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अयोध्या पर फैसले से पहले प्रशासन सतर्क, सोशल मीडिया में देवताओं पर विवादित टिप्पणी करने पर रोक

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट के अपेक्षित फैसले के मद्देनजर अयोध्या के जिला...
अयोध्या पर फैसले से पहले प्रशासन सतर्क, सोशल मीडिया में देवताओं पर विवादित टिप्पणी करने पर रोक

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट के अपेक्षित फैसले के मद्देनजर अयोध्या के जिला मजिस्ट्रेट ने कानून और व्यवस्था की स्थिति को ध्यान में रखते हुए जिले में विभिन्न निर्देश जारी किए हैं। निर्देश में सोशल मीडिया पर देवताओं के खिलाफ मानहानि वाली टिप्पणियों पर रोक की बात कही गई है।

30 अक्टूबर के एक आदेश में जिला मजिस्ट्रेट ने सभी व्यक्तियों, संगठनों या समूहों के किसी भी कार्यक्रम या बयान के माध्यम से सामाजिक सद्भाव को बिगाड़ने के प्रयास को प्रतिबंधित किया है।

नागरिकों को आग्नेयास्त्र, विस्फोटक, लाठी या अन्य धारदार हथियारों को रखने, इस्तेमाल करने या उनका प्रदर्शन करने से भी रोक दिया गया है। सार्वजनिक कार्यक्रमों में उपयोग और प्रदर्शन के लिए लाइसेंसधारी हथियारों पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है।

आदेश में कहा गया है, "सार्वजनिक स्थान पर, कोई भी व्यक्ति ऐसे समूह में शामिल नहीं होगा जिसका मकसद कानून के खिलाफ गतिविधियों में भाग लेना है।"

लाउडस्पीकरों के उपयोग पर प्रतिबंध

आदेश में कुछ अन्य निर्देशों में विस्फोटकों, एसिड या पत्थरों को जमा करने, लाउडस्पीकरों के उपयोग पर प्रतिबंध और सोशल मीडिया पर देवताओं के खिलाफ मानहानि वाली टिप्पणियों पर सख्त कार्रवाई शामिल है।

जरूरत पड़ी तो लगाएंगे एनएसए

उत्तर प्रदेश के डीजीपी ओपी सिंह ने रविवार को कहा कि राज्य पुलिस तैयार है और जरूरत पड़ने पर शीर्ष अदालत के फैसले के मद्देनजर कानून व्यवस्था को बाधित करने का प्रयास करने वाले तत्वों पर राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) लगाया जाएगा।

16 अक्टूबर को रखा फैसला सुरक्षित

सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की पीठ ने 40 दिनों तक रोजाना आधार पर अयोध्या मामले की सुनवाई की और 16 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रखा। उम्मीद है कि 17 नवंबर से पहले उत्तर प्रदेश में अयोध्या जिले में 2.77 एकड़ भूमि के मालिकाना हक के विवाद पर शीर्ष अदालत अपना फैसला सुनाएगी। सुनवाई के दौरान एक पक्ष ने दलील दी थी कि पूरी 2.77 एकड़ जमीन भगवान राम की जन्मभूमि या "जन्म स्थली" है, जबकि दूसरे पक्षकारों ने भूमि पर दावा करते हुए कहा कि मुसलमानों के पास 1528 के बाद से भूमि का स्वामित्व था।

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