रांची:झारखण्ड में कांग्रेस कुछ तेजी में दिख रही है। अपनी जमीन बढ़ाने की कोशिश में जमीन के सवाल पर अपनी ही सरकार को घेर रही है। कांग्रेस का ताजा अभियान जमीन विवाद को लेकर है। सरकार के काम-काज को लेकर अफसरों पर नजर रखने के लिए बीस सूत्री कार्यक्रमक कार्यान्वयन समिति और निगरानी समिति का जल्द गठन होना है। मगर इसका इंतजार किये बिना कांग्रेस ने जिलों में जमीन विवाद के निबटारे के लिए पर्यवेक्षकों की नियुक्ति कर दी है।
यहां बता दें कि यह राजस्व विभाग से जुड़ा मामला है जो मुख्यमंत्री के अधीन का विभाग है। कृषि, स्वास्थ्य, खाद्य आपूर्ति, ग्रामीण विकास जैसे विभाग कांग्रेस के पास हैं। धान खरीद, स्वास्थ्य केंद्रों पर चिकित्सकों की कमी, जनवितरण में गड़बड़ी जैसी जन सरोकार वाली समस्याओं की कमी नहीं है, प्रखंड विकास अधिकारियों पर के खिलाफ भी भ्रष्टाचार की शिकायतें कम नहीं हैं। मगर कांग्रेस उन पर ध्यान केंद्रित करने के बदले मुख्यमंत्री के विभाग पर ही तीर तान दिया है। इससे लगता है कि भीतर ही भीतर गठबंधन में सब ठीक नहीं चल रहा। या फिर कांग्रेस दबाव की राजनीति कर रही है। हेमन्त सरकार के गठन के बाद विभिन्न विभागों में थोक में तबादले हुए हैं मगर अंचलाधिकारियों के तबादले नहीं हुए हैं। संभव है कांग्रेसी विधायक अपने मनोनुकूल अंचलाधिकारियों की तैनाती अपने इलाके में चाहते हों।
कांग्रेस ने जमीन संबंधी समस्याओं के निबटारे के लिए अंचलों में अंचल कार्यालय के समक्ष शिविर लगाकर सुनवाई करने और सीओ व डीसी से मिलकर समाधान कराने का फरमान जारी कर दिया है। बीते रविवार को कांग्रेस भवन में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रामेश्वर उरांव की अध्यक्षता में नवगठित कमेटी के जिला पर्यवेक्षकों की बैठक हुई जिसमें अंचलों में कैंप लगाकर जमीन संबंधी समस्याओं के समाधान का निर्देश दिया गया। प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि जनता जमीन संबंधी समस्या को लेकर अंचल कार्यालय और सीओ के पास जाती है मगर समस्या का समाधान नहीं होता।
झारखण्ड में जमीन विवाद की समस्या बड़ी गहरी है। सीएनटी, एसपीटी कानून का उल्लंघन कर नाजायज तरीके से आदिवासियों की जमीन खरीदने का लंबा इतिहास है। कई कॉलोनियां ही पूरी सीएनटी की जमीन पर बसी हुई हैं। सिर्फ राजधानी रांची में ही एक लाख से अधिक होल्डिंग विवादित हैं। या कहें ऐन केन प्रकारेण आदिवासियों की जमीन पर लोगों ने घर, भवन, अपार्टमेंट, मार्केट बना लिये। यह समस्या अचानक पैदा नहीं हुई है, जमाने से चली आ रही है। सरकारें आती हैं और सीएनटी, एसपीटी की जमीन खाली कराने का नारा देकर आदिवासियों को पटाने की कोशिश करती है। विवाद, टकराव, आंदोलन के बाद जांच के नाम पर मामलों को ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। झारखण्ड की जमीन की प्रकृति के जानकार मानते हैं कि किसी भी सरकार के लिए इसका निबटारा सबसे बड़ी समस्या है। शायद बूते में नहीं है। बहरहाल बीस सूत्री और निगरानी समिति के गठन का इंतजार किये बिना जमीन की समस्याओं को लेकर पर्यवेक्षकों की नियुक्ति का राज क्या है लोग जानना चाहते हैं।