पिछले दिनों नीतीश ने नितिन गडकरी से मिलकर पूछा कि राज्य की कई सडक़ परियोजनाएं भूमि अधिग्रहण नहीं हो पाने से शुरू नहीं हो पाई हैं अथवा बाधित हैं। क्योंकि इसमें सबसे बड़ी बाधा भूमि अधिग्रहण के लिए दी जाने वाली मुआवजा राशि है। नीतीश ने गडकरी से यह जानना चाहा कि किसानों की जमीन की कीमत किस आधार पर तय की जाए। भू-अधिग्रहण कानून अथवा मार्केट या सर्किल रेट पर। दोनों ही स्थितियों में सडक़ निर्माण की लागत में अच्छी-खासी बढ़ोत्तरी होनी है। नीतीश ने गडकरी को एक पत्र भी सौंपा जिसमें कहा गया कि नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया की पटना-बक्सर, फारबिसगंज-जोगबनी, पटना-डोभी, बिहारशरीफ-मोकामा, वाराणसी-औरंगाबाद और छपरा-मुजफ्फरपुर उच्च पथ परियोजनाएं साल 2010-12 की हैं, पर जमीन अनुपलब्धता के कारण ये या तो शुरू नहीं हुईं अथवा बाधित हैं। पत्र के मुताबिक इन परियोजनाओं के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम के खंड 3 जी के तहत वर्ष 2010-12 में अधिसूचना जारी की गई थी, पर अधिकांश मामलों में किसानों को मुआवजा का भुगतान अब तक नहीं किया गया है और अब नए भूमि अधिग्रहण कानून के तहत चार गुणा, मार्केट अथवा सर्किल रेट पर मुआवजे की मांग कर रहे हैं। नीतीश के मुताबिक बिहार सरकार द्वारा केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के सर्कुलर के अनुसार मुआवजा का भुगतान किया जाता है। ऐसे में किसान किसी भी हालत में कम दर पर मुआवजा की राशि स्वीकार नहीं करेंगे। वहीं केंद्रीय सडक़ परिवहन राज्यमंत्री राधाकृष्णन कहते हैं कि बिहार में सडक़ और पुल-पुलियों के निर्माण के लिए विशेष पैकेज के तहत 50 हजार करोड़ रुपये की घोषणा की गई है। यह राशि नौ बड़ी परियोजनाओं पर खर्च होगी। इनमें बड़े पुल के अलावा नई सडक़ों का निर्माण शामिल है। पटना-बक्सर और पटना-बख्तियारपुर सडक़ का चौड़ीकरण भी इसी पैकेज का हिस्सा है। दूसरी ओर बिहार विधानसभा चुनाव से पूर्व राज्य के विकास के लिए केंद्र सरकार के कई वायदे, कई योजनाओं को सुन-सुनकर राज्य की जनता ने माना था कि शायद विकास को पंख लगने वाले हैं लेकिन चुनाव बीत जाने के बाद फिर वही कहावत याद आ जाती है, रात गई बात गई। हालांकि मार्च महीने में ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्य के विकास के लिए किए गए कई वायदों में से कुछ योजनाओं का शुभारंभ किया लेकिन सडक़ों की बदहाली के मामले में राज्य अन्य राज्यों से भी पिछड़ा है। प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना की गति धीमी हो गई है। स्टेट हाईवे को नेशनल हाईवे बनाए जाने का प्रस्ताव बन गया। स्टेट हाईवे की संक्चया भी बढ़ा दी गई लेकिन मंजूरी के बावजूद लगभग एक-तिहाई सडक़ें नहीं बन पाई हैं। ग्रामीण इलाकों में सडक़ों की दुर्दशा और भी खराब है। प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना के तहत सडक़ निर्माण की जिम्मेवारी राज्य सरकारों पर है। केंद्र धन का आवंटन करती है। राज्य सरकारें निर्माण एजेंसी के तौर पर काम करती हैं।
इतना ही नहीं, ग्रामीण इलाकों में करीब तीन हजार किलोमीटर लंबी सडक़ बनाने के प्रस्ताव को केंद्र सरकार ने खारिज करते हुए फाइल लौटा दी। केंद्र सरकार ने प्रस्ताव वापस करने के पीछे पैसे की कमी बताया है। प्रधानमंत्री ग्रामीण सडक़ योजना के तहत राज्य भर में 2,924 किलोमीटर सडक़ बनाए जाने का डीपीआर केंद्र ने तैयार कराया था जबकि राज्य को इस योजना के लिए 4,508 किलोमीटर सडक़ बनाने का प्रस्ताव है। बिहार के ग्रामीण कार्य मंत्री शैलेश कुमार कहते हैं कि यह राज्य के साथ सौतेला व्यवहार है। पहले केंद्र ने ही योजना के लिए डीपीआर मांगा फिर बाद में खारिज कर दिया। जो योजनाएं पहले से लंबित थीं उसके लिए राज्य सरकार ने अपने कोष से 9,647 करोड़ रुपये की राशि खर्च कर दी। राज्य सरकार द्वारा बकाया राशि का भी केंद्र सरकार भरपाई नहीं कर पा रही है। जबकि केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्यमंत्री डॉ. सुदर्शन भगत के मुताबिक जनवरी 2016 तक राज्य में इस योजना के तहत 15,603 सडक़ों के निर्माण की मंजूरी दी गई। इनमें 10,020 सडक़ों का निर्माण पूरा हो चुका है।
