पश्चिम बंगाल में रिक्शा चलाने वाले मनोरंजन व्यापारी तृणमूल कांग्रेस के टीकट पर जीतकर विधायक बन गए हैं। देश में बटवारे के बाद शरणार्थी बनकर भारत आए मनोरंजन की जीवन यात्रा बहुत कठिनाईयों से गुजरी है। देश के बटवारें के बाद छह साल की उम्र में शरणार्थी शिविर में पहुंचे थे। बचपन में परेशानियों के कारण उन्हें चाय की दुकानों में काम करना पड़ा, मजदूरी करनी बड़ी। जब वह थोड़े बड़े हुए तो वह तत्कालीन नक्सलबाड़ी आंदोलन का हिस्सा बन गए जिसके बाद वह जेल भी गए। उन्होंने अपने जीवन के रास्तों पर काफी मश्किल सफर तय किया है।
दैनिक भास्कर के अनुसार मनोरंजन अपना कल कभी नहीं भुला सकते हैं। उन्होंने रिक्शे पर जाकर ही अपना नामांकन पत्र दाखिल किया था और वह अपने रिक्शे पर भी चुनाव अभियान करते थे। चुनाव अभियान के दौरान उनके समर्थकों का नारा था कि एक रिक्शावाला अब विधानसभा पहुंचेगा। मनोरंजन व्यापारी बताते हैं कि देश में डीजल और पेट्रोल की कीमतें लगातार आसमान छू रही हैं। इस मुद्दे के खिलाफ विरोध जताने के लिए ही वह रिक्शे में चुनाव प्रचार करते थे। वह बतातें है कि यह रिक्शा उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। वह इसे कभी नहीं भूल सकते हैं।
रोटी के लिए रिक्शा चलाने से लेकर शीर्ष साहित्यकारों की सूची में शुमार मनोरंजन की 'जिजीविषा' इस उम्र में भी कम नहीं हुई है। मनोरंजन अपने हाथ में हमेशा एक अंगूठी पहनते हैं। जिस पर 'जिजीविषा' लिखा हुआ है। इस बारे में वे बताते हैं कि एक बार बांग्ला की एक महान साहित्यकार महाश्वेता देवी से उनकी मुलाकात हुई, उन्होंने बहुत ही अद्भुत अंदाज में इसका अर्थ बताया था। जिसके कारण उन्हें प्रेरणा मिली जिसके बाद उनका लेखक के तौर पर उनका पुनर्जन्म हुआ।
पश्चिम बंगाल में दलितों का चेहरा और आवाज बन चुके मनोरंजन अपने चुनाव प्रचार के दौरान हमेशा कहते थे कि वह आम लोगों की तरह ही हैं। सिर पर छत नहीं होने की वजह से उन्होंने भी अपनी कई राते रेलवे प्लेफार्म पर काटी हैं।