इस मामले में पूर्व मंत्री, कई नेता, कई अधिकारी सहित छात्र-छात्राएं भी जेल में हैं। इन दिनों कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह व्यापमं मामले में मुख्यमंत्री पर तीखे आरोप लगा रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्ता भी आए दिन सूचना के अधिकार से मिली जानकारी से व्यापमं एवं अन्य मामलों में नए-नए खुलासे कर रहे हैं। मंत्री, विधायक एवं अधिकारियों के खिलाफ लगातार न्यायालय में लगाए जा रहे याचिकाओें के बीच मध्यप्रदेश सरकार ने प्रदेश में एक नया कानून बनाने का निर्णय लिया है, जिसे मध्यप्रदेश तक करने वाली मुकदमेबाजी (निवारण) विधेयक-2015 नाम दिया गया है। इस कानून के अनुसार यदि कोई व्यक्ति लगातार विभिन्न मामलों में कोर्ट में याचिका लगाता रहता है और उससे सरकार, मंत्री, विधायक या अधिकारी परेशान होते हैं, तो ऐसी याचिकाओं पर राज्य के एडव्होकेट जनरल उच्च न्यायालय को उस प्रकरण में राय देंगे कि वह याचिका परेशान करने के नीयत से लगाई गई, इसलिए उस पर सुनवाई नहीं की जाए। यद्यपि इस राय को मानने या न मानने का अधिकार उच्च न्यायालय को होगा। पिछले दिनों मंत्रिपरिषद ने इसके मसौदे को अनुमोदित कर दिया और सरकार इसे मध्यप्रदेश विधान सभा का एक दिन लिए आयोजित सत्र में ही पारित करना चाह रही थी। इसकी सूचना विधानसभा को मिल चुकी थी, पर ऐन मौके पर इसे विधान सभा में प्रस्तुत नहीं किया गया।
सरकार द्वारा बनाए जा रहे इस कानून का पुरजोर विरोध कांग्रेस सहित प्रदेश के आर.टी.आई. कार्यकर्ता भी कर रहे हैं। इस तरह के कानून बनाए जाने की भनक लगते ही पहले ही दिन से इसका विरोध शुरू हो गया। सूचना के अधिकार पर कार्यरत प्रयत्न संस्था के अजय दुबे कहते हैं, ‘‘यदि यह पारित हो जाए, तो प्रदेश के लिए काला कानून होगा। इसलिए हमने पहले ही दिन घोषणा की, हम इस कानून को प्रतीकात्मक रूप से विधानसभा गेट के पास जलाकर विरोध करेंगे। हमने ऐसा कर कानून का पुरजोर विरोध किया है और यह पारित न हो, इसके लिए हम लगातार संघर्ष कर रहे हैं।’’
इस विधेयक पर मध्यप्रदेश बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष रामेश्वर नीखरा कहते हैं कि यह संविधान की भावनाओं के विपरीत है। सरकार स्वयं दूसरे के खिलाफ मुकदमा करती है और अपने बचाव के लिए ऐसा कानून बनाकर आड़ चाहती है। उच्च न्यायालय तो स्वयं परेशान करने वाले मुकदमों पर जुर्माना लगाता है, फिर इसकी क्या जरूरत है। पूर्व महाधिवक्ता विवेक तन्खा कहते हैं कि किसी को न्याय पाने के लिए याचिका लगाने के अधिकार पर अंकुश लगाने का अधिकार किसी को नहीं है।
दूसरी ओर विधि विभाग के सूत्रों ने प्रस्तावित तंग करने वाली मुकदमेबाजी निवारण विधेयक-2015 के संबंध में स्थिति स्पष्ट करते हुए कहा है कि इससे किसी व्यक्ति के दाव या मुकदमा प्रस्तुत करने के अधिकार का हनन नहीं होगा। शासन के अनुसार यह देखा गया है कि लोगों में अन्य व्यक्तियों के विरुद्ध उन्हें कष्ट पहुंचाने, परेशान अथवा चिढ़ाने के उद्देश्य और निजी स्वार्थों की पूर्ति के लिये दबाव बनाने के आशय से बिना किसी यथोचित आधार के मुकदमे लगाये जाते हैं। तंग करने वाले ऐसे दावे या मुकदमे प्रस्तुत करने की प्रवृत्ति निरंतर बढ़ रही है। इस प्रवृत्ति के कारण न केवल वह उत्पीड़ित होता है, जिसके खिलाफ याचिका लगाई जाती है बल्कि न्यायालय का महत्वपूर्ण समय भी नष्ट होता है। इससे न्याय प्रशासन की समुचित व्यवस्था की विश्वसनीयता पर भी संकट उत्पन्न होता है। उच्च न्यायालय एवं जिला-स्तरीय न्यायालय मुकदमों के भार से ग्रस्त हैं। व्यर्थ की मुकदमेबाजी शीघ्र न्याय के लक्ष्य की प्राप्ति में बाधक बनी हुई है।
अजय दुबे इस कानून की मंशा पर सवाल उठाते हुए कहते हैं कि यह सरकार की कुंठा और हताशा का परिणाम है। सरकार ने बयान दिया है कि कुछ लोग फर्जी एन.जी.ओ. बनाते हैं और सूचना के अधिकार का सहारा लेकर सरकारी जानकारी निकालते हैं और फिर कोर्ट में याचिका लगाते हैं। सरकार ऐसे लोगों को चिह्नित कर प्रतिबंधित करेगी। पर सरकार को इस तरह का रोक लगाने का कोई अधिकार नहीं है। कानूनी प्रक्रिया से मिली जानकारी को लेकर न्याय के लिए या जनहित के लिए कोर्ट जाना नागरिकों का मूलभूत अधिकार है। वे कहते हैं कि सरकार की मंशा सही नहीं है और इसलिए वह इसके मसौदे को सार्वजनिक भी नहीं कर रही है। श्री दुबे ने इस मामले में हस्तक्षेप करने के लिए राज्यपाल को चिट्ठी लिखी है।