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पंजाब के खूनी पुलिसवाले का कबूलनामा | कंवर संधू

मार्च 1986 में जब पंजाब में उग्रवाद बेकाबू हो रहा था तब महाराष्ट्र काडर के पुलिस अधिकारी जूलियो रिबेरो को राज्य का पुलिस महानिदेशक बनाकर लाया गया। खालिस्तानी खाड़कुओं से मुकाबले के लिए रिबेरो ने 'गोली के बदले गोली’ नीति अपनाई। हालात बेकाबू होने पर पंजाब में सन 1987 में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।
पंजाब के खूनी पुलिसवाले का कबूलनामा | कंवर संधू

आतंकवाद विरोधी कार्रवाइयों को और धारदार बनाने के लिए कंवर पाल सिंह गिल लाए गए। खुली छूट वाले पंचवर्षीय अभियान में पुलिस को कई महत्वपूर्ण सफलताएं मिलीं। कई पुलिस अधिकारी भी अलगाववादियों की गोलियों के शिकार हुए। सन 1992 के चुनावों के बाद, जिसका अकाली दल ने बहिष्कार किया और मतदान प्रतिशत अल्प रहा, बेअंत सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार ने शासन संभाला। उन्होंने आतंकवाद विरोधी अभियान को समर्थन दिया, नतीजतन चंडीगढ़ में अगस्त 1995 में एक बम विस्फोट में उनकी हत्या कर दी गई। उस साल, बाद में गिल ने पंजाब पुलिस महानिदेशक का पदभार छोड़ा, तब तक आतंकवाद कुचल दिया गया था। पंजाब पुलिस को अकल्पनीय उपलब्धि का श्रेय मिला। तब से शांति कायम है। लेकिन इसके लिए क्रूर तरीकों के इस्तेमाल की हमेशा चर्चा हुई। यह चर्चा अब जोर-शोर से खासकर प्रवासी सिखों के बीच हो रही है। इंटरनेट पर मानव अधिकार उल्लंघन के आरोप छाए हुए हैं। शिरोमणि अकाली-भारतीय जनता पार्टी सरकार को भारी शासन विरोधी रुझान झेलना पड़ रहा है, उग्र सिख समूह शिकायतों के पुलिंदे के साथ एकजुट हो रहे हैं। पुलिस में भी थोड़ी घबराहट है। अहम मुद्दा है: मानवाधिकार उल्लंघनों का दायरा कितना था? पंजाब के उथल-पुथल भरे अध्याय का समापन कभी होगा जिसे पंजाब के एक पुलिसवाले ने अपनी सनसनीखेज आत्म स्वीकृतियों से पुनर्जीवित कर दिया है?

पंजाब पुलिस में सन 1987 में कॉन्स्टेबल के तौर पर भर्ती गुरमीत सिंह पिंकी ने अगले कुछ सालों में खासी तरक्की की। उसकी विशेषज्ञता मुठभेड़ में मौतें थीं। सन 2001 में उसे उम्रकैद की सजा दी गई। यह सजा उन मुठभेड़ में हत्याओं की वजह से नहीं, अवतार सिंह गोला को गोली मारने के आरोप में दी गई। पिछले साल उसे चुपचाप रिहा कर दिया गया। इस साल मई में उसकी सरकारी सेवा बहाल कर दी गई। यह आदेश पलट दिया गया। अपनी बहाली पलटे जाने के खिलाफ अदालत गए पिंकी ने एक टैप की हुई आत्मस्वीकृति में पंजाब पुलिस में बिताए वर्षों के कई राज खोले हैं। कैसे खालिस्तानी बगावत को कुचलने के लिए पंजाब पुलिस आए दिन फर्जी मुठभेड़ों का इस्तेमाल करती थी। पिंकी ने जो ठंडा वर्णन किया है वह यहां प्रस्तुत है:

 

"आतंकवाद से लड़ने के नाम पर प्रतिदिन घोर असत्य का नाटक खेला जाता था। संदिग्धों को एक जगह से उठाया जाता, दूसरी जगह ले जाया जाता, तीसरी जगह रखा जाता था और चौथी जगह मुठभेड़ दिखाई जाती थी। जो मैंने देखा, जिससे जुड़ा रहा उससे लोगों को धक्का पहुंचेगा।" गुरमीत सिंह पिंकी

