख्यमंत्री उनके खिलाफ कार्रवाई न कर पाएं।

पार्टी के राष्ट्रीय सचिव राजेश दीक्षित मुख्यमंत्री के इस कदम को सकारात्मक बताते हैं। आउटलुक से बातचीत में दीक्षित कहते हैं कि मुख्यमंत्री ने पहले ही साफ कर दिया कि कानून-व्यवस्था को बिगाडऩे वालों के खिलाफ कड़ा कदम उठाया जाएगा। दीक्षित के मुताबिक मुख्यमंत्री के इस कदम से जनता के बीच सकारात्मक संदेश गया है लेकिन कई ऐसे मुद्दे भी हैं जिसको लेकर विरोधी सवाल उठाते रहे हैं। प्रदेश के पूर्व भाजपा अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेयी कहते हैं कि आज जब चुनाव को लेकर सरगर्मी हो रही है तो इस प्रकार का कदम उठाने से कोई फायदा नहीं है। वाजपेयी कहते हैं कि प्रदेश के चार साल का आपराधिक रिकॉर्ड उठाकर देखा जाना चाहिए। जो भी हो लेकिन इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि आज प्रदेश विधानसभा के 403 में 189 यानी 47 प्रतिशत विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले चल रहे हैं। इन 189 विधायकों में से 98 यानी 24 प्रतिशत पर गंभीर आईपीसी धारा वाले मामले हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स और नेशनल इलेक्‍शन वाच द्वारा विधानसभा के 2012 में हुए चुनाव के बाद जीत कर आए सभी दलों के कुल 403 विधायकों के हलफनामों के विश्लेषण से यह आंकड़ा सामने आया था। आपराधिक मामलों वाले 189 विधायकों में सर्वाधिक 111 विधायक सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के और 29 बसपा के हैं लेकिन चुनावी साल में मुख्यमंत्री अपने खुफिया विभाग से मिली जानकारी के आधार पर कठोर कदम उठाने का मन बना चुके हैं। सत्तारूढ़ पार्टी के एक विधायक के मुताबिक मुख्यमंत्री कार्यालय में मिल रही शिकायतों के आधार पर कार्रवाई करने की तैयारी चल रही है। इसमें कुछ मौजूदा विधायकों का टिकट काटने का भी निर्णय हो चुका है। भले ही कई विधायक दूसरे दलों में रास्ता तलाश रहे हों लेकिन मुख्यमंत्री ने उनके खिलाफ कठोर कदम उठाने का मन बना लिया है। सूत्रों के मुताबिक प्रदेश विधायकों के कामकाज से लेकर अवैध तरीके से बनाई गई संपत्त‌ियों का ब्यौरा जुटाया जा रहा है। इस पर मुख्यमंत्री खुद नजर रखे हुए हैं। बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री के इस कदम से कई रसूखदार विधायक नाराज भी हैं लेकिन चुनावी माहौल को देखते हुए सरकार जनता के बीच यह संदेश देने की कोशिश में जुटी है कि कानून व्यवस्था पर कोई समझौता नहीं होगा। रामपाल तो केवल एक उदाहरण भर है। चुनाव से पूर्व कई माननीयों पर गाज गिरना तय माना जा रहा है। सपा के प्रदेश प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी के मुताबिक मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने समाजवादी सरकार के शपथ ग्रहण के दिन ही साफ कर दिया था कि कानून-व्यवस्था से खिलवाड़ करने वालों को बक्‍शा नहीं जाएगा। लेकिन विपक्ष कानून व्यवस्था को भी मुद्दा बनाने जा रहा है।

सूबे की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती कहती हैं कि सपा के शासनकाल से जनता ऊब चुकी है। मुख्यमंत्री कितने भी कठोर कदम क्यों न उठाए जनता भुलावे में आने वाली नहीं है। बसपा प्रदेश सरकार को कानून-व्यवस्था पर घेरने की तैयारी में है। इसके लिए पार्टी के कार्यकर्ता जगह-जगह कार्यक्रमों में इस बात का जोर-शोर से प्रचार-प्रसार भी कर रहे हैं वहीं सपा सरकार विकास कार्यों को लेकर जनता के बीच जाने का मन बना चुकी है। राजेश दीक्षित के मुताबिक आज मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने राज्य में विकास की जो मिशाल पेश की है उसे जनता नजरअंदाज नहीं कर सकती। दीक्षित कहते हैं कि विरोधी दलों को कुछ भी मुद्दा चाहिए लेकिन विकास सपा सरकार का सबसे बड़ा हथियार है।

प्रदेश सरकार छवि दुरुस्त रखने के लिए अधिकारियों पर भी लगातार सख्ती दिखा रही है। मुख्यमंत्री ने प्रमुख सचिव सहित जिले के सभी अधिकारियों को निर्देश दे रखा है कि अगर कानून-व्यवस्था की स्थिति खराब होगी तो इसके लिए अधिकारी जिम्मेवार होंगे। मुख्यमंत्री को इस बात की आशंका भी है कि विपक्षी दल सरकार को बदनाम करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं। इसलिए उन्होने सार्वजनिक तौर पर स्वीकार किया कि कानून-व्यवस्था बिगाडऩे की साजिश रची जा रही है। जो भी चुनाव के समय सियासी गणित के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाए जाते हैं लेकिन सरकार को उन हथकंडों से निपटना होगा और जनता का भरोसा जीतना होगा कि विकास के साथ-साथ कानून-व्यवस्था भी चुस्त और दुरुस्त है।  

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