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कभी दिया अंडा, अब क्यों पलटे शिवराज

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान जो आज आईसीडीएस योजना के तहत अंडा दिए जाने की इतनी मुखालफत कर रहे हैं उन्होंने ही सात साल पहले होशंगाबाद जिले में अंडा दिए जाने का प्रस्ताव पारित किया था। उस समय वह मुख्यमंत्री थे। होशंगाबाद के आदिवासी ब्लॉक में अंडा दिए जाने के लिए उन्होंने प्रोजेक्ट शक्तिमान को हरी झंडी दी थी। इस प्रोजेक्ट का नाम फिल्मकार मुकेश खन्ना के सीरियल शक्तिमान के नाम पर था। प्रोजेक्ट के तहत कुपोषित बच्चों को उबला अंडा और उबले आलू देने का प्रावधान था लेकिन आज वही शिवराज सिंह हैं जो अंडा न दिए जाने की बात पर अटल हैं।
कभी दिया अंडा, अब क्यों पलटे शिवराज

 

अंडे का मसला धर्म और राजनीति से जुड़ा

हालांकि मध्यप्रदेश के सूत्र बताते हैं कि शिवराज सिंह जिस समुदाय से आते हैं वह समुदाय स्वयं शाकाहारी नहीं है। शिवराज खुद सात साल पहले कुपोषित आदिवासी बच्चों को अंडा दिए जाने की बात कह चुके हैं। फिर ऐसा क्या हुआ कि अंडे दिए जाने को लेकर इतनी राजनीति हो गई। बताया जाता है कि मुख्यमंत्री ने यह फैसला जैन समुदाय और अपने ही मंत्रिमंडल के कुछ कट्टर हिंदुवादी नेताओं के दबाव के चलते लिया है। सूत्रों का तो यहां तक कहना है कि छह महीने पहले जब शिवराज सिंह चौहान जैन संत विद्यासागर महाराज जी के एक कार्यक्रम में गए तो वहां जैनमुनि ने उनसे शाकाहार का संकल्प लिया था। इसलिए अंडा न दिया जाने का विवाद शिवराज सिंह से जुड़ा कम और धर्म से जुड़ा ज्यादा है। मध्य प्रदेश में भाजपा नेता आमतौर पर जैनमुनियों के कार्यक्रम में जाते रहते हैं। हालांकि कुछ लोग दबी जुबान में बोल रहे हैं कि जैन समुदाय एक व्यापारी समुदाय है और अंडे-मांस और इससे जुड़ी चीजों का व्यापार नहीं करता है इसलिए मुख्यमंत्री दबाव में हैं।  

 

अंडे का फंडा

भोजन के अधिकार से जुड़े सचिन जैन कहते हैं कि भाजपा के नेता जिस भी धार्मिक मंच पर जाते हैं वहां उन्हें मंच पर बुलाकर संकल्प ले लिया जाता है। जाहिर है कि अब बहुसंख्यक समुदाय के सामने कोई ऐसा तो नहीं कहेगा कि ‘ हां, हम तो अंडा खिलाएंगे।‘ जब नेता लोग मंच से ऐलान कर देते हैं तो मीडिया अगले दिन उसे हेडलाइन बना देता है, कई दिन चलाता है। फिर अपने आप ही वह मामला नीति बन जाता है। ऐसा ही अंडे के मामले में हुआ। वर्ष 2009 में तरुण सागर महाराज के कार्यक्रम में शिवराज सिहं चौहान ने कहा था ‘ मैं अंडे का फंडा नहीं चलने दूंगा।‘

 

आदिवासियों के स्रोत नहीं रहे

खंडवा में कोर्कू आदिवासियों के बीच काम करने वाली सीमा प्रकाश बताती हैं कि वे लोग अंडा दिए जाने के लिए इसलिए कह रहे हैं इसमें मिलावट नहीं हो सकती है। अब आदिवासियों को जंगल से उनका पौष्टिक खाना नहीं मिलता है। वे शिकार भी नहीं करते हैं। वे सांवा, कुटकी और कंद जैसे अपने अनाज भी नहीं उगा रहे। अनाज के नाम पर महज सोयाबीन उगाते हैं और वो भी एक्सपोर्ट किया जाता है। यानी आदिवासियों के पास प्रोटीन का कोई स्रोत नहीं है। बाजार से खरीदकर मटन या मछली पकाना काफी मंहगा पड़ता है। इसलिए हमें प्रोटीन के लिए अंडा बेहतर स्रोत लगता है। सीमा का कहना है कि जिस व्यापारी और धार्मिक समुदाय के दबाव में अंडा न दिए जाने ता फैसला लिया जा रहा है उनके बच्चे आंगनवाड़ी में खाना खाने नहीं आते हैं, यहां दलितों और आदिवासियों के बच्चे आते हैं जो नेताओं का वोटबैंक नहीं है।

 

गौरतलब है कि मध्य प्रदेश को शुद्ध शाकाहारी प्रदेश बनाने की सरकार की कवायद के तहत राज्य सरकार के आदिवासी बहुल इलाकों में छोटे बच्चों को दिन के खाने में अंडा देने से कड़ाई से मना कर दिया गया है। यह फैसला खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किया है। जिसपर लगातार विवाद जारी है।

 

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