केंद्र के साथ झारखंड की हेमंत सरकार के तीखे होते रिश्ते के बीच पूर्ववर्ती रघुवर सरकार के काम-काज पर हेमंत सोरेन का आक्रमण बढ़ता जा रहा है। सीबीआइ की राज्य में सीधे प्रवेश पर रोक के साथ ही मैनहर्ट घोटाला के नाम से बहुचर्चित रांची शहर के सीवरेज-ड्रेनेज के डीपीआर में मैनहर्ट को परामर्शी के रूप में नियुक्ति में अनिमितता के मामले में पूर्व मुख्यमंत्री (तत्कालीन नगर विकास मंत्री) रघुवर दास आदि के खिलाफ एसीबी ( एंटी करप्शन ब्यूरो) ने मामला ( प्रिलिमिनरी इंक्वायरी) दर्ज कर लिया है। वहीं बहुचर्चित छात्रवृत्ति घोटाले की जांच भी एसीबी से कराने का फैसला लिया गया है। मुख्यमंत्री ने इसकी स्वीकृत्ति दे दी है।
मैनहर्ट घोटाले के सम्बंध में अक्टूबर के प्रारंभ में ही मुख्यमंत्री ने एसीबी को आदेश दिया था कि रांची शहर के सीवरेज-ड्रेनेज निर्माण के लिए मैनहर्ट को परामर्शी नियुक्त किये जाने में अनियमितता के मामले में विधानसभा की सामान्य प्रयोजन समिति के सभापति सरयू राय की शिकायत व उच्च न्यायालय के आदेश के आलोक में मामला दर्ज कर जांच करें। बता दें कि रघुवर सरकार में मंत्री रहे और रघुवर दास के खिलाफ निर्दलीय लड़कर उन्हें पराजित करने वाले सरयू राय लगातार मैनहर्ट के मामले को उठाते रहे हैं। अदालत के फैसले और फाइलों की टिप्पणियों के आधार पर उन्होंने किताब ही लिख दी। निगरानी ब्यूरो द्वारा इस मामले की जांच के लिए पांच बार प्रस्ताव निगरानी आयुक्त को भेजा गया था मगर अनुमति नहीं मिली। सरयू राय की शिकायत के अनुसार निगरानी विभाग के तकनीकी परीक्षण केषांग ने अपनी जांच में साबित किया था कि किस तरह अधिक दर पर अनुचित रूप से मैनहर्ट का चयन किया गया था। पिछले कोई एक दशक से इसकी निगरानी जांच की मांग हो रही थी। हालांकि रघुवर दास, लम्हों की खता नामक सरयू राय की पुस्तक आने के बाद अपनी सफाई देकर खुद को निर्दोष बता चुके हैं।
इधर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने प्री मैट्रिक अल्पसंख्यक छात्रवृत्ति घोटाले की एसीबी को जांच का आदेश दे दिया है। दुमका में चुनाव प्रचार समाप्त होने के दिन हेमंत सोरेन ने दिल्ली के एक अंग्रेजी अखबार में छपी खबर का हवाला देते हुए इसकी जांच कराने की घोषणा की थी। यह मामला भी दुमका से भाजपा प्रत्याशी लुईस मरांडी के कल्याण मंत्री के शासन के दौरान का है और आंच रघुवर दास पर भी आ सकती है। हालांकि भाजपा ने बाद में सफाई में बताया कि भाजपा के रघुवर सरकार के शासन के दौरान इसकी गड़बड़ी को रोकने की कार्रवाई की गई थी 46 हजार आवेदक संस्थानों में सिर्फ 3100 को अनुमति दी गई थी और दो लाख आवेदन को छांट कर 95 हजार किया गया। बता दें कि छात्रवृत्ति घोटाला में संस्थानों, स्कूल प्रबंधनों, दलालों, अल्पसंख्यक वित्त एवं विकास निगम व कल्याण अधिकारियों की मिली भगत से डीबीटी में गड़बड़ी की गई थी। बड़ी संख्या में ऐसे लोगों के नाम पर छात्रवृत्ति की निकासी की गई जो छात्र थे ही नहीं।