दिल्ली हाइकोर्ट ने आज राजधानी की कानून-व्यवस्था पर सवाल उठाए हैं। राज्य के मुख्य सचिव अंशु प्रकाश के साथ कथित मारपीट के मामले में दो में से एक आप विधायक की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान इस बात पर चिंता जताई कि किसी व्यक्ति के साथ मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री की मौजूदगी में मारपीट की जा सकती है तब अन्य जगहों पर क्या होगा। कोर्ट इस बात से कैसे संतुष्ट होगा कि इस तरह की घटना भविष्य में नहीं होगी। बाद में कोर्ट ने जमानत याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया।
जस्टिस मुक्ता गुप्ता ने कहा, “एक जगह पर मुख्यमंत्री बैठा हुआ है और एक व्यक्ति से मारपीट हो जाती है। कानून और व्यव्यवस्था की स्थिति क्या है। यह मुख्यमंत्री के सामने हो रहा है। मैं जिस व्यक्ति के साथ मारपीट हुई है उसके व्यक्तित्व पर नहीं जा रही हूं। आपको इसका जवाब देना होगा।”
कोर्ट की यह टिप्पणी देवली के आप विधायक प्रकाश जारवाल की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान की गई। जारवाल को मुख्य सचिव के साथ मारपीट के मामले में 20 फरवरी को गिरफ्तार किया गया था।
सुनवाई के दौरान जारवाल की ओर से पेश अधिवक्ता रेबेका जॉन और दया कृष्ण ने कहा कि वे किसी भी शर्त का पालन करने को तैयार हैं। इसके अलावा वे इस बात का हलफनामा देने के लिए भी राजी हैं कि यदि वे किसी शर्त का उल्लंघन करते हैं तो उनकी जमानत रद्द कर दी जाए। वकीलों ने कहा कि घटना के दौरान विधायकों और मुख्य सचिव में जोरदार बहस हुई थी और मारपीट नहीं की गई थी।
पुलिस की ओर से स्थिति रिपोर्ट पेश करते हुए अधिवक्ता संजय लाउ ने कहा कि मेडिकल रिपोर्ट के वरिष्ठ अधिकारी को लगी चोट साधारण है पर जारवाल पर लगे दो प्रावधान गैरजमानती हैं। जमानत का विरोध करते हुए उन्होंने घटना को बेहद दुर्भाग्यपूर्ण बताते हुए कहा कि पुलिस ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरवाल के आवास से वीडियो रिकॉर्डिंग ले ली है। उन्होंने कहा कि जारवाल का नाम पहले प्राथमिकी में दर्ज नहीं था क्योंकि मुख्य सचिव को खुद के साथ मारपीट करने वालों के नामों की जानकारी नहीं थी।
मुख्य सचिव की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ लूथरा ने भी जारवाल को जमानत देने का विरोध किया। उन्होंने कहा कि अधिकारी को रूम में जानबूझ कर बुलाया गया था क्योंकि वहां कैमरा नहीं लगा था। उन्हें दो लोगों के बीच बैठाया गया था।