 

2 नवंबर 1992 को मुंबई के एंटाप हिल अपार्टमेंट की चौथी मंजिल से जब गोलियों की आवाज सुनाई पड़ी तो निकट के थाने से स्थानीय पुलिसवालों ने तेजी से आकर अपार्टमेंट घेर लिया। पसीने से लथपथ, फटी कमीज और नाक से खून टपकाते, सादे कपड़ों में हाथ में पिस्तौल लिए एक व्यक्ति इमारत से बाहर निकला। आसपास की छतों पर तैनात मुंबई के पुलिसवालों को उसने चिल्लाकर बताया कि वह पंजाब पुलिस का सब-इंस्पेक्टर है जिसने खूंखार उग्रवादी राणाप्रताप सिंह उर्फ खडूर साहिब को मार गिराया है जो खालिस्तान कमांडो फोर्स का स्वयंभू लेफ्टिनेंट जनरल था। दो मिनट के अंदर मुंबई इलाके के पुलिस उपायुक्त ए.ए. खान भी मौके पर पहुंच गए। रिवॉल्वर चमकाता आदमी गुरमीत सिंह पिंकी था जो मुखबिर और पंजाब में खन्ना के चार अन्य लोगों के साथ रात भर सफर कर उस खालिस्तानी उग्रवादी की तलाश में आया था। जिसके सिर पर 20 लाख रुपये का इनाम था। पिंकी पंजाब में वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के 'हिट मैन’ के तौर पर मशहूर हो चुका था। 

इस तरह की कुछ कार्रवाइयों में अपने 19 वर्षीय पुलिसिया करिअर में पिंकी अग्रिम मोर्चे पर रहा। उसका दावा है कि कई उच्च खाड़कुओं की गिरक्रतारी या मौत में उसका हाथ था। जैसे, सुखदेव सिंह बब्बर, गुरमुख सिंह नगोगे और हरकेवल सिंह सराभा। इसके अलावा उसने कई जाने-माने खालिस्तानी नेताओं को गिरफ्तार किया जैसे, जगतार सिंह हवारा और दलजीत सिंह बिट्टू। वर्दी में 'हत्याओं’ के लिए पिंकी को इतनी पुरस्कार राशि मिली कि उसकी गिनती तक उसे ठीक से याद नहीं। उसको अपने प्रयासों के लिए राष्ट्रपति पुलिस पदक भी प्रदान किया गया। 56 वर्षीय पिंकी अब बुरी तरह मोटा है और एक वक्त के भयानक 'हत्यारे पुलिसवाले’ की पैरोडी बनकर रह गया है। अब वह हथियारबंद सुरक्षा में चलता है। किसी वक्त वह वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों की नाक का बाल था जिनमें पंजाब पुलिस के इस वर्ष अक्टूूबर तक पुलिस महानिदेशक सुमेध सिंह सैनी भी शामिल थे। पिंकी को अब लगता है कि व्यवस्था ने उसके साथ दगा की। 

आउटलुक से एक निर्बाध बातचीत में उसने पुलिस अपहरण, फर्जी और वास्तविक मुठभेड़ों तथा ठंडे दिमाग से पुलिस अधिकारियों द्वारा अपनी मौजूदगी में हत्याओं के आश्चर्यजनक ब्यौरे दिए हैं। पिंकी कहता है, 'मुझे किसी बात की चिंता नहीं क्योंकि मैंने उस हत्या के लिए जेल काटी जो मैंने की ही नहीं। अपनी भलाई के लिए मुझे चुप रहने को कहा गया था। लेकिन मैं सड़क पर हूं। (उल्लेखनीय है कि उसकी कैद के दौरान उसकी पत्नी को उसका पुलिस वेतन मिलता रहा)। मुझसे ज्यादा अपराध करने वाले उच्चाधिकारी भला क्यों छूटें?’ वह कहता है, 'बहुत कुछ जानने और उसे बताने का साहस करने के लिए मुझे नुकसान पहुंचाया जा सकता है।’ यहां उन फर्जी मुठभेड़ों का ब्यौरा दिया जा रहा है जिनमें पिंकी शरीक था: 

 

