केंद्रीय कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली में किसान आंदोलन की आग धधक रही है। उसमें एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य ) बड़ा मुद्दा है। कांग्रेस भी किसानों के साथ खड़ी है वहीं झारखंड में इसी एमएसपी पर धान खरीद को ले किसान छले जा रहे हैं। खरीद शुरू होने के बाद खरीद बंद हो जाने से जरूरतमंद किसान अपना धान औने-पौने बिचौलियों को बेच रहे हैं।
राज्य सरकार ने 15 नवंबर से धान खरीद की घोषणा की थी मगर खरीद केंद्रों पर मुकम्मल इंतजाम नहीं हो सके। बाद में खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष रामेश्वर उरांव ने एक दिसंबर से धान खरीद की विधिवत घोषणा की। खरीद ठीक से शुरू भी नहीं हुई कि उन्होंने धान खरीद बंद करने का एलान कर दिया। दरअसल धान में नमी को देखते हुए उन्होंने खरीद न करने का निर्देश दिया। नतीजा है कि मुंह बाए जरूरतों का सामना कर रहे किसान बिचौलियों के हाथ दस-बारह सौ रुपये क्विंटल की दर से धान बेचने को मजबूर हैं।
लग्न और दूसरी जरूरतों का समय देखते हुए किसान बहुत इंतजार करने की स्थिति में नहीं हैं। किसानों को धान का सही मूल्य मिले इसके लिए सामान्य धान का समर्थन मूल्य 1868 रुपये क्विंटल निर्धारित किया गया। राज्य सरकार ने अपनी ओर से 182 रुपये बोनस देते हुए 2050 रुपये क्विंटल खरीदेगी। मगर किसान आधी कीमत पर धान बेचने को विवश हो रहे हैं। नमी वाले धान की खरीद न करने के आदेश के बाद राज्य के सभी जिलों में खरीद बंद है। अब 15 दिसंबर से खरीद होगी। खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री रामेश्वर उरांव कहते हैं सभी जिलों में खरीद केंद्र को चालू कर दिया गया है, खरीद की मुकम्मल व्यवस्था है। सूखा धान लाने वाले किसानों को कोई दिक्कत नहीं होगी। जिलों को पैसे उपलब्ध करा दिये गये हैं ताकि खरीद के 50 फीसद हिस्से की राशि का भुगतान तीन दिनों के भीतर हो जाये।
इधर भाजपा ने धान खरीद न करने के राज्य सरकार के फैसले को वापस करने की मांग की है। भाजपा के प्रदेश महामंत्री आदित्य साहू इसे सरकार का तुगलकी फरमान बताते हैं। कहते हैं कि किसान बिचौलियों के हाथ औने-पौने धान बेचने को मजबूर हो रहे हैं। कोरोना काल में ऊंची कीमत पर किसानों ने फसल उपजाया है। खरीद बंद के खिलाफ प्रदेश में पार्टी विरोध कर रही है, प्रदर्शन कर मुख्यमंत्री के पुतले फूंक चुकी है। सरकार जल्द आदेश वापस नहीं लेती है कि भाजपा सड़क पर उतर किसानों के पक्ष में आंदोलन करेगी।
भाजपा के वरिष्ठ नेता अमर बाउरी कहते हैं कि धान खरीद को रोकना किसान विरोधी नीति है। बिचौलिये मौके का फायदा उठाने के लिए गांवों में घूम रहे हैं। नामकुम के किसान धनेश महतो कहते हैं कि नमी है तो कुछ किलो अधिक लेकर खरीद की जा सकती है, बिचौलिये को औने-पौने देने से तो बच जायेंगे। कोरोना के दौर में ऊंची कीमत पर बीज की खरीदारी हुई, कामगारों को मजदूरी भी अधिक देनी पड़ी। कर्ज का भी बोझ है। इधर आपूर्ति विभाग के एक वरीय अधिकारी ने कहा कि अनावश्यक राजनीति हो रही है। 17 फीसद तक नमी वाले धान की खरीद हो सकती है मगर अभी नमी ज्यादा है। नमी का दौर लंबा चला तो विपक्ष को सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरने का मौका मिल जायेगा वहीं सरकार को भी धान खरीद की मियाद बढ़ानी होगी।