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झारखंड: बजट के दिन सत्‍ताधारी दलों के विधायक ही विधानसभा में बैठ गए धरना पर, जानिए क्या है वजह

गुरुवार को विधानसभा में सत्‍ताधारी दलों के विधायकों का अपनी ही सरकार के खिलाफ असंतोष दिखा।...
झारखंड: बजट के दिन सत्‍ताधारी दलों के विधायक ही विधानसभा में बैठ गए धरना पर, जानिए क्या है वजह

गुरुवार को विधानसभा में सत्‍ताधारी दलों के विधायकों का अपनी ही सरकार के खिलाफ असंतोष दिखा। सामान्‍यत: विपक्षी दलों के विधायक ही विधानसभा में विरोध प्रदर्शन करते हैं, धरना देते हैं। मगर गुरुवार को झारखंड विधानसभा का नजारा इस मायने में कुछ अलग दिखा। सत्‍ताधारी झारखंड मुक्ति मोर्चा और सरकार में शामिल कांग्रेस पार्टी के ही करीब आधा दर्जन विधायक विधानसभा के मेन गेट पर अपनी ही सरकार के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते हुए धरना पर बैठ गये।

गुरुवार को ही विधानसभा में बजट पेश किया जाना है, ऐसे में इनके विरोध का मतलब है। ये विधायक अंतिम सर्वे सेटलमेंट यानी 1932 के खतियान के आधार पर समय सीमा के भीतर स्‍थानीय नीति लागू करने, सीएनटी एसपीटी एक्‍ट लागू करने की मांग कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि ये अचानक धरना पर बैठे। ये पूरी तैयारी से आये थे। सभी सफेद रंग की टीशर्ट पहने हुए थे जिस पर हरे रंग के शब्‍दों में नारे लिखे थे। धरना पर बैठने वालों में लोबिन हेम्‍ब्रम, नियल पुर्ती, दीपक बिरुवा, दशरथ गगराई, मथुरा महतो और विक्‍स कोंगाड़ी थे।

धरना पर बैठे विधायकों का कहना था कि सरकार बने दो साल से अधिक हो गये मगर जनता से किया गया वादा सरकार पूरा नहीं कर रही। वे नई स्‍थानीय नीति लागू होने तक हेमन्‍त सरकार की नियोजन नीति रद करने की मांग कर रहे थे। इनकी मांग अनुसूचित क्षेत्रों में क्षेत्रीय विकास प्राधिकार को रद करने, अनुसूचित क्षेत्रों में सीएनटी एसपीटी कानून को सख्‍ती से लागू करने की भी है। अलग-अलग विधायक अलग अलग नारा लिखा टीशर्ट पहने हुए थे। दरअसल नौकरियों में स्‍थानीय लोगों की बहाली और स्‍थानीयता की परिभाषा का मामला लंबे समय में विवाद में फंसा है। स्‍थानीय नीति को लेकर ही प्रदेश के पहले मुख्‍यमंत्री बाबूलाल मरांडी को भारी विरोध का सामना करना पड़ा और अंतत: कुर्सी छोड़नी पड़ी। रघुवर सरकार में भी नियुक्ति की नीति बनी जिस पर विवाद हुआ था।

नियुक्ति नीति में बीच का रास्‍ता निकालते हुए वर्तमान हेमन्‍त सरकार ने प्रदेश से मैट्रिक और इंटर करने वाले ही यहां की नौकरियों के लिए आवेदन करने के योग्‍य होंगे का प्रावधान किया। भाषा विवाद भी इसी से जुड़ा हुआ है। धनबाद और बोकारो जिला में जिला स्‍तरीय नौकरियों में सरकार ने भोजपुरी और मगही का भी प्रावधान किया था, अंतत भारी विरोध और आंदोलन के बाद इसे सरकार को वापस लेना पड़ा। अब दूसरे जिलों से भी भोजपुरी, महगही, अंगिका जैसी भाषा को हटाने की आवाज उठ रही है। बहरहाल विरोध में धरना पर बैठे लोगों में ऐसे सदस्‍य भी हैं जो सरकार गिराने की साजिश प्रकरण या खुले तौर पर सरकार की आलोचना को लेकर चर्चा में आये थे।

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