कैसे खेला गया था मुठभेड़ों का नाटक

दिखने में तो लुधियाना की अपराध अनुसंधान एजेंसी (सीआईए) आतंकवाद विरोधी गतिविधियों का केंद्र थी। लेकिन असली धुरी तो निकट के डुगरी में 82वीं बटालियन का मुक्चयालय था। सीआरपीएफ के डिप्टी कमांडेंट चंचल सिंह और लुधियाना पुलिस अधीक्षक (ऑपरेशंस) बीएस गिल, जो सीआरपीएफ से डेपुटेशन पर थे, ज्यादातर ऐसी गतिविधियों का समन्वय करते थे। इसके तहत संदिग्ध उग्रवादियों को पकड़ा जाता था जो गुप्त मुखबिर बन जाते थे। कैट्स जो कंसिल्ड एप्रीहेंशन टेक्निक्स का संक्षिप्त रूप था। पिंकी के अनुसार, उनकी एक महत्वपूर्ण पकड़ अंतरराष्ट्रीय सिख यूथ फेडरेशन का गुरशरण सिंह सैदपुर था। सैदपुर भोलट का संदिग्ध खाड़कू कमलजीत सिंह था। जिसे 1989 में गिरफ्तार किया गया। कमलजीत कपूरथला जिले के पुलिस इंस्पेक्टर की घात लगाकर हत्या में शरीक था। तोड़ने में वह कठिन साबित हुआ। थर्ड डिग्री की यातनाओं के बाद भी वह सिर्फ 'वाहे गुरु’ बोलता था। पिंकी के मुताबिक, लुधियाना सीआईए के इंस्पेक्टर शिवकुमार ने कमलजीत की 'मुठभेड़’ की व्यवस्था की। इस कथित फर्जी मुठभेड़ में अपनी भूमिका के बारे में पूछे जाने पर बीएस गिल ने कहा, 'जो आरोप लगाया जा रहा है अचानक याद नहीं आ रहा है। ये बहुत पुराने मामले हैं।’ बार-बार पूछने पर उन्होंने कहा, 'वह पिंकी को जानते हैं अंट-शंट बोलकर पुलिस विभाग के प्रति अपना गुस्सा  निकालता है।’

पिंकी के अनुसार, सैदपुर ने केसीएफ के आतंकी फगवाड़ा के निकट पंडोरी गांव के शेरसिंह शेर, पटियाला मेडिकल कॉलेज के छात्र अजमेर सिंह लोदीवाल और फलाद गांव के बख्तोरा सिंह बठिंडा की भी शिनाख्त की। इनमें से अंतिम दो को सीआरपीएफ ने लुधियाना के मॉडल टाउन से गिरफ्तार किया। सीआरपीएफ जब लोदीवाल को गिरफ्तार कर रही थी तो उसने साइनाइड खा लिया और बख्तोरा का कूल्हा पूछताछ के दौरान खिसक गया। बख्तोरा के साथ शेर सिंह को भी बाद में देहलों के थाना प्रभारी गुड्डू शमशेर सिंह को सौंप दिया गया जिसमें एक 'अनजान’ व्यक्ति के तौर पर शेर सिंह की 'मुठभेड़’ का जाल रचा। पिंकी के अनुसार, इन उग्रवादियों के रिश्तेदारों को कुछ नहीं पता चल पाता था क्योंकि वे गैर-कानूनी हिरासत में रखे जाते थे।

 

