Advertisement

घर बनाने के चक्कर में मिट रही पहचान, अब मोदी की स्कीम को बदलेगी झारखंड सरकार

आदिवासी इलाकों, जंगल, पहाड़ों के बीच बसी बस्‍ती में आप आयेंगे तो एक अजीब खूबसूरती आपको खींचेगी। फूस,...
घर बनाने के चक्कर में मिट रही पहचान, अब मोदी की स्कीम को बदलेगी झारखंड सरकार

आदिवासी इलाकों, जंगल, पहाड़ों के बीच बसी बस्‍ती में आप आयेंगे तो एक अजीब खूबसूरती आपको खींचेगी। फूस, पत्‍तों, खपड़ों, लकड़‍ियों से छाये हुए मिट्टी के मकानों की सोंधी खुशबू मिलेगी। लिपा, पुता इस कदर साफ कि आपका भी मन इन घरों के भीतर जाने के लिए मचलने लगेगा। दरवाजे और बाहर की दीवारों पर प्राकृतिक रंगों, मिट्टियों से चित्रकारी इसे और आकर्षक बना देते हैं। यह एक प्रकार से आदिवासी गांव-घरों की खुशबू है। कोहबर, सोहराई, संताली चित्रकला ख्‍यात है। बल्कि कोहबर और सोहराई को तो जीआइ टैगिंग हासिल है। इसके संरक्षण और विकास का काम चल रहा है। मगर दूसरा पहलू यह भी है प्रधानमंत्री आवास योजना से इन आदिवासी गांव-घरों की खूबसूरती भरी अपनी पहचान खत्‍म हो रही है। 


इस योजना के तहत गांवों में भी पक्‍के मकान बन रहे हैं। गांवों में जिधर जाइए पक्‍के बन चुके, बन रहे मकान दिखेंगे। झारखंड में प्रधानमंत्री आवास योजना से सात लाख से अधिक मकान बन चुके हैं। मकान बनाने के लिए सरकार 1 लाख 30 हजार रुपये देती है, मनरेगा के तहत मजदूरी भी मिलता है। मकानों का यह आंकड़ा आये परिवर्तन की कहानी भी है। इसमें दो राय नहीं कि पक्‍के मकान से मौसम से लेकर हर तरह की सुरक्षा हासिल है मगर जनजातीय मकानों की खुशबू गुम हो रही है। एक पक्ष यह भी है कि बड़ी संख्‍या में आदिवासी संस्‍कृति से जुड़े लोग इन पक्‍के मकानों में रहन पसंद नहीं करते। चाईबासा, पाकुड़, गोड्डा, लातेहार, सिमडेगा, गुमला जैसे इलाकों में ऐसी स्थिति दिखती है। खासकर आदिम जनजाति के लोग उसमें जानवर, अनाज रखते हैं और करीब के अपने कच्‍चे मकान में रहते हैा। तो स्थिति इसके उलट भी है।


मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन जनजातीय समाज के इस अंतद्वंद्व को गहराई से समझते हैं। इसी समझ के मद्देनजर उन्‍होंने प्रधानमंत्री आवास योजना की नीति में परिवर्तन का निर्देश दिया है। ग्रामीण विकास विभाग से नियमों में आवश्‍यक परिवर्तन को कहा है ताकि लोग अपनी संस्‍कृति, परंपरा और सुविधा के अनुसार घर बना सकें। संशोधन के प्रभावी होने के बाद कंक्रीट वाले छत और निर्धारित मॉडल की अनिवार्यता नहीं रह जायेगी। सवाल यह भी है कि केंद्रीय योजना में फेरबदल की गुंजाइश कहां तक है। वैसे केंद्र ने झारखंड में प्रधानमंत्री आवास के लिए अध्‍ययन कराया था। उस रिपोर्ट में कई तरह से घरों के निर्माण का उल्‍लेख किया गया था।

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad