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झारखंड: मॉब लिंचिंग विरोध पर रोड़ा

“भीड़ की हिंसा के खिलाफ विधेयक पास करने वाले चौथे राज्य की भी राज्यपाल से ठनी” आखिर झारखंड के मॉब...
झारखंड: मॉब लिंचिंग विरोध पर रोड़ा

“भीड़ की हिंसा के खिलाफ विधेयक पास करने वाले चौथे राज्य की भी राज्यपाल से ठनी”

आखिर झारखंड के मॉब लिंचिंग विरोधी सरकारी मुहिम की वही गति हुई, जो इससे पहले मणिपुर, राजस्थान और पश्चिम बंगाल सरकारों की पहल की हुई। झारखंड के राज्यपाल ने लंबे समय तक लटकाने के बाद हेमंत सरकार के ‘भीड़ हिंसा और भीड़ लिंचिंग निवारण विधेयक, 2021’ को कुछ तकनीकी खामियों का हवाला देकर लौटा दिया है। यह विधेयक विधानसभा में पिछले साल मानसून सत्र में पारित हुआ था। झारखंड मॉब लिचिंग हिंसा खासकर पिछली भाजपा सरकार के वक्त सबसे ज्यादा चर्चित रहा है। केंद्र के रवैए की एक झलक इससे भी मिलती है कि राजस्थान सरकार के कई बार याद दिलाने के बाद वहां के राज्यपाल ने राष्ट्रपति की संस्तुति के लिए उसे केंद्रीय गृह मंत्रालय में भेजा तो वहां कई राज्यों से ऐसे विधेयक होने के कारण समग्र दृष्टि अपनाने की दलील के तहत इसे रोक लिया गया।

झारखंड के राज्यपाल ने इस विधेयक को वापस करने की वजह हिंदी-अंग्रेजी प्रारूप में अंतर और भीड़ की परिभाषा अस्पष्ट होना बताई है। राजभवन का कहना है कि विधेयक के अंग्रेजी प्रारूप में गवाह संरक्षण का जिक्र है जबकि हिंदी में इसका जिक्र नहीं है। भीड़ की परिभाषा कानूनी शब्दावली के अनुरूप नहीं है। दो या दो से अधिक व्यक्तियों के समूह को ‘अशांत भीड़’ नहीं कह सकते। जाहिर है, राज्य भाजपा इसे तुष्टीकरण का एजेंडा और आदिवासी विरोधी बता रही है।

राज्य में पिछली भाजपा सरकार के दौर में कथित तौर पर गोरक्षकों द्वारा पीटकर मार डालने की कई घटनाएं हुईं। उन घटनाओं की वजह से आलोचक झारखंड को लिचिंग पैड कहने लगे थे। 2017 में रामगढ़ के कारोबारी अलीमुद्दीन मांस ढोने के शक में भीड़ के हाथों मारे गए। 2019 में सरायकेला खरसावां जिले के धतकीडीह में 24 साल के तबरेज अंसारी को चोरी के शक में पीटकर मार डाला गया।

हालांकि मॉब लिचिंग की शिकार अल्पसंख्यकों से ज्यादा आदिवासी, खासकर महिलाएं हुई हैं। प्रदेश में 2016 से अब तक 56 लोग मॉब लिंचिंग के शिकार हुए, इसी अवधि में झारखंड में डायन बिसाही के नाम पर दो सौ से अधिक लोगों की हत्या हो चुकी है। पिछले एक दशक में 550 से अधिक महिलाएं डायन बिसाही के शक में मारी जा चुकी हैं। पिछले साल 23 फरवरी को गुमला के कामडारा में एक ही परिवार के पांच लोगों की हत्या कर दी गई। हत्या का निर्णय पंचायत में हुआ था। जनवरी में सिमडेगा के कोलेबिरा में जनजातीय प्रथा खूंटकटी की अवहेलना कर पेड़ काटने के मामले में परिवार वालों के सामने संजू प्रधान को पीटकर अधमरा किया गया और जला दिया गया। वहं कुछ पुलिस वाले और सैकड़ों लोगों की भीड़ मौजूद थी। आदिवासी समाज में डायन बिसाही के अंधविश्वास में हुक्का-पानी बंद, गांव निकाला, हमला या हत्या की घटनाएं होती रहती हैं। भाजपा का कहना है कि इनके खिलाफ मॉब लिंचिंग निवारण कानून के तहत कार्रवाई होगी तो बड़ी संख्या में आदिवासी समाज के लोग इसकी जद में आएंगे।

मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन कहते हैं, “भीड़ के जरिए जो भी घटनाएं घटेंगी सब इसके दायरे में आएंगी।” प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव इससे इनकार करते हैं कि यह सरकार का राजनीतिक एजेंडा है। वे कहते हैं सुप्रीम कोर्ट का आदेश था। अपने शासन के दौरान भाजपा इसे कानूनी शक्ल नहीं देना चाहती थी। उरांव कहते हैं कि मॉब लिंचिंग और डायन बिसाही का विषय अलग है।

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश और विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी के नेतृत्व में एक शिष्टमंडल राज्यपाल से मिला। बिल को असंवैधानिक, गैर-कानूनी और झारखंड की परंपराओं, रीति रिवाज की व्यवस्था के खिलाफ बताया।

विधेयक में क्या है प्रावधान

मॉब लिंचिंग में मौत होने पर दोषी को उम्र कैद तथा पांच से 25 लाख रुपये तक जुर्माना, लिंचिंग के शिकार के इलाज का खर्च जुर्माने की राशि से दिया जाएगा। लिंचिंग में थोड़ा जख्मीे होने पर एक से तीन साल तक जेल या एक लाख से तीन लाख रुपये तक जुर्माना। गंभीर रूप से जख्मीे होने की स्थिति में एक से 10 साल तक जेल या तीन से 10 लाख रुपये तक जुर्माने का प्रावधान है। अधिनियम से जुड़े अपराध संज्ञेय और गैर-जमानती होंगे

मॉब लिंचिंग का मतलबः

दो या दो से अधिक लोगों द्वारा हिंसा

किसी के कारोबार या व्यापार का बहिष्कार

घर या आजीविका स्थल छोड़ने के लिए मजबूर करना

धर्म, वंश, जाति, लिंग जन्म स्थान, भाषा, लैंगिक, राजनैतिक संबद्धता और नस्ल  के आधार पर हिंसा या परेशान करना

लिंचिंग के लिए उकसाने वाले को भी लिंचिंग के दोषी जैसी सजा

लिंचिंग का माहौल तैयार करने में सहयोग करने वाले को एक से तीन साल की सजा और एक से तीन लाख तक का जुर्माना

लिंचिंग के लिए इलेक्ट्रॉनिक या किसी माध्यम से खबर व सामग्री प्रकाशित करने पर एक साल की सजा तथा 50 हजार से एक लाख रुपये तक का जुर्माना

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