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मध्य प्रदेश: अब सीबीआइ घोटालेबाज

मध्य प्रदेश की विधानसभा में मानसून सत्र भाजपा के लिए नर्सिंग घोटाले में 3,000 करोड़ रुपये की रिश्वतखोरी...
मध्य प्रदेश: अब सीबीआइ घोटालेबाज

मध्य प्रदेश की विधानसभा में मानसून सत्र भाजपा के लिए नर्सिंग घोटाले में 3,000 करोड़ रुपये की रिश्वतखोरी का सैलाब लेकर आया

वर्षों से व्‍यापम से लेकर कई परीक्षाओं में कथित धांधली के लिए चर्चित रहा मध्‍य प्रदेश ‘नीट’ घोटाले के मौसम में किसी तरह की धांधली से भला कैसे अछूता रह सकता था। व्यापम की तर्ज पर अब मध्य प्रदेश में नर्सिंग घोटाला सामने आया है। एक ओर संसद के भीतर कांग्रेसनीत विपक्ष नरेंद्र मोदी की सरकार को नीट पर घेरने में जुटा हुआ है तो दूसरी ओर मध्य प्रदेश की विधानसभा में मानसून सत्र के खुलते ‌ही भाजपा की सरकार कांग्रेस के निशाने पर आ गई है।  इस नए घोटाले में युवाओं के भविष्य के साथ धोखे और धांधली का सरकारी खेल उजागर हुआ है। दिलचस्‍प यह है कि राज्य में नर्सिंग महाविद्यालय घोटाले की जांच कर रहे केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआइ) के अधिकारी ही धांधली में शामिल पाए गए हैं। यानी धांधली के दोषियों को खोजने की जिम्मेदारी जिन्‍हें सौंपी गई, वे ही मामले को रफा-दफा करने में जुट गए। इसका खुलासा भी सीबीआइ ने ही किया कि उसके कई अधिकारियों ने पड़ताल के बाद अनुकूल रिपोर्ट देने के लिए हर शिक्षण संस्थान से कथित रूप से रिश्वत ली थी। यह मामला एक याचिका के जरिये जबलपुर हाइकोर्ट में पहुंचा था। इसके बाद इस धोखे और धांधली को उजागर करने की जिम्मेदारी सीबीआइ को सौंपी गई और नर्सिंग परीक्षाओं पर रोक लगा दी गई थी।

नर्सिंग कॉलेज घोटाले की आवाज असेंबली तक पहुंच चुकी है और कांग्रेस सूबे के मंत्री विश्वास सारंग का इस्तीफा मांग रही है। मानसून सत्र के पहले दिन 2 जुलाई को कांग्रेस विधायक दल के नेता उमंग सिंघार ने इस घोटाले पर चर्चा की मांग रखी, जिसे संसदीय मामलों के मंत्री कैलाश विजवर्गीय ने यह कह कर ठुकरा दिया कि मामला अभी न्यायालय में है इसलिए इस पर चर्चा नहीं की जा सकती। सत्र के दूसरे दिन कांग्रेस के विधायक लैब कोट पहन कर सदन में पहुंचे और भाजपा को इस घोटाले का सीधा आरोपी बताते हुए हंगामा काट दिया।

वाकया तब का है जब वैश्विक महामारी कोरोना के प्रकोप से लड़ने के लिए मध्य प्रदेश भी अपने आप को तैयार कर रहा था। उसी क्रम में 100 या उससे अधिक बेड वाले नर्सिंग कॉलेजों से संपर्क शुरू किया गया। इंडियन नर्सिंग काउंसिल के नियमानुसार बीएससी नर्सिंग कॉलेज खोलने के लिए संस्था के पास कम से कम 100 बेड का अस्‍पताल होना जरूरी है। आदिवासी और पहाड़ी इलाकों में उसके लिए कुछ अलग नियम हैं। संस्था का प्राइवेट या पब्लिक ट्रस्ट के रूप में रजिस्टर्ड होना जरूरी है। 60 छात्रों वाले कॉलेज का एरिया 23 हजार 200 वर्ग फुट जरूरी होता है। अगर नर्सिंग कॉलेज अस्‍पताल के अंदर ही संचालित हो, तो उसके लिए स्वतंत्र रूप से इतने ही एरिया का फ्लोर भी होना चाहिए; 21,100 वर्ग फुट का हॉस्टल ब्लॉक होना चाहिए जिसमें 30 फीसदी छात्रों के लिए आवासीय सुविधा अनिवार्य है।

