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दिल्ली हाई कोर्ट ने नर्सरी प्रवेश के नए नियमों पर लगाई रोक

दिल्ली उच्च न्यायालय ने आप सरकार के स्कूल से नजदीकी के आधार पर बनाए गए नर्सरी में प्रवेश के नए नियमों पर आज यह कहते हुए रोक लगा दी कि ये नियम मनमाने और भेदभावपूर्ण हैं। न्यायमूर्ति मनमोहन ने कहा कि नए नियमों पर सात जनवरी को लगाई गई अंतरिम रोक तब तक जारी रहेगी जब तक कि गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों से संबंधित दिल्ली सरकार के आदेश को चुनौती देने वाली याचिकाओं का पूरी तरह निस्तारण नहीं हो जाता।
दिल्ली हाई कोर्ट ने नर्सरी प्रवेश के नए नियमों पर लगाई रोक

दिल्ली सरकार ने गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों को आदेश दिया था कि वह नर्सरी प्रवेश से संबंधित आवेदन स्कूल से घर की दूरी के मापदंड के आधार पर ही स्वीकार करें। दिल्ली सरकार ने 19 दिसंबर, 2016 और सात जनवरी को अधिसूचना जारी कर दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) की भूमि पर बने 298 निजी स्कूलों को नर्सरी प्रवेश से संबंधित फॉर्म केवल नजदीकी मापदंड के आधार पर ही स्वीकार करने का निर्देश दिया था। इसे अभिभावकों और दो स्कूल समूहों ने याचिका दायर कर चुनौती दी थी।

सात जनवरी की अधिसूचना पर रोक लगाते हुए अदालत ने कहा कि दिल्ली सरकार का शिक्षा निदेशालय (डीओई) जो काम सीधे तौर पर नहीं कर सकता, वही काम वह अप्रत्यक्ष तौर पर भी नहीं कर सकता है। आवेदन देने की आज अंतिम तारीख है।

 

इससे पहले अदालत ने राष्ट्रीय राजधानी में अल्पसंख्यक स्कूलों के मद्देनजर इस अधिसूचना के अनुपालन पर रोक लगा दी थी। अदालत ने कहा था कि नजदीकी का मापदंड जो आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों और वंचित समूहों पर लागू होता है, वह सामान्य श्रेणी पर लागू नहीं होता है। अदालत ने सरकार के उस तर्क को भी खारिज कर दिया जिसमें उसने कहा था कि यह फैसला जनहित में लिया गया है। अदालत ने कहा कि जनहित को डीडीए की जमीन पर बने 289 स्कूलों में जाने वाले बच्चों तक सीमित नहीं किया जा सकता।

अदालत ने कहा कि दिल्ली में अच्छे किस्म के सरकारी स्कूलों की कमी है जिसकी वजह से नजदीकी आधारित मापदंड को उचित ढंग से लागू नहीं किया जा सकता। अदालत ने यह भी कहा कि प्रवेश के बारे में आसपास का मापदंड पर आधारित नियम प्रथम दृष्टया असंवैधानिक हैं।

बहस के दौरान स्कूली समूहों ने आरोप लगाया था कि दिल्ली सरकार ने स्कूलों के बीच भेदभाव किया क्योंकि नजदीकी आधारित मापदंड केवल 298 स्कूलों पर ही लागू किए गए हैं जबकि इसे शहर के अन्य 1, 400 स्कूलों के लिए अनिवार्य नहीं किया गया है। दिल्ली सरकार ने अपने फैसले के बचाव में कहा कि आवंटन पत्र से यह पूरी तरह स्पष्ट होता है कि पट्टे की जमीन पर संचालित स्कूलों ने आवंटन की शर्तों को स्वीकार किया और उन्हीं नियमों पर वह आवंटन के समय से संपत्ति का उपयोग कर रहे हैं।

 

इससे पहले के अंतरिम आदेश में अदालत ने अभिभावकों को स्कूलों और दिल्ली सरकार द्वारा तय किए गए मापदंडों के आधार पर विभिन्न स्कूलों में आवेदन करने की इजाजत दी थी। (एजेंसी)

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