रामगोपाल जाट
पूरा कर्जा मुक्ति, किसान की सुनिश्चित आय, स्वामीनाथन आयोग की सभी सिफारिशों को अक्षरश: लागू करने को लेकर एक से 10 जून तक देश का किसान तबका गांव बंद करने जा रहा है। इसके लिए देश के स्तर पर चंडीगढ़ में रणनीति बनाई जा चुकी है।
किसान नेताओं द्वारा देश के कई राज्यों में घूम-घूमकर गांव बंद करने के लिए किसानों से संपर्क किया जा रहा है। राजस्थान, हरियाणा, पंजाब, उत्तर पदेश, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, मध्य प्रदेश सहित दक्षिण भारत के भी कई राज्यों के तकरीबन सभी किसान संघों ने इस बंद में भाग लेने का फैसला किया है।
इस अलग तरह के बंद के तहत किसानों व प्रशासन के बीच किसी तरह का टकराव नहीं हो, इसके लिए गांव से बाहर निकल प्रशासन से किसी तरह का कोई भी गतिरोध पैदा होने की स्थिति नहीं होने दी जाएगी। हालांकि, इस तरह का बंद राजस्थान में बीते साल राष्ट्रीय किसान महापंचायत के अध्यक्ष रामपाल जाट के आह्वान पर किया जा चुका है।
इससे भी किया गया था एक दिन का ‘गांव बंद'
9 जुलाई 2017 को एक दिन 'गांव बंद' किया गया था, जिसका व्यापक स्तर पर प्रभाव पड़ा। इसके बाद 17 जुलाई 2017 को राजस्थान के सभी 45 हजार गांवों में किसान कर्फ्यू का भी आयोजन किया जा चुका है। जिसमें गांवों से अनाज व सब्जियों को मंड़ियों में नहीं भेजा गया। करीब उसी समय भारतीय किसान संघ ने भी किसानों के हित में विरोध किया, हालांकि उस बंद विशेषज्ञों ने सरकार के पक्ष में बताया था।
अब एक जून से होने वाले 'गांव बंद' के तहत अलग तरह की रणनीति पर काम किया जा रहा है, ताकि किसान तबके की इन प्रस्तावित गतिविधियों से अन्य समुदाय प्रभावित नहीं हो। इस नई रणनीति से विरोधी बनाने के बजाए दूसरे तबकों का समर्थन भी हासिल किया जा सकेगा। इस बंद में आव्हान किया गया है कि किसानों के द्वारा न रोड जाम किया जाएगा, न ही कहीं पर पुलिस से मुठभेड जैसी बात होगी। सभी किसान अपने-अपने गांव, घरों में बैठकर यह बंद करेंगे।
इस दौरान गांव से रोजाना पहुंचने वाला दूध-अनाज बिक्री के लिए बंद कर दिया जाएगा। हालांकि, इस बंद में राष्ट्रीय किसान महापंचायत के अध्यक्ष रामपाल जाट ने शामिल होने से इनकार किया है।
यह है रणनीति
इस पूरे ‘गांव बंद’ को लेकर 2 मई को चंडीगढ़ में देश के 172 किसान संगठनों के प्रतिनिधियों ने सहमति कर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को तीन सूत्री मांगों को लेकर मांग पत्र भेजा है। बंद के दौरान किसान संघों ने कहा कि इन 10 दिनों में शहर को सब्जी, दूध नहीं भेजे जाएंगे। अपने गांव में उगी सब्जियां ही काम में ली जाएंगी, बाजार उत्पादित चीजों की खरीद भी नहीं होगी। शहर से किसी भी तरह की वस्तुओं की खरीद नहीं करेंगे, सभी शीतल पेय पदार्थों का बहिष्कार किया जाएगा।
इन दस दिनों में किसानों द्वारा आवश्यकताओं की एक-दूसरे से मांगकर पूर्ति करें। साथ ही सामाजिक कार्यक्रमों में भी खर्च नहीं के बराबर करने का आव्हान किया गया है। इस बंद को सफल बनाने को लेकर सोशल मीडिया के द्वारा प्रचारित किया जा रहा है, ताकि हर गांव, कस्बे, शहर और राज्य में व्यापक स्तर पर संदेश दिया जा सके।
मुख्य मुद्दा स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें हैं
किसानों का कहना है कि 14 साल बाद भी आज तक स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू नहीं किया जा रहा है। इस दौरान देश में तीन सरकारें बदल चुकी हैं, जबकि 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी और नरेंद्र मोदी ने भी स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों को लागू करने का वादा किया था, किंतु चार साल पूरे होने के बाद भी नरेंद्र मोदी की सरकार द्वारा उसको लागू नहीं किया गया। सनद रहे, कि हरित क्रांति के जनक प्रो. एमएस स्वामीनाथन की अध्यक्षता में 18 नवंबर 2004 में राष्ट्रीय किसान आयोग का गठन किया गया था।
इस आयोग के द्वारा किसानों की स्थिति में सुधार, आय में वृद्धि, कृषकों के लिए व्यापक स्तर पर काम करने की रणनीति की दरकार बताई थी। इन सिफारिशों को लागू कराने को लेकर किसानों द्वारा देश में कई बार आंदोलन किए जा चुके हैं। बीते 2 साल में महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के अलावा राजस्थान में भी कई आंदोलन हुए थे। मध्य प्रदेश में तो गोलीबारी में 8 किसानों की मौत भी हो गई थी।