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आतंकवाद के चरम पर प्रोफेसर राजेंद्र पाल सिंह बुलारा की गुमशुदगी का मामला भी सनसनीखेज बना। 15 फरवरी, 1989 को पंजाब में लुधियाना पुलिस ने घोषणा की कि 26 जनवरी की मुठभेड़ में मारे गए तीन लोगों की शिनाख्त हो गई है। ये प्रोफेसर बुलारा और उनके दो सहयोगी बताए गए। इस वजह से पंजाब के सारे विश्वविद्यालय कई दिनों के लिए बंद हो गए। पुलिस ने प्रोफेसर बुलारा का अपहरण कर उनकी हत्या कर दी। साथ ही मेरे वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के दावे के विपरीत उस घटना में चार लोग मारे गए थे, तीन नहीं।’ लुधियाना के पंजाब कृषि विश्वविद्यालय में पढ़ाने वाले बुलारा ऑपरेशन ब्लू स्टार के बाद भूमिगत हो गए थे। पिंकी के अनुसार, सैदपुर की मुखबिरी के आधार पर पुलिस ने यह कार्रवाई की थी। चंडीगढ़ के सेक्टर 15 में एक रेस्तरां के बाहर से 25 जनवरी 1989 को पुलिस ने तीन अन्य लोगों के साथ बुलारा को पकड़ा था। सैदपुर ने चारों की शिनाख्त की थी। बाद में एसपी बने शिवकुमार ने छापा मारने में सीआईए दल का नेतृत्व किया था। पायल थाने के एसएचओ और बाद में डीएसपी बना संतकुमार भी छापा मारने वाले दल के साथ था। पिंकी तब सीआईए में कनिष्ठ पद पर था। उसने पूरी कार्रवाई में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। प्रोफेसर बुलारा अपने रिश्तेदारों के एक ट्रैक्टर में आए थे। पकड़े जाते वक्त चारों में से एक ने प्रतिरोध किया और इंस्पेेक्टर संत कुमार को उसके गले में साइनाइड कैप्सूल जबरदस्ती, उतारना पड़ा। बाकी तीन को लुधियाना रवाना कर दिया गया। एक कॉन्स्टेबल से वह ट्रैक्टर चलाकर ले जाने को कहा गया जिस पर बुलारा आए थे। रास्ते से छापा दल ने तत्कालीन वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक सुमेध सिंह सैनी और एसपी ऑपरेशंस बीएस गिल को वायरलैस किया, 'गोल कर दिया, मैच जीत गए।’ तुरंत जवाब आया, 'डूगरी सीआरपीएफ 82वीं बटालियन मुख्यालय आओ।’ तीनों को सैनी के सामने पेश किया गया जो गिल के साथ मौजूद थे। हमने प्रोफेसर बुलारा की शक्ल एक कंबल से ढंक रखी थी। हमने उन्हें सैनी के सामने हाजिर किया, जिन्होंने फिल्मी स्टाइल में ताली बजाकर कहा, 'खुल जा सिमसिम’ और हमने पर्दा उठा दिया। एसएसपी सैनी ने बुलारा से पूछा कि क्या उन्होंने अपनी पत्नी की हिरासत में बेइज्जती की एवज में सैनी को खत्म करने की धमकी दी थी। बुलारा के खंडन करने पर उन्हें सैदपुर से रूबरू कराया गया।

पिंकी के अनुसार, आगे जो हुआ उसका वह गवाह है। उसने सैनी को सदर थाना प्रभारी कंवरजीत सिंह बाद में एसपी से यह कहते हुए सुना, 'बुलारा को गाड़ी चढ़ाओ।’ इसके बाद सैनी ने बाकी लोगों से जाकर जश्न मनाने को कहा। पिंकी का कहना है, 'बुलारा को चंडीगढ़ से लाने के लिए हम लोगों को 10 हजार रुपये दिए गए थे। बुलारा और दो अन्य लोगों की लाश के साथ जो हथियार उनके साथ दिखाए गए वे सैदपुर की मदद से रोपड़ जिले में एक जगह से बरामद किए गए थे। बुलारा के साथ मारे गए दो अन्य लोग थे: मुल्लदनपुर गरीबदास के दविंदर पाल सिंह हैप्पी और चंडीगढ़ के प्रभजोत सिंह मिंटू। 15 फरवरी 1989 को जनदबाव के आगे झुकते हुए लुधियाना के एसएसपी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर बताया कि मुठभेड़ में मारे गए लोगों की शिनाख्त प्रोफेसर बुलारा और दो अन्य लोगों के रूप में हुई है। प्रोफेसर बुलारा की पत्नी राजिंदर कौर, जो बाद में सांसद बनी ने मुझे बताया कि हालांकि फर्जी मुठभेड़ में अपने पति की मौत की जानकारी उन्हें थी लेकिन उन्हें अब तक यह नहीं पता कि प्रोफेसर बुलारा को कैसे मारा गया। जब शिवकुमार का पक्ष लेने के लिए फोन किया तो उनका मोबाइल तुरंत स्विच ऑफ कर दिया गया। 

 