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बेशक, महामारी और स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं से लड़ने के लिए प्रदेश के मान्यता प्राप्त नर्सिंग कॉलेजों की भूमिका अहम हो सकती थी, लेकिन जमीनी हकीकत इससे बिलकुल उलट थी। मान्यता प्राप्त नर्सिंग कॉलेज कुछ और ही उगल रहे थे। असल में कागजों में 100 या उससे ज्यादा बेड के नर्सिंग कॉलेज प्रदेश में कई थे। उनमें अधिकतर फर्जी थे। इन कॉलेजों में छात्रावास की सुविधा जैसी चीजें दूर-दूर तक नहीं थीं।

यही वजह है कि कोरोना के दौर में जब इन नर्सिंग कॉलेजों से संपर्क करके मरीजों के लिए बेड मांगे गए तो परत दर परत पोल खुलती चली गई। फाइलें कुछ बता रही थीं और हकीकत कुछ और थी। आलमारी खुली तो अनियमितताओं के कंकाल भड़भड़ा कर गिरने लगे। प्रदेश के 13 नर्सिंग कॉलेजों में नर्सिंग काउंसिल की तरफ से जो मार्कशीटें भेजी गई थीं, उन्हें लेने के लिए 13 कॉलेजों में कोई स्टाफ ही नहीं मिला। ये सभी 13 कॉलेज सीबीआइ की जांच लिस्ट में शामिल हैं। इन सभी मामलों में कागज पुख्ता थे पर हकीकत उससे ठीक उलट थी। नर्सिंग काउंसिल की तरफ से ऐसे कॉलेजों को भी मान्यता दी गई जो दूर-दूर तक मानकों को पूरा नहीं कर रहे थे। कई कॉलेज एक मकान में या कुछ कमरों से चल रहे थे, तो कई सिर्फ कागजों पर ही चल रहे थे।

दरअसल, इस घोटाले पर हाइकोर्ट में राज्य सरकार की दलील थी कि मेडिकल साइंस युनिवर्सिटी और मध्य प्रदेश नर्सेज रजिस्ट्रेशन काउंसिल परीक्षाओं पर से रोक हटाई जाए, मगर हाइकोर्ट का रुख सख्त रहा। पिछले महीने हाइकोर्ट में जस्टिस रोहित आर्या और जस्टिस सत्येंद्र कुमार सिंह ने फर्जी नर्सिंग कॉलेजों को राजनैतिक संरक्षण प्राप्त होने की बात  कही थी। कोर्ट ने यह भी कहा कि इन कॉलेजों के जरिये ऐसे लोगों को भी परीक्षा में बैठने की अनुमति दी जाती है जिन्हें नर्सिंग का 'न' भी नहीं आता। हाइकोर्ट के निर्देश पर नर्सिंग महाविद्यालय घोटाले की जांच के लिए जांच दलों का गठन हुआ था।

