दरअसल विजयन ने पद-भार संभालने के तुरंत बाद अपने लिए विधि, संचार-माध्यम, विज्ञान आदि क्षेत्रों के लिए सलाहकारों की नियुक्तियां की थीं। इसी कड़ी में 10 जून को प्रतिष्ठित अधिवक्ता एम.के. दामोदरन को अवैतनिक आधार पर प्रधान सचिव का दर्जा देकर सलाहकार नियुक्त करने की घोषणा की गई थी। दामोदरन प्रतिष्ठत वकील हैं। विवाद तब शुरू हुआ जब वे विवादास्पद लॉटरी किंग सांटियागो मार्टन, क्वारी माफिया या काजू विकास निगम के भ्रष्टाचार से संबंधित मामले, जिस में आई.एन.टी.यू.सी. के नेता भी शामिल हैं, में अदालत में प्रस्तुत होने लगे। इन मामलों में चूंकि सरकार भी एक पक्ष है इसलिए इन माफिया के पक्ष में सरकार के ही एक सलाहकार के वकील के रूप में पेश होने से हड़कंप मच गया। इस नियुक्ति की कटु आलोचना होने लगी। इस पर मुख्यमंत्री ने इस का समर्थन करते हुए स्पष्टीकरण दिया कि एम.के. दामोदरन कोई वेतन लेते नहीं, अत: वे अपनी मर्जी के अनुसार अपना काम चुन सकते हैं।
इस पर राज्य भा.ज.पा. अध्यक्ष कुम्मनम राजशेखरन ने कोच्ची उच्च न्यायालय में अर्जी दर्ज की कि जबकि विधि मामलों में सरकार को सलाह देने के लिए महाधिवक्ता है ऐसी स्थिति में दूसरे सलाहकार की क्या आवश्यकता है? ऐसी हालत में उक्त सलाहकार की नियुक्ति को रद्द करना चाहिए। विवाद बढ़ने के बाद एम.के. दामोदरन ने कहा कि उन्होंने अब तक इस पद को स्वीकार नहीं किया है और इसके बाद उन्होंने इस नियुक्ति को नामंजूर करने की घोषणा कर दी। सरकार ने इसके मुताबिक अदालत में प्रस्ताव भी दिया। लेकिन अदालत ने कहा कि किसी को भी अपनी मर्जी के मुताबिक सलाहकार रखने का अधिकार है, इसका विरोध करने की जरूरत नहीं । लेकिन, अदालत ने कहा कि इस पर बाद में विस्तार से विचार किया जा सकता है।
इस मामले को लेकर खास बात यह रही कि जहां भाजपा ने इस मुद्दे को खूब उछाला वहीं पूर्व मुख्यमंत्री ओम्मन चांडी या नेता प्रतिपक्ष रमेश चेन्नित्तला इस मौके का फायदा उठाने से चूक गए। इसके बावजूद सत्ता में आने के दो महीने से कम में सरकार को लगा यह झटका लंबे समय तक चर्चा में रहेगा।