देश की स्वास्थ्य व्यवस्था की हालत किसी से छिपी नहीं है। हाल ही में गोरखपुर से लेकर छत्तीसगढ़ तक में अस्पतालों की लापरवाही के मामले सामने आए हैं। यकीन मानिए, ये उसी भारत की तस्वीर है, जिसे अब 'न्यू इंडिया' कहा जा रहा है और दावे हैं कि 2022 तक रातों-रात सारी समस्याएं खत्म हो जाएंगी।जब डॉक्टरों की असंवेदनशीलता भी खराब स्वास्थ्य व्यवस्था जुड़ जाती है, तो स्थिति और भी गंभीर हो जाती है
इसका उदाहरण झारखंड के एक अस्पताल में देखने को मिला। राजेंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (रिम्स) में सालभर के बच्चे का इलाज करने से सिर्फ इसलिए मना कर दिया, क्योंकि उसके पिता के पास इलाज के पैसों में 50 रूपए कम थे। इलाज ना हो पाने की वजह से बच्चे की मौत हो गई।
हिंदुस्तान अखबार के मुताबिक, सीटी स्कैन के लिए 1350 रुपये की जरूरत थी। बच्चे के पिता संतोष के पास केवल 1300 रुपये थे। उसने लैब स्टाफ से स्कैन करने का अनुरोध किया लेकिन उन्होंने बच्चे (श्याम) का टेस्ट करने से इनकार कर दिया। अस्पताल प्रबंधन से बच्चे के पिता ने काफी गुहार लगाई लेकिन लैब स्टाफ का दिल नहीं पसीजा।
रिम्स अस्पताल में पीपीपी मोड पर संचालित रेडियोलॉजी सेंटर हेल्थ मैप के काउंटर पर महज 1 साल के श्याम को गोद में लिए उसकी मां गुड़िया और बुआ सारो गिड़गिड़ाती रहीं, रोती रहीं लेकिन उसका सीटी स्कैन नहीं किया गया। संतोष की बहन (बच्चे की बुआ) सारो ने बताया कि सीटी स्कैन के लिए उससे 1350 रुपए मांगे गए। उसने 1300 रुपए जुटा लिए थे लेकिन 50 रुपए कम होने पर सीटी स्कैन से लोगों ने इनकार कर दिया और बच्चे की मौत हो गई। इस घटना ने पीपीपी मोड पर संचालित सरकार की सुविधाओं की पोल खोल दी है।
डॉक्टर ने बच्चे की स्थिति को गंभीर बताते हुए सीटी स्कैन की सलाह दी थी। उन्हें पता चल गया था कि बच्चे के सिर में चोट है, वह लगातार उल्टी कर रहा है, दस्त में खून आ रहा है। ऐसे में जीवन रक्षक उपचार क्यों नहीं शुरू किया गया? सारो कहती है कि अगर उसका समय से उपचार होता, तो सीटी स्कैन हो जाता और बच्चा बच जाता।
कर्ज लेकर मिट्टी का घर बनवाया, उसी घर ने ले ली बच्चे की जान
बच्चे की चोट की वजह भी एक दर्दनाक तस्वीर पेश करती है। सारो ने बताया कि पिछले हफ्ते की बारिश में मिट्टी का घर गिर गया था, जिसमें बच्चे की सिर में चोट लग गई थी। स्थानीय स्तर पर उसका इलाज भी कराया लेकिन जब उसकी स्थिति नहीं सुधरी तो उसे रविवार को रिम्स ले जाने को कहा। रविवार सुबह आठ बजे के करीब ही वे लोग बच्चे को लेकर रिम्स आ गए। यहां इमरजेंसी (बच्चा वार्ड) में उसे देखकर उसकी स्थिति गंभीर बताते हुए पहले सीटी स्कैन कराकर लाने को कहा गया। उसे लेकर वे लोग लैब गए जहां 1350 रुपए मांगे गए। जुगाड़ करने के बाद 1300 रुपए तो पूरा हो गए, लेकिन 50 रुपए कम होने के कारण सीटी स्कैन करने से इनकार कर दिया गया।
कभी डॉक्टर तो कभी सीटी स्कैन के लिए चक्कर लगाते इतना समय गुजर गया कि बच्चे की मौत हो गई। संतोष रिक्शा चलाकर परिवार का भरण पोषण करता है। उसने कर्ज लेकर मिट्टी का घर बनाया था। कर्ज चुकाने के लिए वह रिक्शा चलाना छोड़ बाहर कमाने गया था लेकिन लौट आया। इसी बीच उसका घर भी बारिश में गिर गया, जिसमें बच्चे के सिर पर चोट आई।