रिहाई या हत्या अधिकारियों की मर्जी पर निर्भर

पिंकी का दावा है कि उग्रवादी और अपराधी अधिकारियों की मनमर्जी से रिहा या मारे जाते। जब सन 1990 में सैनी का तबादला लुधियाना से बठिंडा एसएसपी के तौर पर किया गया तो पिंकी भी उनके साथ गया। पिंकी के अनुसार, तबादले के वञ्चत कई 'कैट बन गए आतंकियों’ की धरपकड़ कर उन्हें फर्जी मुठभेड़ों में मारे जाने के लिए विभिन्न थाना प्रभारियों के हवाले कर दिया गया। रायकोट के निकट सीबीया गांव का गुरप्रीत सिंह ऐसा ही एक शख्स था। वह जीएनई लुधियाना का छात्र था जिसकी कई मामलों में तलाश थी। उसे रायकोट थाना प्रभारी प्यारा सिंह मुल्तानी के हवाले 'अनजान व्यक्ति’ के रूप में 'मुठभेड़’ के लिए सौंप दिया गया। 

हालांकि, सैदपुर इस नियति से बच गया। उसे भी 'जरूरत की कार्रवाई’ के लिए शुरू में समराला थाना प्रभारी को सौंपा गया था। पिंकी के अनुसार वह हमारा सबसे बड़ा स्रोत था जिसे पुरस्कार के तौर पर अमेरिका जाने दिया गया। अब सिएटल निवासी सैदपुर इस बात का जोरदार खंडन करता है कि उसने खालिस्तानियों की निशानदेही कर पुलिस की मदद की। वह मानता है कि वह सुरक्षाबलों की अवैध हिरासत में साल भर रहा लेकिन इसलिए कि उसने उनके साथ सहयोग करने से इनकार कर दिया था। सैदपुर कहता है, 'हत्या’ के मामले में सजायाफ्ता पिंकी कुछ भी कह सकता है। हां, मुझे रोपड़ में गिरफ्तार किया गया लेकिन शस्त्र कानून के तहत नहीं।’ 

 

ऊपर से निर्देश

पिंकी के अनुसार, कई उग्रवादी वरिष्ठ अधिकारियों के संपर्क में थे। वह कहता है, 'हमें कई ऐसे लोगों को छोडऩे के लिए बाध्य किया जाता जिन्हें हम मुखबिरों की जानकारी के आधार पर गिरक्रतार करते थे।’ उसने बताया कि कैसे उन्होंने करतारपुर के राजिंदर चौड़ा को गिरक्रतार किया था जिसने उन्हें आतंकवादी सरगनाओं के बारे में अहम जानकारी दी। उसने गिरफ्तार करने वाली पुलिस पार्टी को बताया, 'इधर आप मुझे गिरफ्तार कर रहे हैं और उधर आपके ही आला अधिकारी घंटों, गुरजंट सिंह बुधसिंहवाला सहित हमारे शीर्ष उग्रवादी नेताओं से बातचीत कर रहे हैं।’ और वाकई एक प्रमुख खुफिया एजेंसी के अधिकारी से आनन-फानन में दबाव आया जिसने कहा कि चौड़ा उनका स्रोत है इसलिए उसे छोड़ दिया जाए। पिंकी बताता है, 'चूंकि उसके पास एक अवैध हथियार मिला था इसलिए मैंने उसे छोड़ने से मना कर दिया। लुधियाना के तत्कालीन एसएसपी पीएस संधू ने मुझे चौड़ा को वापस करतारपुर ले जाकर छोड़ने के लिए कहा। यह और बात है कि तीन दिन बाद चौड़ा को आतंकवादियों ने ठिकाने लगा दिया क्योंकि उन्हें  उसकी रिहाई की वजह से शक हो गया था।’ पिंकी के अनुसार, तब मुझे महसूस हुआ कि आतंकवाद को शीर्ष पर बैठे कुछ लोग नियंत्रित कर रहे हैं। 

 

'मेरी मौजूदगी में पिंका को गोली मारी’

