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झारखंडः आरएसएस से प्रदेश भाजपा के बगावत के सुर, आदिवासियों ने बिगाड़ा खेल

भाजपा और संघ का चोली दामन का संबंध रहा है। मगर जनगणना में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड ने दोनों को...
झारखंडः आरएसएस से प्रदेश भाजपा के बगावत के सुर, आदिवासियों ने बिगाड़ा खेल

भाजपा और संघ का चोली दामन का संबंध रहा है। मगर जनगणना में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कोड ने दोनों को सीधे तौर पर बांट दिया है। या कहें झारखंड के मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन इस मोर्चे पर दोनों को अलग-अलग धारा अपनाने पर मजबूर करने की अपनी कूटनीति में सफल रहे।

राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ हमेशा से आदिवासियों को हिंदू मानती रही है। विधानसभा से आम सहमति से प्रस्‍ताव पास करने के पूर्व तक भाजपा इस मसले पर अपनी राय नहीं बना सकी थी। मगर संताल समाज से आने वाले भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी को कहना पड़ा कि वे निजी तौर पर अलग धर्म कोड के विरोधी नहीं हैं। दुमका उप चुनाव के अंतिम चरण में जब मुख्‍यमंत्री हेमंत सोरेन ने इसके लिए विधानसभा का विशेष सत्र बुलाने का ऐलान कर दिया तो भाजपा में भीतर ही भीतर स्‍टैंड को लेकर उथल-पुथल मची रही। वह इसलिए कि इसी साल के प्रारंभ में संघ प्रमुख मोहन भागवत रांची आये थे तो उन्‍होंने आदिवासियों को हिंदू बताते हुए कहा था कि 2021 में होने वाली जनगणना के दौरान जनगणना कॉलम में आदिवासी हिंदू लिखें इसके लिए गांव-गांव अभियान चलाया जायेगा। इसके दो दशक पहले भी संघ के केंद्रीय नेतृत्‍व ने रांची में इसी तरह की भावना जाहिर की थी। जिसका आदिवासी संगठनों ने विरोध भी किया था। संघ से इतर फैसला करना भाजपा की प्रदेश इकाई के लिए आसान नहीं था। नतीजा हुआ कि प्रदेश अध्‍यक्ष दीपक प्रकाश विधानसभा के विशेष सत्र के दो दिन पहले दिल्‍ली दरबार पहुंचे और वहां से हरी झंडी ली।

वोट के मोह में पार्टी अलग धर्म कोड का विरोध कर आदिवासियों की नजर में खलनायक नहीं बनना चाहती थी। आदिवासियों की झारखंड में बड़ी आबादी है कोई 26 प्रतिशत। हर पार्टी के लिए वोट बैंक है। सीधे तौर पर इसे खारिज करना किसी के लिए आसान नहीं था। अंतत: भाजपा को भी तर्क-वितर्क के साथ अलग धर्म कोड के प्रस्‍ताव पर आम सहमति देनी पड़ी। हालांकि संघ के करीबी संगठन आज भी अलग धर्म कोड को आदिवासी विरोधी बता रहे हैं। होने वाले नुकसान गिना रहे हैं। दलील यह भी दे रहे कि अलग धर्म कोड मिला तो अल्‍पसंख्‍यक हो जायेंगे। तब जनजाति अरक्षण के लाभ से वंचित होना पड़ सकता है। यह ईसाई मिशनरियों का खेल है। हिंदुओं से आदिवासी को अलग कर हिंदुओं को कमजोर करना चाहते हैं। झारखंड विधानसभा से प्रस्‍ताव भले पास हो गया हो मगर केंद्र से हरी झंडी और संघ के स्‍टैंड में कितना मेल खायेगा। जितना आसान दिख रहा है उतना है नहीं। संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल की उत्‍तर पूर्व क्षेत्र की पांच और छह दिसंबर को दो दिवसीय बैठक पटना में होने वाली है। सूत्रों के अनुसार इस बैठक में भी आदिवासियों के धर्म कोड पर गंभीर विचार संभव है।

हेमंत को मिला केंद्र पर हमला का मौका

इधर केंद्र के खिलाफ हमलावर हेमंत सरकार को सरना आदिवासी कोड ने केंद्र से लड़ने का बड़ा हथियार दे दिया है। केंद्र के लिए झटके से इसे मंजूर करना आसान नहीं है। केंद्र की यही दुविधा हेमंत सरकार को ताकत देगी। झामुमो के केंद्रीय महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा है कि प्रस्‍ताव विधानसभा से पास कराकर केंद्र को भेजा जा चुका है। अब झामुमो, कांग्रेस, जदयू आदि मिलकर केंद्र पर दबाव बनायेंगे। एक शिष्‍टमंडल जल्‍द ही लोकसभा अध्‍यक्ष से मिलेगा और संसद में भी इससे संबंधित प्रस्‍ताव रखने का आग्रह करेगा। कांग्रेस के प्रदेश कार्यकारी अध्‍यक्ष राजेश ठाकुर कहते हैं कि प्रदेश प्रभारी आरपीएन सिंह के नेतृत्‍व में बड़े नेताओं का शिष्‍टमंडल केंद्र पर दबाव बनायेगा।

कॉलम में आदिवासी  भले ही इसाई संगठनों का पीछे हाथ रहा हो मगर आदिवासियों का एक बड़ा खेमा भी अपनी पहचान के सवाल पर अलग धर्म कोड के पक्ष खड़ा है। खड़ा ही नहीं है, अड़ा हुआ है। मांग के समर्थन की बात आई तो सड़कों पर लगातार उतरकर अलग-अलग अंदाज में प्रदर्शन किया और उनकी मांग के मद्देनजर झारखंड विधानसभा से प्रस्‍ताव पास हो गया तो सड़कों पर उतर कर नाचे, जुलूस निकाला, जश्‍न मनाया। आज भी इसके लिए मुख्‍यमंत्री से मिलकर विभिन्‍न संगठनों द्वारा धन्‍यवाद देने का सिलसिला जारी है। आदिवासियों की बड़ी जमात अलग धर्म कोड चाहती है। यह बात अलग है कि इसकी मंजूरी कैसे मिले और पहचान की जिद के कारण सरना और आदिवासी शब्‍द पर आपस में जंग चलता रहा। अंतत:  संशोधन के बाद 'सरना आदिवासी' नाम से प्रस्‍ताव पारित हुआ। अब देखना होगा कि केंद्र इसे किस रूप में लेता है और निर्णय क्‍या होता है। इस बारे में अभी अंतिम रूप से कुछ भी कहना जल्‍दबाजी होगी।

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