इस साल होने वाली जनगणना में आदिवासी धर्म कॉलम शामिल करने की मांग को लेकर आंदोलन तेज होता जा रहा है। जनगणना के लिए अब प्रक्रिया शुरू हो रही है अगर आदिवासी संगठनों का दबाव काम नहीं किया तो जनगणना में अलग कोड से ये फिर वंचित रह जायेंगे। सरना आदिवासी धर्म कोड से संबंधित प्रस्ताव हेमन्त सरकार भी विधानसभा से पास कर केंद्र को भेज चुकी है।
इधर राष्ट्रीय आदिवासी धर्म समन्वय समिति ने जनगणना में आदिवासी धर्म कॉलम की मांग तेज करते हुए 20 फरवरी को राजभवन पहुंचने का नारा दिया है। समन्वय समिति के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष व पूर्व मंत्री देवकुमार धान ने कहा कि अपनी मांग को लेकर 20 फरवरी को रांची में एक दिवसीय महाधरना देंगे। बड़ी संख्या में आदिवासियों का जुटान होगा। धान के अनुसार 25 फरवरी को देश के सभी राज्य के आदिवासी समुदायों के प्रतिनिधियों का हस्ताक्षरयुक्त ज्ञापन प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और जनगणना महानिबंधक को सौंपा जायेगा।
छत्तीसगढ़ के राजनांद गांव में राष्ट्रीय आदिवासी इंडिजिनस धर्म समन्वय समिति की बैठक में यह निर्णय लिया गया है। बैठक मेूं देश के विभिन्न प्रदेशों से आदिवासी समुदायों के प्रतिनिधि शामिल हुए थे। धान ने कहा कि यह आदिवासियों की अस्मिता, पहचान से जुड़ी मांग है। देश के प्रथम जनगणना 1871 से लेकर 1951 तक की जनगणना में आदिवासियों के लिए अलग धर्म कॉलम था जिसे 1961 की जनगणना में साजिश के तहत हटा दिया गया। हम उसकी पुनर्वापसी चाहते हैं। इस मांग को लेकर जनवरी के अंतिम सप्ताह में उत्तर प्रदेश के रॉबर्टगंज में समन्वय समिति की सभा हुई थी। 9 जनवरी को इसी मसले पर हैदराबाद के तेलंगाना में एक दिवसीय सेमिनार का आयोजन किया गया था। प्रधानमंत्री व गृह मंत्री को पूर्व में भी इस आशय का पत्र-ज्ञापन भेजा जा चुका है।