पिंकी एक धक्का पहुंचाने वाले वाकये का जिक्र करता है। उसने खुद देखा कि लुधियाना एसएसपी सैनी ने उग्रवादी पिंका मोहाली को लुधियाना के सीआईए कार्यालय में गोली मारी। उग्रवादियों की सूची में कट्टर आतंकवादी के रूप में पिंका का जिक्र नहीं था। उसे चंचल सिंह के नेतृत्व में सीआईपीएफ ने गिरफ्तार कर लुधियाना सीआईए को सौंपा। पिंकी के अनुसार वहां उसके अलावा सिपाही सतपाल भी था जो बाद में सब-इंस्पेक्टर बन गया। मौके पर सतपाल का ड्राइवर शिव कुमार सीआरपीएफ के चंचल सिंह और एसपी जोगिंदर सिंह खैरा भी मौजूद थे। सीआईए इंस्पेक्टर संतकुमार ने तब जिप्सी में ले जाकर शव को भाखड़ा नहर में डाल दिया जो उस समय आम बात थी। पुलिस हिरासत में पिंका मोहाली (असली नाम जसबीर सिंह)की मौत के बारे में जानकारी उसके परिजनों को नहीं दी गई।  

 

जटाणाओं का सफाया

लुधियाना में अधिकृत तौर पर तैनात होने के दौरान भी पिंकी सैनी का प्रिय होने के कारण अधिकतर वक्त चंडीगढ़ में ही गुजारता था। सैनी 9 अगस्त 1991 को लंच के बाद जब लौट रहा था तो बम हमला हुआ। तीन लोग मारे गए और एसएसपी भी घायल हुए। सिर्फ हफ्ते भर पहले सैनी को बब्बर खालसा का धमकी भरा पत्र मिला था इसलिए उन्होंने इसे उस संगठन के कार्यकर्ताओं बलविंदर सिंह जटाणा और चरण जीत सिंह चनना की करतूत समझा। हमले के अगले रोज पीजीआई में सैनी ने पिंकी के सामने बदला लेने की सौगंध ली। जटाणा परिवार के क्रमश: 80, 40, 13 साल उम्र वाले और एक शिशु, इन चार लोगों को मारकर जला दिया गया। बाद में पटियाला के सैदपुर में 4 सिंतबर 1991 को एक मुठभेड़ में जटाणा और चनना भी मारे गए। बाद में पता चला कि सैनी पर हमला एक अन्य संगठन खालिस्तान लिबरेशन फोर्स ने किया था जिसमें जटाणाओं की कोई भूमिका नहीं थी। हालांकि पहले पिंकी को ही जटाणा गांव पर हमले की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, उसे अंजाम दिया अजीत सिंह पुहला ने। 2008 में पुहला पर भी हमला हुआ और अमृतसर जेल में साथी बंदियों ने उस पर कैरोसीन तेल उड़ेलकर आग लगा दी जिसके तुरंत बाद वह मर गया।

पिंकी का दावा है कि वरिष्ठ अधिकारियों के आदेश पर यह पुलिस की कार्रवाई थी जिसे गिरोहों की लड़ाई का परिणाम बताया गया। पिंकी को याद है कि जटाणा गांव की घटना ने कैसे पुलिस में गंभीर आपसी मतभेद पैदा कर दिए थे। इसके पीछे एसएसपी सैनी का हाथ होने का आरोप रोपड़ के तत्कालीन एसएसपी मोहक्वमद मुस्तफा ने डीजीपी डीएस मंगत को एक चिट्ठी में लगाया था। यह शक सही था कि हत्या के पीछे पुहला या पिंकी का हाथ था। पिंकी का दावा है कि उन्हें गिरफ्तारी से बचाने के लिए पुलिस ने एक तरह अनौपचारिक हिरासत में रखा। मंगत के स्थान पर केपीएस गिल को डीजीपी बनाए जाने के बाद ही उन्हें हिरासत से 'छोड़ा’ गया। 

 