इसके तहत सीबीआइ और भोपाल एसीबी की सात कोर टीम बनाई गई। तीन से चार अन्य टीमें जांच में मदद करने के लिए बनाई गईं। टीम में सीबीआइ के अधिकारी, मध्य प्रदेश नर्सिंग कॉलेज के नामित सदस्य और पटवारी शामिल किए गए। इस टीम का काम हाइकोर्ट के निर्देश पर यह जांचना था कि क्या नर्सिंग कॉलेज बुनियादी सुविधाओं और संकाय के संबंध में नर्सिंग कॉलेजों के लिए निर्धारित मानदंडों और मानकों को पूरा करते हैं? इस बीच ये खबरें निकल कर सामने लगीं कि जांच दलों ने कई अपात्र संस्थानों की अनुकूल रिपोर्ट देकर मामले को रफा-दफा करना शुरू कर दिया। इससे सीबीआइ के अन्‍य अधिकारियों के भी कान खड़े हुए और जल्द ही जांच एजेंसी आरोपों और आरोपियों की खोजबीन के लिए गोपनीय ढंग से अपने ही अधिकारियों पर नजर रखने लगी। जांच एजेंसी को पता चला कि सीबीआइ जांच दल में शामिल हर नर्सिंग अधिकारी को करीब 25,000-50,000 रुपये और हर पटवारी को 5,000-20,000 रुपये बतौर रिश्वत दिए गए हैं।

बीती 18 और 19 मई को सीबीआइ ने मध्य प्रदेश और राजस्थान में ताबड़तोड़ छापे मारे। सीबीआइ की विजिलेंस टीम ने मध्य प्रदेश में भोपाल, इंदौर और रतलाम के अलावा राजस्थान के जयपुर में 31 ठिकानों पर छापे मारे। इसी कड़ी में 19 मई की रात सीबीआइ इंस्पेक्टर राहुल राज को 10 लाख रुपये की रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया गया। राहुल राज को रिश्वत देने वाले भोपाल के मलय कॉलेज ऑफ नर्सिंग के चेयरमैन अनिल भास्करन, प्रिंसिपल सूना अनिल भास्करन और एक मध्यस्थ सचिन जैन को भी सीबीआइ ने गिरफ्तार किया। राहुल राज कॉलेज को मनमाफिक रिपोर्ट देने के नाम पर रिश्वत ले रहा था।

एक अन्य टीम ने नर्सिंग कॉलेज घोटाले की जांच कर रही सीबीआइ टीम के एक और इंस्पेक्टर सुशील मजोकर को दो लाख रुपये की रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया। मजोकर एसीबी भोपाल से सीबीआइ में अटैच था। इसके अलावा रतलाम नर्सिंग कॉलेज के वाइस प्रिंसिपल जुगल किशोर शर्मा और भाभा कॉलेज, भोपाल के प्रिंसिपल जलपना अधिकारी को भी गिरफ्तार किया गया।

इस कार्रवाई में सीबीआइ के तीन अधिकारियों समेत 23 लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया है। वहां से कुल 2.33 करोड़ रुपये नकद के अलावा चार सोने के बिस्कुट और 36 डिजिटल उपकरण बरामद किए गए हैं। सीबीआइ की प्राथमिकी में कहा गया है कि इस चौकड़ी ने हर नर्सिंग संस्थान से दो लाख रुपये से 10 लाख रुपये तक की रिश्वत वसूली। यह रिश्वत राशि सीबीआइ अधिकारियों और बिचौलियों के बीच बांटी गई है।

इस मामले का असली सूत्र उन नर्सिंग कॉलेजों में छुपा है जिन्हें 2020 के बाद मान्यता दी गई, जिसके चलते पूर्ववर्ती 488 कॉलेजों की संख्या बढ़कर 670 हो गई। मान्यता के ऐसे मामले भाजपा की पिछली सरकार के दौरान सामने आए हैं जिसमें कुल 3000 करोड़ रुपये की रिश्वतखोरी की बात सामने आ रही है। अपनी रिपोर्ट में सीबीआइ ने 66 कॉलेजों को 'अनफिट' और 73 को 'डिफ‌िशिएंट' लिखा है।

