गौरतलब है कि मध्य प्रदेश को शुद्ध शाकाहारी प्रदेश बनाने की सरकार की कवायद के तहत राज्य सरकार के आदिवासी बहुल इलाकों में छोटे बच्चों को दिन के खाने में अंडा देने से कड़ाई से मना कर दिया गया है। यह फैसला खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किया है। और वह भी यह कहते हुए कि इस तरह की किसी योजना का प्रस्ताव भी उनके पास नहीं आना चाहिए।
भोजन के अधिकार से जुड़े मध्य प्रदेश के सचिन जैन का कहना है कि ‘जब योजनाएं बनाने वाले ही ऐसी बात करेंगे तो अंडा दिए जाने की पैरवी से जुड़े लोगों का तर्क किसे समझ आएगा। ’ जैन का कहना है कि एक दिन में 01 से 03 साल के बच्चों को 22 ग्राम, 04 से 06 साल के बच्चों को 30 ग्राम, 07 से 09 फीसदी बच्चों को 41 ग्राम और 10 से 12 साल के बच्चों को 55 ग्राम प्रोटीन की जरूरत रहती है। सचिन जैन का एक तर्क और है कि अंडा एक ऐसी चीज है जिसमें न तो मिलावट रहती है और ग्रामीण इलाकों में आसानी से मिल जाता है।
वह यह भी कहते हैं कि आईसीडीएस योजना के तहत हम बच्चों को केवल दाल-चावल देने तक सीमित हो गए हैं जबकि भरपूर प्रोटीन लेने के लिए बहुत सारी दाल खानी पड़ेगी। दरअसल प्रोटीन भी कई प्रकार का होता है। अंडा देने की पैरवी कि अंडे से मिलने वाला प्रोटीन बेहतर क्वालिटी का होता है जिसे बच्चे आसानी से जज्ब कर लेते हैं जबकि इस प्रकार का प्रोटीन लेने के लिए एक जिन में बहुत ज्यादा दाल खानी होगी जो कि न तो बच्चों को मिलती है और न ही बच्चे खाते हैं।
सवाल यह भी है कि जब झारखंड, ओडिशा, तमिलनाडु जैसे राज्यों में आंगनवाड़ी में बच्चों को अंडा दिया जा रहा है तो मध्य प्रदेश में क्यों नहीं दिया जा सकता। जिन्हें अंडे को लेकर कोी सांस्कृतिक आपत्ति नहीं है उन्हें प्रोटीन के इस उत्तम स्रोत से क्यों वंचित किया जाए? वैसे आदिवासी हलकों में तो अंडा सावाभाविक खाद्य पदार्थ है।