स्वर्ण जयंती से केवल पांच कदम पीछे सन 1972 से चल रहे मेले का यह 45वां साल होगा। इस 19 दिवसीय मेले में हर दिन लोक-सांस्कृतिक, सामाजिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं।
अवाम का सिनेमा के सर्वेसर्वा और करीब एक दशक से भूले-बिसरे क्रांतिकारियों और उनके परिजनों की खोज में लगे शाह आलम ने शहीद मंदिर से बताया कि बेवर के रामलीला मैदान में शहीद मंच की सजावट के साथ शहीद मेला एवं प्रदर्शनी की तैयारियां जोरों पर चल रही हैं। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस जयंती, 23 जनवरी को मेले का उद्घाटन होगा। आलम ने बताया कि पहले क्रांतिचेता व देशभक्त नागरिकों के जत्थे नेताजी की प्रतिमा पर माल्यार्पण करेंगे। शहीदों की समाधि और शहीद मंदिर की प्रतिमाओं पर पुष्पांजलि अर्पित की जाएगी। उद्धाटन समारोह को सरदार भगत सिंह के भतीजे किरनजीत सिंह, अमर शहीद सुखदेव के पौत्र अशोक थापर, शहीद-ए-वतन अशफाक उल्लाह खां के पौत्र अशफाक उल्ला खां, स्वतन्त्रता संघर्ष शोध केन्द्र के निदेशक सरल कुमार शर्मा आदि क्रांतिकारियों के परिजन संबोधित करेंगे।
मेला प्रबंधक राज त्रिपाठी ने फोन पर बताया कि 23 जनवरी से 10 फरवरी तक मेले के उन्नीस दिनों का आयोजन अलग-अलग थीम पर रखा गया है। इनमें प्रमुख रूप से शहीद प्रदर्शनी, नाटक, विराट दंगल, पेंशनर्स सम्मेलन, स्वास्थ्य शिविर, कलम आज उनकी जय बोल, शहीद-रज कलश यात्रा, शहीद परिजन सम्मान समारोह, रक्तदान शिविर, विधिक साक्षरता सम्मेलन, किसान पंचायत, स्वतंत्रता सेनानी सम्मेलन, शरीर सौष्ठव प्रतियोगिता, लोक-नृत्य प्रतियोगिता, पत्रकार सम्मेलन, कवि सम्मेलन, राष्ट्रीय एकता सम्मेलन आदि कार्यक्रम आकर्षण का केन्द्र होंगे।
क्षेत्र के क्रांतिकारी इतिहास के उल्लेख में कहा गया है कि 15 अगस्त 1942 को तत्कालीन जूनियर हाईस्कूल बेवर के उत्साही छात्रों का जुलूस हाथों में तिरंगा थामे, नारे लगाते, झंडा गीत गाते हुए बेवर थाने आ डटा था। छात्र झंडा फहराने की जिद पर अड़े थे कि अंग्रेजी राज की पुलिस ने गोली चला दी। गोलीबारी में सातवीं कक्षा के विधार्थी कृष्ण कुमार, क्रांतिधर्मी सीताराम गुप्त और यमुना प्रसाद त्रिपाठी की शहीद होने से पूरा शहर उबल पड़ा। शहीदों के शवों को परिवार को न सौंपकर जिला प्रशासन ने दूसरे दिन चुपके से सिंहपुर नहर के निकट बीहड़ जंगलों में गुप्त रूप से ले जाकर मिट्टी का तेल डाल कर जला दिया था। शहर पर पुलिस का दमन टूट पड़ा, घर-घर से तलाशी और गिरफ्तारियां शुरू हो गईं। देशहित में दी इन शहीदों की कुरबानी की गाथा का, बेवर थाने के सामने बनी शहीदों की समाधि और शहीद मंदिर आज भी बखान कर रहा है। क्रांतिकारी जगदीश नारायण त्रिपाठी ने शहीदों की यादों को जिन्दा रखने के लिए मेले की शुरुआत 1972 में की थी। तब से यह मेला हर साल नौजवान पीढ़ी को जगाता और रोमांचित करता आ रहा है।