मैंने मुल्तानी को चंडीगढ़ पुलिस थाने में मारे जाते देखा

चंडीगढ़ में सेक्टर 17 में एक और खौफनाक मौत का प्रत्यक्षदर्शी होने का दावा पिंकी ने किया है। यह मौत आईएएस अफसर दर्शन सिंह मुलतानी के बेटे बलवंत सिंह मुलतानी को सब-इंस्पेक्टर जागीर सिंह (बाद में इंस्पेक्टर) गिरफ्तार कर थाने लाया गया। जानकारी नहीं देने पर सैनी ने इंस्पेक्टर मलिक को मुलतानी के अंदर तेल लगा डंडा घुसेड़ने के लिए कहा। लेकिन डंडा घुसेड़ते ही मुलतानी मर गया जिसकी लाश ठिकाने लगा दी गई। बाद में उसके भाग जाने की झूठी कहानी फैलाई गई। पिंकी ने इस मामले के प्रत्यक्षदर्शियों का  नाम भी लिया है। सुप्रीम कोर्ट ने 8 दिसंबर 2011 को तीन लोगों के सफाए में सैनी और अन्य लोगों के हाथ होने के मामले को रद्द कर दिया। इन तीन लोगों में मुलतानी भी था। पिंकी का रहस्योदघाटन इस मामले को फिर से खोल सकता है।  

 

वरिष्ठों ने इनाम हड़पा

पिंकी को याद है कि वह लुधियाना एसएसपी एस चट्टोपाध्याय, बी एस गिल और इंस्पेक्टर मनमोहन सिंह की पुलिस कुमूक का हिस्सा था। जिसने पटियाला में अगस्त 1992 में शीर्ष खालिस्तानी नेता सुखदेव सिंह बब्बर को पटियाला में अगस्त 1992 में जिंदा गिरफ्तार किया था। पूछताछ के बाद उसकी फर्जी मुठभेड़ में हत्या कर दी गई और बीएस गिल ने उसकी मारुति 1000 कार भी हड़प ली। पुलिस ने कैट की सूचना के आधार पर मुकेरियां बस स्टैंड से 1992 में खालिस्तान कमांडों फोर्स के स्वयंभू लेफ्टिनेंट जनरल गुरमुख सिंह नगोके को उसकी पत्नी और तीन महीने के बच्चे के साथ दबोचा था। बाद में उसकी भी पत्नी के साथ खन्ना समराला रोड पर 2 अक्टूबर 1992 को एक फर्जी मुठभेड़ में हत्या कर दी गई। पिंकी का दावा है कि एफआईआर दर्ज कराने वाले एसएसपी राजकिशन बेदी अधिकांश पुरस्कार राशि डकार गए। 

 

 पैसे के लिए गैर आतंकवादी भी मार डाले गए

पिंकी का दावा है कि पुलिस के हत्थे चढ़ने वाले छोटे अपराधियों का भी पैसे के लिए सफाया कर दिया जाता था। खन्ना में पिंकी के पूर्व सहयोगियों ने इस संवाददाता को बताया कि 1993 में उन्हें स्वर्ण मंदिर एक्सप्रेस से फगवाड़ा के पास उतार लेने को कहा गया। ये दोनों हवाला धंधेबाज थे जिन्हें एसएसपी बेदी के पास ले जाया गया। दोनों के पास से 70 हजार डॉलर बरामद हुए। सीआईएम मुख्यालय में इंस्पेक्टर अमरीक सिंह के नेतृत्व में उनसे पूछताछ हुई हालांकि कोई गिरफ्तारी नहीं दिखाई गई। एक को छोड़ दिया गया, लेकिन उसके साथी कपूरथला जिले के एक गांव के अवतार सिंह तारी को हफ्ते भर बाद मुठभेड़ में मार डालने का दावा किया गया। इस फर्जी मुठभेड़ को विश्वसनीय बनाने के लिए उसकी मौत एक वांछित अपराधी समराला के निकट मानकी गांव के दर्शन सिंह के साथ दिखाई गई। फर्जी मुठभेड़ को राजकिशन बेदी और जोगिंदर सिंह ने अंजाम दिया। यह वरिष्ठ अधिकारियों का डॉलरों के प्रति लालच था जिनके लिए उसे मार डाला गया। वह आतंकवादी नहीं था।

बेदी ने टेलीफोन पर पिंकी के सभी आरोपों का खंडन किया है। उन्होंने कहा, 'वह सजायाफ्ता पुलिस वाला है जिसकी कोई विश्वसनीयता नहीं है। वह कहानियां गढ़ रहा है। वह पहले क्यों नहीं बोला? बेदी अब ब्यास में एक धार्मिक संप्रदाय के मुक्चयालय में रहते हैं। उनके बेटे की आतंकियों ने हत्या कर दी थी। 

 

