खुद को प्रगतिशील मानने वाले भी बड़ी संख्या में लोग खरमास को मानते हैं। इस दौरान कोई शुभ काम के आरंभ से परहेज करते हैं। सत्ताधारी दल के नेताओं को भी खरमास के गुजरने का इंतजार है। हेमंत सरकार में मंत्री के दो पद खाली हैं तो एक व्यक्ति एक पद के फार्मूले के तहत प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पर भी लोगों की नजर गड़ी हुई है।
हाल में जब ईसाई आर्चबिशप ने क्रिसमस के मौके पर मुख्यमंत्री से कैबिनेट में मसीही समाज के प्रतिनिधित्व की मांग की तो मंत्री बनने की लालसा पाले लोगों के मन में हिलोरें उठने लगीं। चाहे वह सत्ता पक्ष से हों या सहयोगी कांग्रेस से। जेएमएम में खुद मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के परिवार से दो लोग हैं। भाभी सीता सोरेन और छोटा भाई बसंत सोरेन। बसंत ने हेमंत सोरेन की छोड़ी दुमका सीट पर हाल ही उप चुनाव में जीत हासिल की है। हालांकि हेमंत सोरेन को करीब से जानने वाले कहते हैं कि परिवार के किसी सदस्य को मौका देना हेमंत सोरेन को सूट नहीं कर रहा। सबसे मजबूत दाबेदार अभी गांडेय से झामुमो विधायक सरफराज अहमद दिख रहे हैं। झामुमो विधायक व अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री हाजी हुसैन अंसारी के निधन से एक सीट खाली हुई है। ऐसे में सरफराज को झामुमो के अल्पसंख्यक कोटे से फिट माना जा रहा है। सरफराज संयुक्त बिहार में कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के साथ सांसद भी रहे हैं। अभी कांग्रेस के आलमगीर आलम हेमंत कैबिनेट में है। बैलेंस करने के लिए झामुमो को भी कोई मजबूत अल्पसंख्यक चेहरा चाहिए। वैसे जेएमएम के वरिष्ठ नेता और कई टर्म विधायक रहे स्टीफन मरांडी, हाल में कांग्रेस के शामिल हुए बंधु तिर्की, प्रदीप यादव, जेएमएम से मनोहरपुर विधायक पूर्व मंत्री जोबा मांझी, कांग्रेस के प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष इरफान अंसारी, बेरमो उप चुनाव में जीत कर आये कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राजेंद्र सिंह के पुत्र गौरव आदि की चर्चाएं भी होती रहती हैं। इधर माना जा रहा है कि मंत्री कुर्सी की उम्मीद पाले विधायकों को संतुष्ट करने के लिए हेमंत सोरेन बोर्ड निगमों में कुर्सी पकड़ाकर तत्काल संस्तुष्ट करने पर मंथन कर रहे हैं। उनके सामने चिंता जगरनाथ महतो को लेकर भी है। शिक्षा मंत्री रहे जगरनाथ महतो कोरोना पॉजिटिव होने के बाद गंभीर रूप से बीमार पड़े। लंग्स ट्रांसप्लांट कराना पड़ा। कितने दिनों बाद वे मंत्री का पद संभालने के काबिल होंगे सवाल है।
91 वें संविधान संशोधन के हिसाब से सदन के सदस्यों की संख्या का अधिकतम 15 प्रतिशत हो सकता है। इस हिसाब से मंत्री के 12 पद बनते हैं। और वर्तमान में मुख्यमंत्री सहित दस मंत्री हैं। ऐसे में मंत्री की दो वैकेंसी तो है ही।
इधर कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष को लेकर में मंथन जारी है। हेमंत सरकार के एक साल होने पर कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी आरपीएन सिंह रांची आये हुए थे। इस दौरान प्रदेश नेतृत्व से असंतुष्ट चल रहे या कुछ पाने की उम्मीद पाले नेताओं ने उनसे संपर्क किया। एक व्यक्ति एक सिद्धांत के तहत प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सह राज्य के वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव को प्रदेश अध्यक्ष से मुक्त कर किसी नये व्यक्ति को यह जिम्मेदारी देने को लेकर दबाव बनाया जा रहा है। खरामास के बाद इसको लेकर गतिविधियां तेज हो सकती हैं। दो राय नहीं कि बीते विधानसभा चुनाव में झारखंड में कांग्रेस का बेहतरीन प्रदर्शन रहा। जबकि एन मौके पर तीन-तीन पूर्व प्रदेश अध्यक्षों ने पार्टी का दामन छोड़ दिया था। पार्टी सूत्रों के अनुसार प्रदेश अध्यक्ष रामेश्वर उरांव की उम्र हो गई है। वे वित्त मंत्री जैसा महत्वपूर्ण महकमा भी संभाल रहे हैं। चूंकि हेमंत कैबिनेट में मंत्री हैं इसलिए उनके सामने पार्टी की मांग को उस मजबूती के साथ नहीं रख पाते। साथ ही पार्टी को मजबूती प्रदान करने के लिए किसी युवा टाइप नेता की दरकार है जो प्रदेश में सघन दौरा कर संगठन को और ताकत दे सके। पार्टी में पांच प्रदेश कार्यकारी अध्यक्ष केशव महतो कमलेश, राजेश ठाकुर, इरफान अंसारी, मानस सिन्हा और संजय पासवान की दावेदारी तो बनती ही है। सांसद धीरज साहू भी तैयार बैठे हैं। पूर्व केंद्रीय गृह मंत्री सुबोध कांत सहाय भी इन दिनों खाली हैं और उनकी संगठन में पैठ रही है । नये जनजाति चेहरे में नमन विक्सल कोंगाड़ी, राजेश कच्छप जैसे नामों की भी चर्चा चलती रहती है। जानकार बताते हैं कि फुरकान अंसारी द्वारा नेतृत्व पर आरोप लगाने के बाद इरफान अंसारी की स्थिति कमजोर हो गई है। और पार्टी ऐसे नेता को जिम्मेदारी नहीं देना चाहती जिससे विवाद का नया मोर्चा खुले। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ अजय कुमार की वापसी हुई है, झारखंड विकास मोर्चा से जीतने वाले पूर्व मंत्री बंधु तिर्की, प्रदीप यादव भी कांग्रेस में शामिल हुए हैं। मगर पार्टी तत्काल इन्हें बड़ी जिम्मेदारी देने से परहेज करना चाहती है। वैसे चलेगी उसी की जिसकी दिल्ली दरबार में पैठ होगी।