उत्तराखंड की अस्थायी राजधानी देहरादून में नया विधानसभा भवन और सचिवालय निर्माण का रास्ता साफ हो गया है। केंद्रीय वन मंत्रालय से प्रस्तावित जमीन पर निर्माण की मंजूरी मिल गई है। ऐसे में सवाल यह खड़ा हो रहा है कि पूर्व सीएम त्रिवेंद्र के गैरसैंण में ग्रीष्मकालीन राजधानी और वहां निर्मित भव्य भवन की आखिरकार कौन सुध लेगा।
राज्य गठन विधेयक में उत्तराखंड में राजधानी का जिक्र नहीं है। हां, इतना जरूर कहा गया है कि देहरादून अस्थायी राजधानी होगी। इसके बाद से सियासी दल जनभावनाओं के अनुसार गैरसैंण में स्थायी राजधानी की बात करते रहे हैं। लेकिन किसी भी दल ने इस दिशा में कोई बड़ा कदम नहीं उठाया। अलबत्ता पूर्व सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत ने गैरसैंण को ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाने की अधिसूचना जरूर जारी कराई। लेकिन उनके कुर्सी से हटने के बाद यह अधिसूचना भी फाइलों में कैद हो गई।
अहम बात यह है कि एक तरफ तो सियासी दल गैरसैंण का राग अलाप रहे थे तो अफसरशाही इसके पक्ष में नहीं रही। अफसरों ने दून में ही एक नया विधानभवन और सचिवालय भवन बनावाने की दिशा में काम तेज कर दिया। रायपुर में स्टेडियम के आगे खाली पड़ी वन विभाग की आठ सौ एकड़ जमीन के साठ हेक्टेयर भाग पर नए विस और सचिवालय भवन की फाइल चला दी। अंदरखाने इस पर तेजी से काम किया गया। लेकिन केंद्रीय वन मंत्रालय की मंजूरी (फारेस्ट क्लीयरेंस) न मिलने से मामला लटका रहा। उच्च पदस्थ सूत्रों ने बताया कि अब केंद्रीय वन मंत्रालय से निर्माण की मंजूरी मिल गई है। बताया जा रहा है कि सरकार ने इस जमीन की कीमत का कुछ पैसा वन विभाग को दे भी दिया है। मंजूरी के बाद वन विभाग को पूरा पैसा देकर यहां निर्माण भी शुरू हो जाएगा।
अब सवाल यह भी खड़ा हो रहा है कि राजधानी का फैसला किए बगैर ही अस्थायी राजधानी में नए निर्माण पर अरबों रुपये खर्च करने का क्या औचित्य है। वैसे भी भराड़ीसैंण (गैरसैंण) में विस भवन और तमाम आवासों पर अरबों रुपये सरकारी खजाने के खर्च किए जा चुके हैं। इस भवन में विस सत्र आयोजन का विधायकों की ओर से विरोध किया जाता है। अगर कोई फैसला नहीं होता है तो भराड़ीसैंण में बन चुके भव्य भवनों का क्या होगा।