मानवाधिकारों का कोई हनन नहीं हुआ: केपीएस गिल

हालांकि पिंकी को मानवाधिकार कार्यकर्ता जसवंत सिंह खालड़ा की तरनतारन में हत्या की कोई प्रत्यक्ष जानकारी नहीं है लेकिन उसे इसका कुछ-कुछ भान है। उसने खालड़ा मामले में सजायाफ्ता डीएसपी जसपाल सिंह के साथ जेल में कुछ दिन गुजारे हैं। पिंकी का दावा है कि वरिष्ठ  अधिकारियों के निर्देश पर जसपाल सिंह और अन्य लोगों ने खालड़ा की हत्या की। लेकिन पिंकी इनके नाम नहीं लेता। वह कहता है, 'जसपाल सिंह और अन्य दोषी करार दिए गए लोग यह करें तो बेहतर।’ दूसरी तरफ पंजाब पुलिस के पूर्व महानिदेशक केपीएस गिल ने खालड़ा मामले की किसी भी जानकारी ने इनकार किया है। इस वर्ष सितंबर में इस संवाददाता से इंटरव्यू में उन्होंने दावा किया कि शायद खालड़ा की हत्या आतंकवादियों ने की। गिल के अनुसार पंजाब पुलिस की कथित ज्यादतियां न्यूनतम थीं और पंजाब का आतंकवादी विरोधी अभियान विश्व में सबसे ज्यादा मानवीय था।

 

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जब पिंकी के आरोप पंजाब के वर्तमान डीजीपी सुरेश अरोड़ा के ध्यान में लाए गए तो उन्होंने इस पर फिलहाल कोई टिप्पणी करने से इनकार किया है। पिंकी के आरोपों के केंद्र बिंदु सैनी से संपर्क की बारंबार कोशिशें नाकाम हुई हैं। हालांकि नाम न बताने की इच्छा रखने वाले एक एडीजीपी ने बताया कि आतंकवाद से मुकाबले में लगभग 1784 पुलिसकर्मी या तो मारे गए या घायल हुए। इनमें वे 45 भी हैं जिन्हें मरणोपरांत पुलिस पदक दिया गया। इस तरह मरणोपरांत पुलिस पदक पाने वालों में दो डीआईजी और 8 एसपी रैंक के अधिकारी हैं। यह बताते हुए उन्होंने पूछा, 'यदि मुठभेड़े फर्जी होतीं तो इतने पुलिस वाले मारे जाते?’ खास-खास मामलों के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, 'यह इतिहास है जिसकी बातें हम याद रखना नहीं चाहते।’

 

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निष्कर्ष: अत: कौन तय करेगा कि कुछ पुलिस अधिकारियों की तरफ से कुछ गैरकानूनी और असंवैधानिक कृत्य हुए? इस तरह की कार्रवाइयों को मौन सहमति के संकेत पंजाब डीजीपी को आईबी के एक शीर्ष अधिकारी द्वारा लिख पत्र में मिल गए, 30 दिसंबर 1991 को लिखा यह पत्र गलती से सार्वजनिक हो गया (देखें बॉक्स)। इसमें कोई संदेह नहीं कि पिंकी का अपना ट्रैक रिकॉर्ड ही संदेहास्पद रहा है। इसके अलावा चूंकि वह खुद दागदार हैं इसलिए उनकी बातों पर कैसे यकीन किया जा सकता है? साथ ही, क्या इतने सारे घोर निंदनीय गैरकानूनी कृत्यों की पूरी तरह अनदेखी की जा सकती है? वह कहते हैं, 'जो इस बात को खारिज करते हैं, वे मेरे सामने आकर सुनें कि मैं क्या कह रहा हूं। इस पर सार्वजनिक बहस करें और जांच बिठाएं।’ संक्षेप में इस आधार पर कुछ स्मृति लेख तो लिखे ही जाएंगे।

 

(कंवर संधू चंडीगढ़ के वरिष्ठ पत्रकार हैं और वह इंडिया टुडे, इंडियन एक्सप्रेस तथा हिंदुस्तान टाइम्स के साथ काम कर चुके हैं। कुछ समय तक डे एंड नाइट चैनल के प्रमुख रहने के बाद अब वह प्रोडक्‍शन हाउस फ्री मीडिया इनिशिएटिव चला रहे हैं) 

- चंदर सुता डोगरा और कासिफ फारूकी के इनपुट के साथ

 

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