केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर के लिए सोमवार को ऐतिहासिक बदलाव की पेशकश की। उन्होंने यहां से धारा 370 हटाने का प्रस्ताव राज्य सभा में पेश कर दिया। इस बदलाव को राष्ट्रपति की ओर से मंजूरी भी दे दी गई है। गृह मंत्री के इस बदवाल की पेशकश के बाद राज्यसभा में जोरदार हंगामा हुआ। जम्मू-कश्मीर में पिछले कई दिनों से जारी सैन्य हलचल के बीच घाटी से राजधानी दिल्ली तक असमंजस की स्थिति बनी हुई थी, जिसके बाद आज राज्यसभा में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने अनुच्छेद 370 हटाने और जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन का संकल्प पेश किया। इन सबके बीच आइए जानते हैं आखिर अनुच्छेद 370 है क्या-
अनुच्छेद 370 जम्मू-कश्मीर को विशेष अधिकार देता है। इसके मुताबिक, भारतीय संसद जम्मू-कश्मीर के मामले में सिर्फ तीन क्षेत्रों- रक्षा, विदेश मामले और संचार के लिए कानून बना सकती है। इसके अलावा किसी कानून को लागू करवाने के लिए केंद्र सरकार को राज्य सरकार की मंजूरी चाहिए होती है। इस विशेष प्रावधान के कारण ही 1956 में जम्मू-कश्मीर का अलग संविधान लागू किया गया।
क्या है अनुच्छेद 370
15 अगस्त 1947 को हमारा देश आजाद हुआ। भारत में जितनी रियासते थीं उन्हें भारत में मिलाने का प्रारूप बनाया गया। 25 जुलाई 1947 को गवर्नर जनरल माउंटबेटन की अध्यक्षता में रियासतों को बुलाकर हिंदुस्तान या पाकिस्तान में विलय करने को कहा गया। उस विलय पत्र को सभी रियासतों को बांट दिया गया। उस प्रारूप पर रियासतों के राजा या नवाब को अपना नाम, पता, रियासत का नाम और सील लगाकर उस पर हस्ताक्षर करके उसे गवर्नर को देना था। बता दें कि 26 अक्टूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन महाराजा हरिसिंह ने रियासत को भारत में विलय को लेकर हस्ताक्षर किए थे। 27 अक्टूबर को माउंटबेटन ने इसे मंजूरी भी दे दी थी।
17 अक्टूबर 1949 की घटना ने बदल दिया इतिहास
17 अक्टूबर 1949 को घटी घटना ने जम्मू-कश्मीर का इतिहास बदल दिया। जानकारी के मुताबिक संसद में गोपाल स्वामी अयंगार ने कहा कि वो जम्मू और कश्मीर को नए अनुच्छेद के अंतर्गत लाना चाहते हैं। कभी महाराजा हरिसिंह के दीवान रहे गोपाल स्वामी अयंगार पहली कैबिनेट में मिनिस्टर थे। इस पर संसद में उनसे सवाल पूछा गया कि आप ऐसा क्यों चाहते हैं।
अयंगार का कहना था कि चूंकि आधे कश्मीर पर पाकिस्तान का कब्जा है और मौजूदा समय में राज्य में कई समस्याएं हैं। राज्य के आधे लोग इधर हैं और आधे लोग पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में फंसे हुए हैं। इन हालातों में राज्य के लिए अलग से अनुच्छेद की जरूरत है। अभी जम्मू-कश्मीर में पूरे संविधान को लागू करना संभव नहीं हो पाएगा। उनका कहना था कि राज्य में अस्थायी तौर पर अनुच्छेद 370 लागू करना होगा। हालात के सामान्य होने पर राज्य से इस धारा को हटा लिया जाएगा।
अनुच्छेद 370 के अंतर्गत विशेष अधिकार
- संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार
- किसी अन्य विषय से संबंधित कानून को लागू करवाने के लिए केंद्र को राज्य सरकार की सहमति जरूरी
- 1976 का शहरी भूमि कानून जम्मू-कश्मीर राज्य पर लागू नहीं होता
- संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती. राष्ट्रपति के पास राज्य के संविधान को खत्म करने का अधिकार नहीं
- अनुच्छेद 370 की वजह से अन्य राज्य के लोग जम्मू-कश्मीर में जमीन नहीं खरीद सकते
- धारा 360 यानी देश में वित्तीय आपातकाल लगाने वाला प्रावधान जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होता।
भारत के कानून की ये बातें नहीं होती लागू
अनुच्छेद 370 कई बातों में जम्मू कश्मीर को भारतीय कानून से बाहर करता है। जम्मू-कश्मीर राज्य पर संविधान की धारा 356 लागू नहीं होती। जिसके तहत राष्ट्रपति के पास राज्य सरकार को बर्खास्त करने का अधिकार नहीं है। भारतीय संविधान की धारा 360 जिसके अन्तर्गत देश में वित्तीय आपातकाल लगाने का प्रावधान है, वह भी जम्मू-कश्मीर पर लागू नहीं होती। जम्मू-कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्षों का होता है, जबकि भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है। भारतीय संसद को जम्मू-कश्मीर के बारे में रक्षा, विदेश मामले और संचार के विषय में कानून बनाने का अधिकार है लेकिन किसी अन्य विषय से संबंधित कानून को लागू करवाने के लिए केंद्र को राज्य की सरकार से अनुमोदन कराना होगा।
केंद्र सरकार के फैसले के बाद क्या कुछ बदल जाएगा
- अनुच्छेद 370 के खत्म होने के साथ अनुच्छेद 35-ए भी खत्म हो गया है जिससे राज्य के 'स्थायी निवासी' की पहचान होती थी।
- सरकार ने अनुच्छेद 370 के ख़ात्मे के साथ-साथ प्रदेश के पुनर्गठन का भी प्रस्ताव किया है।
- प्रस्ताव किया गया है कि जम्मू-कश्मीर अब राज्य नहीं रहेगा।
- जम्मू-कश्मीर की जगह अब दो केंद्र शासित प्रदेश होंगे।
- एक का नाम होगा जम्मू-कश्मीर, दूसरे का नाम होगा लद्दाख।
- दोनों केंद्र शासित प्रदेशों का शासन लेफ्टिनेंट गवर्नर के हाथ में होगा।
- जम्मू-कश्मीर की विधायिका होगी जबकि लद्दाख में कोई विधायिका नहीं होगी।
- अनुच्छेद 370 का केवल एक खंड बाकी रखा गया है जिसके तहत राष्ट्रपति किसी बदलाव का आदेश जारी कर सकते हैं।
- गृहमंत्री ने बताया कि केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा देने का प्रस्ताव वहां की सुरक्षा की स्थिति और सीमा-पार से आतंकवाद की स्थिति को देखते हुए लिया गया।