महाघोटाले के दस साल

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सबसे चर्चित और दर्दनाक व्यापम घोटाले को अब 10 साल से ज्यादा का समय हो चुका है। व्यापम घोटाले जैसी झलक चर्चित बॉलीवुड फिल्‍म मुन्नाभाई एमबीबीएस फिल्म में मिल सकती है। फर्क यह है कि मुन्नाभाई एमबीबीएस हास्य फिल्म थी लेकिन व्‍यापम घोटाला दर्दनाक हकीकत है, जिसमें न सिर्फ लाखों के भविष्‍य से खिलवाड़ हुआ, बल्कि सैकड़ों की जान चली गई। उसे भारतीय इतिहास का सबसे बड़ा परीक्षा घोटाला कहा गया और यह व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापम) के इतिहास में एक दर्दनाक काला अध्याय है।

बात 2013 की है जब मध्य प्रदेश में व्यापम घोटाले का खुलासा हुआ था। उस वर्ष करीब 20 लाख आवेदक मध्य प्रदेश में व्यापम के तहत आयोजित हुई 27 अलग-अलग परीक्षाओं में शामिल हुए थे। व्यापम की इन परीक्षाओं में धोखाधड़ी, नकल संबंधी अनियमितताओं में बिचौलियों, छात्रों, कॉलेज कर्मचारियों, बाहरी लोगों के साथ-साथ प्रभावशाली डॉक्टरों और कई सत्‍ता पक्ष के नेताओं की भूमिका संदेह के घेरे में आ गई थी।

घोटाले में आवेदक की जगह दूसरे एक्सपर्ट परीक्षाएं देते थे, नकल की सुविधा के लिए उम्मीदवारों के रोल नंबरों में हेरफेर, नकल कराने के लिए फर्जी उम्मीदवार या एक्सपर्ट उम्मीदवार को बैठाया जाता था और उसके आसपास कई आवेदक बैठते थे। ये लोग आसपास बैठते थे, ताकि नकल करने में आसानी हो। परीक्षा के दौरान सेटिंग होने जाने के बाद आवेदक आम तौर पर जान-बूझ कर अपनी उत्तर पुस्तिकाओं को खाली छोड़ देते थे। बिचौलिये कंप्यूटर सिस्टम के जरिये उत्तर पुस्तिकाओं में हेरफेर करते थे।

घोटाले के तार सिर्फ मध्य प्रदेश तक नहीं सीमित रहे, बल्कि छत्तीसगढ़ के अलावा बिहार, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, झारखंड, आंध्र प्रदेश समेत कई राज्यों से जुड़े होने की बात सामने आई और इस मामले में हजारों लोगों को गिरफ्तार किया गया। जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ी, नए-नए नाम और रसूखदारों के नाम आते गए और असामयिक और रहस्यमयी मौतों की लिस्ट भी लंबी होती चली गई। जांच तेज हुई तो जांचकर्ता और आरोपियों की संदिग्ध परिस्थितियों में एक के बाद एक मौत होने लगी। इन लोगों की मौत की वजहों में दिल का दौरा और सीने में दर्द से लेकर सड़क दुर्घटनाएं और आत्महत्याएं शामिल थीं। ये सभी मौतें असामयिक और रहस्यमयी थीं, हालांकि राज्य सरकार का कहना था कि इन मौतों का व्यापम घोटाले से कोई लेनादेना नहीं, ये सभी सामान्य मौतें हैं।

आखिरकार सुप्रीम कोर्ट में यह मामला पहुंचने पर इस मामले की जांच केंद्रीय जांच एजेंसी (सीबीआइ) को सौंप दी गई। जांच एजेंसी ने 2015 से 2020 के बीच 155 मामलों में हजारों की संख्या में संदिग्धों को आरोपी बनाया है। इस मामले में मध्य प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल रामनरेश यादव के खिलाफ भी मुकदमा दर्ज है और व्यापम घोटाले में तत्कालीन शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा की गिरफ्तारी भी हो चुकी है।

एजेंसी ने इस मामले में अपनी जांच पूरी कर ली है और जांच के लिए भोपाल भेजे गए सैकड़ों जांचकर्ता अपनी मूल यूनिट में वापस जा चुके हैं। फिलहाल सीबीआइ के पास व्यापम का कोई मामला लंबित नहीं है।

 

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