राज्य की 13 मुख्य सडक़ों (स्टेट हाईवे) को केंद्र सरकार ने नेशनल हाईवे घोषित कर दिया है। केंद्रीय सडक़ परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने इन मार्गांे को नेशनल हाईवे के रूप में बनाने की सैद्धांतिक मंजूरी भी दे दी है। इससे 835 किलोमीटर स्टेट हाईवे अब नेशनल हाईवे हो गए हैं। इससे राज्य के 14 जिलों को सीधे तौर पर फायदा भी होगा। जिनमें बक्सर, कैमूर, समस्तीपुर, बेगूसराय, दरभंगा, वैशाली, मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण व पश्चिमी चंपारण, भोजपुर, रोहतास, गया, नालंदा, भागलपुर, बांका जिले शामिल है। राज्य में फिलहाल 4321 किमी नेशनल हाईवे है। इन 835 किलोमीटर नए नेशनल हाईवे से राज्य से गुजरने वाले नेशनल हाईवे की लंबाई अब 5,156 किलोमीटर हो जाएगी लेकिन सवाल यह है कि जो पिछली योजनाएं हैं वे अभी लंबित पड़ी हुई हैं और नई योजनाओं के लिए केंद्र सरकार राज्य से प्रस्ताव मांग रहा है। राज्य के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव कहते हैं कि हमने केंद्र सरकार से 54 स्टेट हाईवे को नेशनल हाईवे बनाने की मांग की लेकिन 13 के ही प्रस्ताव को मंजूरी मिली। राज्य में नेशनल हाईवे 4,595 किलोमीटर, स्टेट हाईवे 4,253 किलोमीटर व मुख्य जिला पथ 10,634 किलोमीटर है। स्टेट हाईवे में सात मीटर से अधिक चौड़ाई की सडक़ मात्र एक फीसदी है, जबकि मुख्य जिला पथ में यह 1.7 फीसदी है। सडक़ों को बनाने में यह भी एक बड़ी चुनौती है। विभिन्न परियोजनाओं के तहत स्टेट हाईवे का विकास करना है। एशियन डेवलपमेंट बैंक ने 2629 करोड़ की राशि से 824 किलोमीटर स्टेट हाईवे के निर्माण की स्वीकृति प्रदान की है।
राज्य के पथ निर्माण विभाग की ओर से भी कई योजनाएं प्रस्तावित है जिसमें राज्य के किसी भी हिस्से से राजधानी पटना पहुंचने के लिए मात्र पांच घंटे का लक्ष्य रखा गया है। इसके लिए सडक़ निर्माण सहित ट्रैफिक व्यवस्था पर ध्यान देने पर पूरा जोर रहेगा। राज्य में सडक़ों का बेहतर संपर्क सुनिश्चित करने के लिए पथ निर्माण दृष्टि 2020 का विकास किया जा रहा है। राज्य सरकार ने सभी स्टेट हाईवे को टू लेन यानी कम-से-कम सात मीटर चौड़ी करने का निर्णय लिया है। इसके अलावा मुख्य जिला पथ को सिंगल लेन से बदल कर कम-से-कम मध्यवर्ती लेन यानी साढ़े पांच मीटर या फिर टू लेन यानी सात मीटर चौड़ा करने की योजना तैयार की है। इसके साथ ही पुल निर्माण को भी गति देने का काम चल रहा है। जैसे मुजफ्फरपुर व सारण के बीच बंगरा घाट पुल, दाऊदनगर व नासरीगंज के बीच सोन नदी पर पुल, गंडक नदी पर सत्तर घाट पुल, बख्तियारपुर-ताजपुर के बीच निर्माणाधीन पुल का काम प्रगति पर है। सुल्तानगंज व अगवानी घाट के बीच गंगा नदी पर फोर लेन वर्ष 2019 और कच्ची दरगाह-बिदुपुर के बीच छह लेन पुल का निर्माण 2020 में पूरा होगा। बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री और भाजपा नेता सुशील मोदी कहते हैं कि राज्य में सडक़ निर्माण के लिए होने वाले खर्च में बड़ी हिस्सेदारी केंद्र की है। अगर राज्य पैसा ही नहीं खर्च पा रहा है तो इसमें केंद्र को दोषी नहीं ठहराया जा सकता।