मेनन ने फेसबुक पोस्ट में कहा कि क्या देश की न्यायिक व्यवस्था पक्षपातपूर्ण ढंग से काम कर रही है। देश में फांसी का सामना करने वाले 94 फीसदी लोग मुस्लिम या दलित। मध्यप्रदेश के अधिकारियों ने तो नेहरु की विरासत की तारीफ करते हुए हिंदूू राष्ट्रवाद की आलोचना की थी लेकिन मेनन उनसे एक कदम आगे निकल गए हैं। उन्होंने न्यायपालिका पर सीधे तौर पर ऊंगली उठा दी है। बहरहाल मेनन के पोस्ट ने सोशल मीडिया में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। हालांकि, यह पोस्ट 18 जून काे किया गया है।
गौरतलब है कि मेनन साल 2012 में सुकमा जिले के कलेक्टर रहने के दौरान नक्सलियों के हाथों अपहरण होने को लेकर पहले भी चर्चा में रहे हैं। सुकमा जिले के कलेक्टर रहने के दौरान 21 अप्रैल 2012 को नक्सलियों ने मेनन का अपहरण कर लिया था। नक्सलियों ने उनकी रिहाई के बदले में कई मांगें रखी थीं। बाद में सरकार की ओर से और नक्सलियों की ओर से दो-दो मध्यस्थों की नियुक्ति की गई थी। मध्यस्थों के बीच हुई लंबी चर्चाओं के बाद नक्सलियों ने मेनन की रिहाई के लिए हामी भरी थी।
मेनन 12 दिन तक नक्सलियों के कब्जे में रहे थे। 3 मई 2012 को एक मध्यस्थ की मदद से उनकी रिहाई हो सकी थी। इसके अलावा उन पर नक्सलियों से सांठगांठ के आरोप भी लगे थे।